बीएचयू : किसानों ने वैज्ञानिकों से सीखा सूखा प्रबंधन का महत्व 

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बीएचयू : किसानों ने वैज्ञानिकों से सीखा सूखा प्रबंधन का महत्व 


- सीआरआईडीए हैदराबाद के निदेशक ने दिए उपयोगी सुझाव

- वर्षा जल संचयन और टिकाऊ खेती पर जोर

- किसान-वैज्ञानिक संवाद से मिली नई दिशा

मीरजापुर, 25 नवंबर (हि.स.)। किसानों और वैज्ञानिकों के बीच संवाद स्थापित करने और कृषि क्षेत्र में नई तकनीकों के प्रसार को बढ़ावा देने के उद्देश्य से सोमवार को कृषि विज्ञान संस्थान बीएचयू वाराणसी में किसान-वैज्ञानिक संवाद कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में मीरजापुर के दाती गांव के 30 किसानों ने भाग लिया।

कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य किसानों को जलवायु परिवर्तन और वर्षा आधारित खेती के प्रभावी तरीकों से परिचित कराना था। संवाद के दौरान जल संरक्षण, संचयन और सूखा प्रबंधन जैसे विषयों पर विस्तार से चर्चा हुई। किसानों को इन विषयों पर जागरूक करने के लिए विशेषज्ञों ने प्रायोगिक अनुभव और तकनीकी सुझाव साझा किए।

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता सीआरआईडीए (CRIDA) हैदराबाद के निदेशक डॉ. विनोद कुमार सिंह ने जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि में आने वाली चुनौतियों और उनके समाधान के तरीकों पर प्रकाश डाला। डॉ. सिंह ने कहा कि जल संरक्षण और प्रबंधन किसानों के लिए सबसे महत्वपूर्ण पहलू है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां वर्षा पर निर्भरता अधिक है। उन्होंने किसानों को बताया कि वर्षा जल को संरक्षित कर सूखा प्रभावित क्षेत्रों में भी फसल उत्पादन को बेहतर किया जा सकता है।

मीरजापुर के पहाड़ी ब्लाॅक अंतर्गत दाती गांव के 30 किसानों ने इस कार्यक्रम में सक्रिय भागीदारी की। उन्होंने कार्यक्रम में जल प्रबंधन और आधुनिक कृषि उपकरणों के उपयोग से जुड़ी समस्याओं पर सवाल पूछे। विशेषज्ञों ने इन सवालों के उत्तर दिए और किसानों को उनकी जमीन और फसल की उपयुक्तता के आधार पर सलाह दी।

विशेषज्ञों की सलाह

विशेषज्ञों ने किसानों को सिखाया कि वर्षा आधारित खेती को कैसे टिकाऊ बनाया जा सकता है। उन्होंने जल संरक्षण के लिए चेक डैम, जल पुनर्भरण गड्ढों और सतह जल संचयन तकनीकों को अपनाने का सुझाव दिया। साथ ही, सूखा प्रतिरोधी फसलों और जैविक खेती के महत्व को भी रेखांकित किया।

किसानों का अनुभव

किसानों ने इस संवाद को अत्यंत लाभकारी बताया। उन्होंने कहा कि इस प्रकार के कार्यक्रम उनकी सोच को नई दिशा देते हैं और उन्हें नई कृषि तकनीकों के बारे में जागरूक करते हैं। संवाद का समापन सभी किसानों और उपस्थित वैज्ञानिकों के धन्यवाद प्रस्ताव के साथ हुआ। इस कार्यक्रम को सफल बनाने में कृषि विज्ञान संस्थान की टीम और स्थानीय कृषि अधिकारियों का विशेष योगदान रहा। किसानों ने आग्रह किया कि भविष्य में भी ऐसे कार्यक्रम आयोजित किए जाएं ताकि वे लगातार वैज्ञानिकों से सीखते रहें और अपनी खेती में नए बदलाव ला सकें।

हिन्दुस्थान समाचार / गिरजा शंकर मिश्रा

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