लक्ष्मण परशुराम संवाद सुनने से भाव विभोर हुए श्रोता

लक्ष्मण परशुराम संवाद सुनने से भाव विभोर हुए श्रोता
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लक्ष्मण परशुराम संवाद सुनने से भाव विभोर हुए श्रोता


औरैया, 19 नवम्बर (हि. स.)। क्षेत्र के बीहड़ी ग्राम गौहानी कलॉ में चल रही रामलीला कार्यक्रम के तीसरे दिन की रामलीला में धनुष भंग के बाद परशुराम लक्ष्मण संवाद सुन दर्शक रोमांचित हो गए। धनुष भंग लीला के मंचन में राजा जनक ने अपनी पुत्री सीता का विवाह करने के लिए स्वयंवर का आयोजन किया था, जिसमें देश देशांतर के राजाओं ने धनुष उठाने का असफल प्रयास किया। लेकिन सभी को निराशा ही हाथ लगी। राजाओं से कहा तजहु आस निज निज ग्रह जाहू, लिखा न विधि वैदेहि विवाहू। वहीं जनक ने कहा कि अब जनि कोऊ माखै भटमानी वीर विहीन मही मै जानी। जनक के शब्द सुन लक्ष्मण उत्तेजित हो गए, प्रभू राम ने शांत कराया और शांत हो बैठाया।

विश्वामित्र की आज्ञा पाकर श्री राम ने धनुष का खंडन कर दिया। धनुष टूटने पर हुई घनघोर गर्जना सुन महिद्रा चल पर तपस्या में लीन महारथी परशुराम की तंद्रा भंग हो गई। वह मिथिलापुरी जा पहुंचे और राजा जनक से धनुष तोड़ने वाले के बारे में जानकारी ली। परशुराम कहते हैं कि बेगि दिखाव मूढ न तो आजू ऊलटहुं महि जहंलौ युवराजू। श्री राम जी परशुराम को शांत करने का प्रयास करते हैं, लेकिन उनके शांन्त ना होने पर लक्ष्मण कहते हैं बहु धनुही तोरी लरिकाई कबहु न असरिष कीन्ह गोसाईं, यहि धनु पर ममता केहि हेतू। लक्ष्मण के शब्द सुनकर परशुराम का क्रोध अधिक बढ़ जाता है। वह लक्ष्मण को मारने के लिए दौड़ते हैं, जिसे देख प्रभु राम शांत कराते हैं। और उनसे क्षमा मांगते हैं। श्री राम व लक्ष्मण के स्वभाव को देखकर परशुराम जी विस्मय में पड़ जाते हैं। और उनको श्रीराम को अपना धनुष देते है जो अपने आप ही चल जाता है जिससे उनको अहसास हो जाता है कि भगवान ही है जिन्होेन धरा का भार हरने के लिये जन्म लिया है वह उनकी विनती करते हुये वन को चले जाते है। कार्यक्रम को सफल बनाने में रविन्द्र शास्त्री सहित समस्त रामलीला मंडली लगी हुई है।

हिन्दुस्थान समाचार / सुनील /बृजनंदन

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