गंगा किनारे श्रावणी उपाकर्म, सामूहिक उपनयन संस्कार के साथ बटुकों को मिला वेदयाध्ययन का अधिकार
-ऋषि परम्परा के सम्मान स्वरूप श्रावण पूर्णिमा को ही संस्कृत दिवस भी मनाया
प्रयागराज, 19 अगस्त (हि.स.)। झूंसी स्थित श्री स्वामी नरोत्तमानन्द गिरि वेद विद्यालय में श्रावणी उपाकर्म एवं सामूहिक उपनयन संस्कार हुआ। इस उपलक्ष्य में परमानन्द आश्रम परिसर स्थित श्री लक्ष्मी नारायण मन्दिर में वेदाध्ययन के लिए नव-प्रवेशित छात्रों का सामूहिक उपनयन संस्कार हुआ और इसी के साथ उन्हें वेदाध्ययन का अधिकार प्राप्त हुआ।
उपनयन संस्कार से पूर्व सभी बटुक बालकों का मुण्डन संस्कार किया गया। इसके बाद सभी बटुक बालकों और उनके माता पिता को पंचगव्य प्रासन्न करवाया गया और विधिपूर्वक उपनयन धारण कराकर वेद आरम्भ कराया गया। उपनयन संस्कार में सर्वप्रथम गौरी-गणेश पूजन किया गया। उसके बाद कलश, षोडश मातृका, नवग्रह पूजन, हवन, गायत्री मंत्र दीक्षा का आयोजन हुआ। बटुक छात्रों के माता-पिता, अभिभावक, स्थानीय लोगों ने बटुकों को भिक्षा देकर उनके वेदाध्ययन का शुभारम्भ किया।
इस अवसर पर आश्रम के महंत स्वामी विद्याधीशानन्द गिरि ने अपने संदेश में कहा कि यह संस्था वेदों के संरक्षण, सनातन धर्म व आध्यात्म के संवर्धन एवं भारतीय संस्कृति की पताका पूरे विश्व में फहराने का कार्य कर रही है। बच्चों को वेदों की शिक्षा के साथ आधुनिक एवं नैतिक मूल्यों की शिक्षा देकर संस्कारों की संजीवनी प्रदान की जाती है। अक्षर ब्रह्म की कृति प्रतिकृति होकर सभी बुद्धिजीवियों एवं ज्ञान प्राप्त करने वालों के लिए विद्या की मनीषा का मूल केंद्र वेद ही है। ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद एवं अथर्व वेद में नाद ब्रह्म समाया हुआ है।
परमानन्द आश्रम के उपाध्यक्ष स्वामी शरदपुरी ने बताया कि उपाकर्म का अर्थ है प्रारम्भ करना। वैदिक काल में यह वेदों के अध्ययन के लिए विद्यार्थियों का गुरु के पास एकत्रित होने का काल था। श्रावण शुक्ल पक्ष पूर्णिमा के शुभ दिन ’रक्षाबंधन’ के साथ ही श्रावणी उपाकर्म का पवित्र संयोग बनता है। आज श्रावण पूर्णिमा को ही संस्कृत दिवस भी मनाया गया। केंद्र सरकार के शिक्षा विभाग के निर्देश पर वर्ष 1969 से संस्कृत दिवस की शुरूआत हुई। हमारे ऋषियों ने संस्कृत में विविध ग्रंथों को सहेजा है, इसलिए ऋषि परम्परा के सम्मान स्वरूप श्रावण पूर्णिमा को संस्कृत दिवस के लिए चयन किया गया। इस दौरान विद्यालय के प्राचार्य वेदमूर्ति ब्रजमोहन पाण्डेय, वेदमूर्ति खेमलाल न्योपाने, वेदमूर्ति जीवन उपाध्याय, वेदमूर्ति गौरवचन्द्र जोशी, शिवानन्द द्विवेदी, अंजनी कुमार सिंह, कृष्ण कुमार मिश्र, अवनि सिंह, अजय मिश्र आदि मौजूद रहे।
इससे पूर्व पवित्र गंगा तट पर श्री स्वामी नरोत्तमानंद गिरि वेद विद्यालय, श्री विष्णु महावेद वेद पाठशाला एवं श्री राधाकृष्ण वेद विद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में श्रावणी उपाकर्म के तहत अपने गुरु के सान्निध्य में विधि विधान से वैदिक मंत्रोच्चार के बीच वेद छात्रों ने गाय के दूध, दही, घृत, गोबर और गोमूत्र तथा पवित्र कुशा से स्नान कर वर्षभर में जाने-अनजाने में हुए पापकर्मों का प्रायश्चित्त किया और ’प्रायश्चित्त रूप में हेमाद्रि स्नान संकल्प’ किया। स्नान बाद ऋषि पूजन, सूर्योपस्थान एवं आत्म संयम संस्कार के तहत यज्ञोपवीत पूजन तथा नवीन यज्ञोपवीत धारण किया गया।
-सनातन धर्म का सबसे प्रमुख विधान श्रावणी उपाकर्म : शांडिल्य महाराज
-शांडिल्य महाराज ने 51 आचार्यो के साथ गंगा में किया श्रावणी उपाकर्म
इसी क्रम में प्रयागराज के श्रृंगवेरपुर धाम में विद्यार्थी घाट पर आज विधि-विधान से श्रावणी उपाकर्म हुआ। जगदगुरू रामानुजाचार्य स्वामी श्रीनारायणाचार्य शांडिल्य महाराज श्रृंगवेरपुर पीठाधीश्वर ने बताया कि 51 आचार्यो और बड़ी संख्या में वेद बटुकों के साथ गंगा में खड़े होकर श्रावणी उपाकर्म किया।
जगद्गुरु शांडिल्य महाराज ने बताया कि श्रावणी उपाकर्म पद्धति से ब्राह्मण गंगा या किसी जलाशय में खड़े होकर विधि विधान से पूजा करते हैं। इस दौरान वर्ष भर अगर मन, कर्म और वचन से कोई गड़बड़ी हो गयी हो तो उसका प्रायश्चित करते हैं और उसके बाद पूजन करके जनेऊ धारण किया जाता है। उन्होंने बताया कि सनातन धर्म का सबसे प्रमुख विधान श्रावणी उपाकर्म है। इस दौरान आचार्य बलराम शुक्ला, आचार्य नागेश मिश्रा, अतुल मिश्रा, वेद प्रकाश त्रिपाठी आश्रम के बड़ी संख्या में बटुक शामिल हुए।
हिन्दुस्थान समाचार / विद्याकांत मिश्र / राजेश
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