पावन ग्रंथ गीता आज पूरे विश्व का मार्गदर्शन कर रही: शंकराचार्य वासुदेवानंद
प्रयागराज, 23 दिसम्बर (हि.स.)। श्रीमज्जयोतिष्पीठ के पूर्व ब्रह्मलीन शंकराचार्यों की स्मृति में उनकी जयन्ती के उपलक्ष्य में श्री ब्रह्मनिवास, शंकराचार्य मन्दिर में जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती ने श्रीमद्भागवत कथा में गीता का महत्व और वर्तमान युग में भी उसकी स्वीकार्यता बताया। कहा कि पावन ग्रंथ गीता आज पूरे विश्व का मार्गदर्शन कर रही है।
नौ दिवसीय आराधना महोत्सव में पूज्य शंकराचार्य मंदिर, अलोपीबाग में शनिवार को गीता जयंती और पूर्व श्रीमज्जयोतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य ब्रह्मलीन स्वामी विष्णुदेवानंद सरस्वती महाराज की जयन्ती का कार्यक्रम पूरी भव्यता के साथ सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम में गीता एवं स्वामी विष्णुदेवानंद सरस्वती के चित्र पर शंकराचार्य वासुदेवानंद सरस्वती ने माल्यार्पण कर आरती-पूजन किया। इसके उपरान्त उन्होंने कहा कि गीता वास्तव में मानव मात्र के दैनिक जीवन को संचालित और अनुशासित करती है। उन्होंने कहा कर्तव्य को गीता में प्रमुखता दी गई है। परिणाम की असफलता व सफलता के विषय में चिन्ता नहीं करना चाहिए। लक्ष्य निर्धारित करने के बाद जो भी आवश्यक हो उसे करना चाहिए। उसके परिणाम में सफल या असफल होने की चिन्ता नहीं करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि भारतीय जीवन पद्धति में गीता सत्य व असत्य तथा धर्म व अधर्म की कसौटी के रूप में स्वीकार की जाती है। क्या, कौन सा कार्य आचरण पुण्य है, कौन सा पाप है इसकी पूरी व्याख्या गीता से प्राप्त होती है। उन्होंने जगद्गुरू शंकराचार्य ब्रह्मलीन स्वामी विष्णु देवानंद सरस्वती द्वारा सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार व सुरक्षा के लिए किये गये संघर्षों का भी वर्णन किया।
श्रीमद्भागवत कथाव्यास जगद्गुरू रामानंदाचार्य, रामानंद दास ने कहा कि श्रीमद्भागवत ज्ञान का अथाह सागर है। क्या करें, क्या न करें इसकी शिक्षा और ज्ञान हमें श्रीमद्भागवत महापुराण से मिलती है। उत्तम आदर्श जीवन क्या है, माता-पिता, भाई-भाई, सेवक व स्वामी, राजा व प्रजा के बीच कर्तव्यबोध का ज्ञान हमें श्रीमद्भागवत महापुराण से होता है। कार्यक्रम में प्रमुख रूप से दंडी स्वामी विनोदानंद, पूर्व प्रधानाचार्य पं. शिवार्चन उपाध्याय, आचार्य पं. विपिन, आचार्य अभिषेक मिश्रा, आचार्य मनीष आदि उपस्थित रहे।
हिन्दुस्थान समाचार/विद्या कान्त/आकाश
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