बाराबंकी: लोधेश्वर महादेव मंदिर में लगा भक्तों का तांता, यहीं से कांवर यात्रा की हुई शुरूआत
बाराबंकी, 10 जुलाई (हि.स.)। श्रावण मास के प्रथम दिन सोमवार को लोधेश्वर महादेव मंदिर में भक्तों का तांता लगा हुआ है। दूर-दूर से लोग जलाभिषेक करने के लिए यहां आ रहे हैं। भक्तों की भीड़ को देखते हुए जिला एवं पुलिस प्रशासन ने व्यापक इंतजाम किए हैं।
उत्तर भारत के प्रसिद्ध तीर्थ स्थल लोधेश्वर महादेव मंदिर में स्थापित शिवलिंग का महाभारत कालीन इतिहास होने के नाते इसका पौराणिक महत्व है। अज्ञातवास के दौरान पाण्डव ने जनपद बाराबंकी के तहसील रामनगर के महादेवा में लोधेश्वर महादेव मंदिर के आसपास काफी समय बिताया था। रुद्र महायज्ञ के बाद महर्षि व्यास की प्रेरणा से शिवलिंग की स्थापना की थी जो कालंतर में गंडक नदी की बाढ़ में दब गया था। बाद में शिवभक्त लोधराम अवस्थी को उनके खेत में मिला था। इसी वजह से इस स्थान का नाम भी शिवभक्त लोधाराम से जुड़कर अब लोधेश्वर महादेव से जाना जाने लगा।
इतिहासकारों का मानाना है कि ये पांडव जब कौरवों के बनाए गए लाक्षाग्रह से किसी तरह बचकर बाराबंकी आये थे। बाराबंकी को प्राचीन नाम बाहबन और यहां से गुजरी नदी घाघरा जिसे गंडक भी कहा जाता था। पाण्डवों को नदी के किनार का स्थान रमणीक लगा और यहां कुछ दिन रुक गए।
महर्षि व्यास की सलाह पर माता कुंती ने यही रुद्र महायज्ञ किया। यज्ञ की सफलता के लिए शिवलिंग की स्थापना पर विचार हुआ। महाबली भीम बद्रीनाथ व केदारनाथ के पहाड़ी इलाके गए। वहां से दो शिवलिंग को बहंगी बनाकर उसे लेकर चले आए। तभी से बन्हगी जिसे कांवर कहते है लाने की प्रथा प्रचलित हुई और भक्त कांवर लेकर चलने लगे। एक शिवलिंग को महाराज युधिष्ठिर ने महादेवा में तथा दूसरे को माता कुंती ने किंतुर में स्थापित कर पूजा अर्चना की।
कालांतर में महादेवा का शिवलिंग नदी की बाढ़ की बलुई मिट्टी से दब गया और यहां खेत बन गए। लोधौरा के शिव भक्त लोधेराम अवस्थी शिव के परम भक्त थे। खेत पर एक दिन पानी लगा रहे थे तो एक स्थान पर पानी समाने लगा। लाख प्रयास करने के बाद पानी समाना बंद नही हुआ तो निराश होकर घर लौट आए।
रात में उनको स्वप्न आया और महाभारत कालीन शिवलिंग के दबे होने की जानकारी हुई। सुबह उस स्थान पर जब खुदाई की तो शिवलिंग के दर्शन हुए। इसके बाद वही पर उनकी मठिया बनवाकर पूजा शुरु हो गई। बाद मेे बाबा बेनी सागर ने एक मंदिर बनवाया। अब देखते-देखते इस मंदिर में जिले के ही नहीं बल्कि आसपास के जिलों से भक्त दर्शन और जलाभिषेक करने आते हैं। इस मंदिर में सावन,अगहन,फाल्गुनी,कजरी तीज पर मेले का आयोजन होता है। प्रत्येक सोमवार को भी यंहा भक्त आकर जल चढ़ाते है। इस बार सावन के साथ साथ मलमास ( पुरषोत्तम मास)लगा है, जिससे दो महीने इस मंदिर में प्रत्येक सोमवार भक्तो द्वारा पूजा अर्चना की जाएगी।
हिन्दुस्थान समाचार/पंकज/दीपक/बृजनंदन

