वार्षिकी: 'पीडीए' फॉर्मूले पर चलकर सपा 2027 में सत्ता में वापसी की बना रही राह
लखनऊ, 27 दिसंबर (हि.स.)। उत्तर प्रदेश में लगभग 9 साल से समाजवादी पार्टी (सपा) सत्ता से बाहर है और प्रमुख विपक्षी दल की भूमिका निभा रही है। इस बार सपा 2027 के विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज कर सत्ता वापसी के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाने में अभी से जुट गई है। ऐसे में पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूले को और धार देने पर लगातार जोर दिया जा रहा है। पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव पीडीए को हथियार बनाकर चुनावी लड़ाई को जीतने की रणनीति बनाने में लगातार पार्टी नेताओं व पदाधिकारियों की सीख दे रहे हैं। साथ ही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार की विफलताओं (महंगाई, बेरोजगारी, असुरक्षा) के खिलाफ माहौल बनाने के लिए कार्यकर्ताओं को जनता के बीच जाने की नसीहत पर काम कर रहे हैं।
सपा ने उत्तर प्रदेश में 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव में सत्ता में वापसी के लिए अपनी मुख्य रणनीति के रूप में 'पीडीए' फॉर्मूले पर जोर दे रही है। पीडीए का अर्थ सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव द्वारा गढ़े गए (पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक) वर्गों का प्रतीक है। इस रणनीति का लाभ 2024 के लोकसभा चुनाव में भी सपा को उप्र में मिला था और 80 में से 37 सीटें जीतीं थी। इस फॉर्मूले को अपनाते हुए पार्टी का लक्ष्य 2027 में भी इसी सामाजिक समीकरण (जातिगत वोट बैंक) को भुनाने का है।
पार्टी की ओर से पीडीए वोट बैंक को डोरे डालने के लिए 2025 से सभी जिलों में बूथ स्तर तक पीडीए पंचायतें आयोजित करने की योजना बनाई है। इसके अंतर्गत घर-घर पर्चे बांट रही है और अपने पूर्व कार्यकाल (जैसे एक्सप्रेसवे, मेट्रो, लैपटॉप, एम्बुलेंस) के विकास कार्यों को जनता तक पहुंचा रही है, ताकि जनता से जुड़ाव हो सके। वहीं जमीनी स्तर तक पहुंचकर इन समुदायों के अधिकारों और भाजपा सरकार द्वारा कथित भेदभाव के बारे में जागरूकता बढ़ाई जा सके। वहीं कार्यकर्ताओं को जनता के दुख-दर्द में शामिल होने और भाजपा सरकार की विफलताओं (महंगाई, बेरोजगारी, असुरक्षा) के खिलाफ एकजुट कर सके और सत्ता में वापसी की राह आसान बन सके, पर जोर दे रहे हैं।
सामाजिक न्याय पर जोर
सपा का एजेंडा किसानों की दुर्दशा, श्रम अधिकार, युवा रोजगार और जाति-आधारित जनगणना की मांग पर केंद्रित है, जिसका उद्देश्य इन वंचित वर्गों को एकजुट करना है। हालांकि देश में चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) कराए जाने से अब सपा अपना वोट बैंक कटने को लेकर चुनाव आयोग पर लगातार हमलावर है।
संगठनात्मक बदलाव
अखिलेश यादव लगातार पार्टी कार्यकर्ताओं को एकजुट होकर बूथ स्तर तक सफलता हासिल करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। इसके पीछे पार्टी के पिछले तीन चुनावों में हारी हुई 108 सीटों पर विशेष ध्यान केंद्रित किया है और बूथ स्तर तक संगठन को मजबूत करने के लिए पर्यवेक्षकों को भेजा है। उन्होंने बाबा साहेब अंबेडकर के विचारों को आगे बढ़ाते हुए प्रभुत्ववादी सोच के खिलाफ पीडीए के महत्व पर जोर दिया जा रहा है। संक्षेप में बात करें तो सपा 2027 के लिए जमीनी स्तर पर काम कर रही है, पूर्व की सफलताओं को दोहराने और वर्तमान सरकार की कमियों को उजागर कर जनता का विश्वास जीतने का पूरा प्रयास कर रही है।
अखिलेश यादव ने इंडिया गठबंधन (आईएनडीआईए) के साथ तालमेल के संकेत भी दिया है। सपा प्रमुख ने 2027 का चुनाव भी उप्र में सहयोगियों के साथ मिलकर लड़ने की बात अपने बयानों में कही जा रही हैं।
सपा की (2024-2025) की प्रमुख राजनीतिक और चुनावी सफलताएं
लोकसभा चुनाव 2024 में ऐतिहासिक प्रदर्शन करते हुए समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश में 37 सीटें जीतकर एक महत्वपूर्ण सफलता हासिल की, जिससे वह 18वीं लोकसभा में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई। लोकसभा में पार्टी के मजबूत प्रदर्शन के बाद वित्तीय वर्ष 2024-25 में समाजवादी पार्टी का चंदा लगभग दोगुना हो गया।
दिसंबर 2025 में की प्रमुख घोषणाएं
अखिलेश यादव ने घोषणा की है कि यदि 2027 के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी की सरकार बनती है, तो वे गरीब महिलाओं को सालाना 40,000 रुपये की सहायता देंगे। अन्य चुनावी वादे (2024 के घोषणापत्र के अनुसार) ही हैं। जातिगत जनगणना कराने का वादा किया गया है। किसानों के लिए डॉ. स्वामीनाथन फॉर्मूले के आधार पर सभी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी देने का वादा किया गया है। सभी कर्मचारियों, यहां तक कि अर्धसैनिक कर्मियों के लिए भी, पुरानी पेंशन योजना(ओपीएस) बहाल करने का वादा किया गया है। सरकार बनने के दो साल के भीतर संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण सुनिश्चित करने का वादा किया गया है।
वरिष्ठ पत्रकार अंजनी निगम ने बताया कि समाजवादी पार्टी पीडीए की रणनीति के माध्यम से इन समुदायों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने में जुटी है, ताकि आने वाले 2027 में विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज की जा सके। लेकिन ऐसा विश्वास जनता में बना पाना फिलहाल मुश्किल दिख रहा है। राजनीतिक तौर पर बात करें तो जब तक अखिलेश खुद को केंद्रित न करके पार्टी के वरिष्ठ नेताओं व युवाओं काे आगे नहीं लाएंगे तब तक 2027 में जीत की राह आसान नहीं होगी। वहीं महंगाई, बेरोजगारी, असुरक्षा को लेकर भाजपा के खिलाफ माहौल बना पाना भी सपा के लिए बड़ी चुनौती होगी। अगर कार्यकर्ता जमीनी स्तर पर जनता में प्रभाव और विश्वास जीतने में कामयाब होंगे तो सपा की जीत का रास्ता आसान हो सकता है।
हालांकि, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और अन्य भाजपा नेताओं ने 'पीडीए' का अलग अर्थ निकाला है, जैसे 'दंगाई और अपराधी का प्रोडक्शन हाउस'। वहीं बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की प्रमुख मायावती ने भी 'पीडीए' को 'परिवार दल एलाइंस' कहा है।
हिन्दुस्थान समाचार / मोहित वर्मा

