भारतीय संस्कृति की जड़ें इतनी गहरीं जिसे नष्ट करना इतना आसान नहीं : डॉ.दिनेश शर्मा

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भारतीय संस्कृति की जड़ें इतनी गहरीं जिसे नष्ट करना इतना आसान नहीं : डॉ.दिनेश शर्मा


भारतीय संस्कृति की जड़ें इतनी गहरीं जिसे नष्ट करना इतना आसान नहीं : डॉ.दिनेश शर्मा


अयोध्या, 27 सितंबर (हि.स.)। उत्तर प्रदेश के पूर्व उपमुख्यमंत्री एवं राज्स सभा के सदस्य डॉ. दिनेश शर्मा ने शुक्रवार को कहा कि विदेशी आक्रान्ताओं ने यहां आकर यहां की संस्कृति को नष्ट करने का प्रयास किया, किंतु भारतीय संस्कृति की जड़ें इतनी गहरी हैं कि इसको नष्ट करना आसान नहीं है।

वह साकेत महाविद्यालय में भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद,अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना एवं कामता प्रसाद सुंदरलाल साकेत स्नातकोत्तर महाविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित त्रिदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी 'भारतीय ज्ञान परंपरा' विषयक संगोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित होकर देशभर से पधारे इतिहा​सकारों को सम्बोधित किया।

उन्होंने कहा कि 'अंग्रेजों ने भी देश को लूटने के साथ—साथ यहां की संस्कृति पर आघात किया किंतु उनके भी प्रयास सफल नहीं हुए। जो भारत की जीवन जीने की कला है उस मानसिकता तक पहुंचना आसान नहीं है किंतु आक्रांताओं के अत्याचार के बाद हम अपनी बजाय विदेशी मानसिकता की उनकी दृष्टि के पीछे चलने को मजबूर हो गए। उसके पीछे चलने का हमारे लेखन पर भी प्रभाव पड़ा।

उन्होंने कहा कि तुलसीदास जी गुनगुनाते चले जा रहे हैं 'सियाराममय सब जग जानी। करहु प्रणाम जोग जुनि पानी'। तुलसीदास इस चैपाई को कहते हुए जिस समय अपने निवास पर जा रहे थे एक बालक ने उनसे कहा कि आगे सांड़ है उससे बचने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि सियाराम का नाम लेने से ही सारे संकट अपने आप मिट जाते हैं। तुलसी जब आगे जाते हैं तो सांड़ उन्हें चोटिल कर देता है। इस पर जब तुलसी किंकर्तव्य विमूढ़ हो जाते हैं तो हनुमान जी कहते है। इस लाइन में कमी नहीं है वास्तव में प्रभु राम ने तो बालक को भेजकर खतरे का संकेत पहले ही दे दिया था। डॉ. शर्मा ने कहा कि कोई भी संकट आए तो राम नाम प्रणाम करने पर संकट दूर हो जाता है। उन्होंने कहा कि हमारे शास़्त्रों में जीवन जीने की कला का बहुत सुन्दर विवेचन किया है। उन्होंने कहा कि सनातन संस्कृति को छिन्न भिन्न करने का प्रयास सफल नहीं होगा।

उद्घाटन सत्र के सारस्वत अतिथि हनुमत निवास के महंत डॉ मिथलेश नंदिनी शरण ने सभ्यता और संस्कृति को परिभाषित करते हुए व्यक्ति निर्माण की धारणा को प्रतिलक्षित किया। इतिहास संकलन योजना के अखिल भारतीय संगठन सचिव डॉ. बाल मुकुंद पांडेय ने कहा कि भारत के स्वाभिमान को शून्य करने का काम अंग्रेजों ने किया। एजुकेशन, इंग्लिश और एम्प्लॉयमेंट के माध्यम से अंग्रेजों ने भारत की सदियों पुरानी विस्वास की परंपरा को आघात किया।

भारतीय इतिहास अनुसन्धान परिषद के सदस्य प्रोफेसर आनंद शंकर सिंह ने अपने सम्बोधन में कहा कि सदियों से भारत का चिंतन मिट नहीं सका। अथर्वेद में राष्ट्र सन्दर्भित होता है लोक को ही ऋषियों ने राष्ट्र कहा। भारत में कला सिर्फ़ मनोरंजन का साधन नहीं है जबतक की उसमें लोकहित न हो।

इस अवसर पर हनुमत निवास मंहत मिथिलेशनंदनी शरण, महापौर महंत गिरीश पति त्रिपाठी, भाजपा बिहार के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गोपाल सिंह, उच्च शिक्षा आयोग के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर ईश्वर शरण विश्वकर्मा,साकेत महाविद्यालय के प्राचार्य प्रोफेसर अभय प्रताप सिंह, प्रोफेसर अरविंद पी जागखेड़कर, डा. ओम जी उपाध्याय, प्रोफेसर के के मोहम्मद, प्रोफेसर सुदर्शन राव समेत अन्य लोग उपस्थित रहे।

हिन्दुस्थान समाचार / पवन पाण्डेय

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