बलिया में भाजपा हैट्रिक तो सपा खोई जमीन पाने के प्रयास में

बलिया में भाजपा हैट्रिक तो सपा खोई जमीन पाने के प्रयास में
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बलिया में भाजपा हैट्रिक तो सपा खोई जमीन पाने के प्रयास में


बलिया, 09 मई (हि. स.)। मोदी लहर में समाजवाद का गढ़ रही बलिया संसदीय सीट पर 2014 में पहली बार भगवा फहराने वाली भाजपा 2024 में हैट्रिक की जुगत में है। जबकि सपा अपनी खोई जमीन वापस पाने की पुरजोर कोशिश कर रही है। वहीं, बसपा इस संसदीय सीट का मुकाबला त्रिकोणात्मक करने के लिए जातीय समीकरणों के भरोसे है।

1971 के लोकसभा चुनाव तक बलिया संसदीय सीट कांग्रेस का मजबूत किला थी। 1977 में चन्द्रशेखर ने पहली बार यहां समाजवाद का झंडा गाड़ा था। अलबत्ता 1984 में इंदिरा गांधी की मृत्यु के बाद सहानुभूति लहर में चंद्रशेखर कांग्रेस के जगन्नाथ चौधरी से मात खा गए थे। हालांकि, बाद के चुनावों में चन्द्रशेखर ने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। जीवन पर्यंत इस संसदीय क्षेत्र से चुनाव जीतते रहे। उनके निधन के बाद उनके पुत्र नीरज शेखर ने उपचुनाव में पहली बार जीत हासिल की थी। 2009 में भी यहां से जीतकर संसद पहुंचे थे। फिर वह दौर आया जिसकी बलिया के लोगों ने शायद उम्मीद नहीं की थी। मोदी लहर में बलिया से पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर के पुत्र नीरज शेखर को भाजपा के भरत सिंह के हाथों करारी हार मिली थी। उसके बाद 2009 में सपा ने समाजवादी दिग्गज चन्द्रशेखर के पुत्र और दो बार के सांसद नीरज शेखर का टिकट काटकर पूर्व विधायक सनातन पाण्डेय को चुनावी मैदान में उतारा था।

हालांकि, मोदी मैजिक में सपा को समाजवादी गढ़ बलिया में फिर से हार नसीब हुई। सपा के उम्मीदवार सनातन पाण्डेय को भाजपा के वीरेन्द्र सिंह मस्त ने पराजित किया था। 2019 के बाद देश में मोदी के प्रति रुझान को भांपते हुए नीरज शेखर भी भगवा दल भाजपा में शामिल हो गए थे। उन्होंने सपा के राज्यसभा सांसद के रूप में इस्तीफा दे दिया था। भाजपा ने भी उनके कद को देखते हुए राज्यसभा भेज दिया था। भाजपा ने इस बार पूर्व प्रधानमंत्री दिग्गज समाजवादी चेहरा रहे चन्द्रशेखर के बेटे नीरज शेखर को ही समाजवादी की उर्वर भूमि पर भगवा झंडा गाड़े रखने की जिम्मेवारी सौंपी है। जबकि इस बार भी सनातन पाण्डेय पर ही भरोसा जताया है। राजनीतिक पंडितों की मानें तो अभी तक भाजपा और सपा में सीधा मूक5दिख रहा है। ये अलग बात है कि बसपा ने यादव बिरादरी से उम्मीदवार के रूप में लल्लन यादव को उतारकर दलितों और अल्पसंख्यकों के सहारे मुकाबले को त्रिकोणात्मक बनाने को पूरी कोशिश की है। देखना दिलचस्प होगा कि कभी समाजवादी गढ़ रही बलिया में भाजपा हैट्रिक लगाती है या सपा वापसी करती है। या फिर बसपा दोनों के बीच सेंधमारी कर दिल्ली की राह पकड़ती है।

हिन्दुस्थान समाचार/पंकज/बृजनंदन

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