सनातन को समाप्त करने की हैसियत विपक्ष के पास नहीं : डॉ दिनेश शर्मा
-अंग्रेजी मानसिकता के लोग रच रहे हैं समाज को बांटने का कुचक्र
-ब्राह्मणों को कलंकित करने का प्रयास करती है राष्ट्रविरोधी ताकतें
-ब्राह्मण को अपने संस्कार और परम्पराओं को सहेजने की जरूरत
प्रयागराज, 26 नवम्बर (हि.स.)। सनातन को समाप्त करने हैसियत विपक्षी दलों के पास नहीं है। ऐसे लोगों को पता होना चाहिए कि देश में तमाम आक्रान्ता आए और चले गए। पर सनातन कभी समाप्त नहीं हुआ है। यह अफसोसजनक है कि भारत में रहकर यहीं का खाने वाले विपक्षी दलों के लोग देश की सनातन संस्कृति को कोसने का कार्य कर रहे हैं। उसकी तुलना बीमारियों से की जा रही है।
यह बातें रविवार को पूर्व उपमुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश डॉ दिनेश शर्मा ने प्रयागराज के परेड में राष्ट्रीय परशुराम सेना द्वारा आयोजित ब्राह्मण महाकुभ में बतौर मुख्य अतिथि सम्बोधित करते हुए कही।
उन्होंने कहा कि सपा के एक नेता तो आए दिन देवी देवताओं का अपमान कर सनातन धर्म मानने वालों की भावनाओं को आहत कर रहे हैं। ये अंग्रेजों वाली मानसिकता के लोग आज समाज को बांटने का कुचक्र रच रहे हैं। जिससे सत्ता पर काबिज हुआ जा सके।
डॉ शर्मा ने कहा कि राष्ट्र विरोधी ताकतें हर नकारात्मक विषय पर देश में ब्राह्मणवादी बताकर ब्राह्मणों को आरोपित करने का प्रयास करती हैं। ब्राह्मण कोई जाति नहीं है बल्कि वर्ण व्यवस्था में सबसे कठिन कार्य को करने वाला वर्ग था। वह समाज के लिए अपने को समर्पित कर अध्ययन और अध्यापन का कार्य करता था। वह ऐसा त्यागपूर्ण जीवन व्यतीत करता था, जिसमें अपने लिए कुछ नहीं है बल्कि सब कुछ समाज के कल्याण के लिए है। यह ऐसा त्यागी समाज रहा है जिसने भारत की सनातन संस्कृति को बचाने के लिए अपना सब कुछ लुटा दिया। इसे देवतुल्य माना गया है क्योंकि यह सदाचारी, राष्ट्र के लिए समर्पित, दूसरे के हित चिन्तन के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर करने व अन्य सभी जातियों के साथ समन्वय स्थापित करने वाला है।
उन्होंने आगे कहा कि ब्राह्मण एक संस्कार है, जो अपने को राष्ट्र के लिए समर्पित करता है। यह श्रेष्ठ जीवन जीने का प्रवाह है। इसकी आलोचना करने वाला राष्ट्र का हितैषी नहीं हो सकता है। ब्राह्मण कभी जातिवादी नहीं होता है। पहले के समय में वर्ण व्यवस्था थी उस समय जब भगवान कृष्ण ने गो पालन किया तो वे यदुवंशी कहलाये। जब गीता का उपदेश दिया तब लोग उन्हें ब्राह्मण स्वरुप में देखने लगे और जब द्वारिकाधीश हुए, जनता का रक्षण का कार्य करने लगे तब वे क्षत्रिय रूप में स्वीकार किये जाने लगे। जब उन्होंने समाज की सेवा में अपने को समर्पित किया तो उन्हें शूद्र वर्ण का मानने वाले समय आये।
उन्होंने कहा कि जब मुगल आए तो देश पर राज करने के लिए उन्होंने संस्कृति को नष्ट करने के उद्देश्य से सनातन धर्म मानने वालों पर और विशेष तौर पर ब्राह्मणों पर तमाम अत्याचार किए। जिन शास्त्रों को सहेजकर ब्राह्मणों ने रखा था उसे आक्रान्ताओं ने जला दिया। नालन्दा विश्वविद्यालय में आग लगा दी 3 महीने तक शास्त्र और पांडुलिपिया जलती रही, तो ब्राह्मणों ने शास्त्रों को कंठस्थ कर लिया तथा उनका फिर से लेखन किया। वह समाज को एकजुट रखने का कार्य करता है। ब्राह्मण सामंजस्यवादी औऱ समन्वयवादी है वह जातिवादी नही हो सकता, वह राष्ट्रवादी है जो सनातन को बचाने के लिये संकल्पित है। आज ब्राह्मण को अपने संस्कार और परम्पराओं को सहेजने की जरूरत है। अपने बच्चों में बाल्यकाल से ही संस्कार डालना आवश्यक हो गया है।
जन्मदिन मनाने के लिए मोमबत्ती बुझाकर व केक काटकर बांटने वाली संस्कृति के मोहपाश से दूर रहने की आवश्यकता है। हमें अपनी एकजुट करने वाली संस्कृति को फिर से अपनाना होगा। यह वर्ग बदला लेने वाला नहीं बल्कि बदलाव लाने वाला है। उन्होंने प्रधानमंत्री के बारे में राहुल गांधी द्वारा दिए गए असंसदीय बयान की कड़े शब्दो में आलोचना भी की।
इस अवसर पर दर्जा प्राप्त राज्य मंत्री जगदीश मिश्रा बाल्टी बाबा, सांसद रीता बहुगुणा जोशी, पूर्व मंत्री डॉ अशोक बाजपेई, दिनेश दुबे, महानगर अध्यक्ष राजेंद्र मिश्रा, महापौर गणेश केसरवानी, पूर्व प्रदेश संयोजक चिकित्सा प्रकोष्ठ डॉ एल.एस ओझा, राष्ट्रीय परशुराम सेना ब्रह्मवाहिनी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पंडित विमल तिवारी, शिप्रा शुक्ला, राष्ट्रीय सचिव पंडित आशुतोष त्रिपाठी, जिलाध्यक्ष स्वरिका भारद्वाज, प्रदेश सचिव अलका पांडे, हरियाणा प्रदेश अध्यक्ष जंगशेर शर्मा, दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष श्याम बाबू मिश्रा, नरसिंह मंदिर के मुख्य महंत सुदर्शनाचार्य महाराज, राष्ट्रीय महासचिव राहुल शर्मा, बाजीराव पेशवा के वंशज प्रभाकर राव पेशवा, प्रदेश कार्यसमिति सदस्य मृत्युंजय तिवारी, अंतरराष्ट्रीय हिंदू महासंघ भारत के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुनील शुक्ला आदि उपस्थित रहे।
हिन्दुस्थान समाचार/विद्या कान्त/राजेश
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