कभी काशी में कांग्रेस का गढ़ रहे औरंगाबाद हाउस में भाजपा का प्रवेश

कभी काशी में कांग्रेस का गढ़ रहे औरंगाबाद हाउस में भाजपा का प्रवेश
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कभी काशी में कांग्रेस का गढ़ रहे औरंगाबाद हाउस में भाजपा का प्रवेश


कभी काशी में कांग्रेस का गढ़ रहे औरंगाबाद हाउस में भाजपा का प्रवेश


-पं. कमलापति त्रिपाठी के पोते सोमेशपति भाजपा में हुए शामिल, वंशजों का कांग्रेस से मोहभंग

वाराणसी, 05 मई (हि.स.)। कभी कांग्रेस का गढ़ रहे औरंगाबाद हाउस में भाजपा का प्रवेश हो गया है। औरंगाबाद के शक्ति केन्द्र रहे कांग्रेस के दिग्गज नेता और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री स्व. कमलापति त्रिपाठी के पोते सोमेशपति त्रिपाठी ने भाजपा का दामन थाम लिया है। रविवार शाम को भाजपा के स्थानीय जिलाध्यक्ष और एमएलसी हंसराज विश्वकर्मा, महानगर अध्यक्ष विद्यासागर राय, काशी क्षेत्र के मीडिया प्रभारी नवरतन राठी और अन्य नेता औरंगाबाद हाउस पहुंचे और सोमेशपति को पार्टी का पटका पहनाया।

सोमेशपति प्रदेश के उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक की उपस्थिति में भाजपा में शामिल हुए। सोमेशपति के पिता मंगलापति त्रिपाठी पंडित कमलापति त्रिपाठी के छोटे पुत्र थे। खास बात यह है कि औरंगाबाद हाउस के वर्तमान पीढ़ी का कांग्रेस से पहले ही मोहभंग हो चुका है। पंडित कमलापति त्रिपाठी के बड़े पुत्र लोकपति त्रिपाठी के पुत्र पूर्व एमएलसी राजेशपति त्रिपाठी और परपोते पूर्व विधायक ललितेशपति पहले ही कांग्रेस छोड़ तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। ललितेशपति इंडी गठबंधन से भदोही से लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश की भदोही सीट तृणमूल के लिए छोड़ी है।

हाउस के अन्य सदस्य भी कांग्रेस की डूबती नैया को देख अपने सियासी भविष्य को बनाने के लिए दिल और दल-बदल रहे हैं। भाजपा में शामिल सोमेशपति का कहना है कि भाजपा की कार्यशैली और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कार्यशैली से प्रभावित हुए हैं।

गौरतलब हो कि कांग्रेस के पुरोधा पंडित कमलापति के पुत्र लोकपति त्रिपाठी पांच बार विधायक और बहू चंद्रा त्रिपाठी (अब दोनों स्मृतिशेष) चंदौली से सांसद रहीं। पौत्र राजेशपति त्रिपाठी कई चुनाव लड़े लेकिन एक बार मीरजापुर से एमएलसी चुने गए। राजेशपति के पुत्र ललितेश पति मिर्जापुर मड़िहान से विधायक रह चुके हैं। पंडित कमलापति त्रिपाठी के पुत्र लोकपति के अलावा दूसरे पुत्र मायापति व मंगलापति राजनीति में सक्रिय नहीं रहे। मायापति जरूर 1984 में कांग्रेस से विद्रोह कर लखनऊ से शीला कौल के खिलाफ चुनाव लड़े। ऐसे समृद्ध राजनीतिक इतिहास के बावजूद औरंगाबाद हाउस के वर्तमान पीढ़ी ने कांग्रेस से दामन छुड़ा लिया।

हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर/आकाश

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