थाल सजा बैठी हूं अंगना... शुभ मुहूर्त में मना भाई दूज पर्व

थाल सजा बैठी हूं अंगना... शुभ मुहूर्त में मना भाई दूज पर्व
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थाल सजा बैठी हूं अंगना... शुभ मुहूर्त में मना भाई दूज पर्व


- धनतेरस के साथ शुरू हुए पांच दिवसीय प्रकाश पर्व का समापन

मीरजापुर, 15 नवम्बर (हि.स.)। प्रकाश पर्व दीपावली अपने साथ पांच त्योहारों की श्रृंखला लेकर आता है। दीपावली से पहले धनतेरस फिर नरक चतुर्दशी को दिवाली अगले दिन दीपावली फिर अन्नकूट के बाद भाई दूज का पर्व मनाया जाता है। लेकिन, इस बार 14-15 नवम्बर दोनों दिन भाई दूज पर्व का मान होने की वजह से त्योहार थोड़े अस्त-व्यस्त हो गए। दीपावली के पांच दिवसीय उत्सव का आखिरी दिन कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि को भाई दूज के रूप में मनाया गया।

थाल सजा बैठी हूं अंगना...। भाई के लंबी उम्र की कामना हर बहनों के मन व दिलों में सदियों से रही है। भाई दूज रक्षाबंधन के बाद ऐसा त्योहार है, जो भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक है। भाई-बहन के स्नेह और प्रेम के प्रतीक भाई दूज को यम द्वितीया भी कहा जाता है। बुधवार को शुभ मुहूर्त में बहनों ने तिलक किया तो वहीं भाई भी अपनी बहनों को आकर्षक उपहार देना नहीं भूले। दरअसल, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि 14 नवम्बर को दोपहर 1ः10 बजे से 03ः20 बजे तक भाई दूज का पर्व मना तो वहीं 15 नवम्बर को सुबह 10ः45 बजे से दोपहर 01ः47 बजे तक मनाया गया। इस वजह से असमंजस की स्थिति थी। हालांकि मंगलवार व बुधवार को दोनों दिन भाई दूज मनाया गया। धनतेरस के साथ शुरू हुए पांच दिवसीय त्योहारों का भाई दूज के साथ समापन हो गया।

भाई-बहन के अटूट प्रेम को सूत्र में पिरोते भाई दूज पर्व को लेकर उत्साह

सबसे पहले बहनों ने चावल के आटे से चौक बनाई। इस चौक पर भाई को बिठाकर भाई की हथेली पर चावल का घोल लगाया, फिर इसमें सिंदूर, पान, सुपारी, मुद्रा आदि हाथों पर रख धीरे-धीरे भाई की लंबी आयु की कामना की। इसके बाद भाई की आरती उतार कलावा बांध मुंह मीठा कराया। भाई-बहन के अटूट प्रेम को सूत्र में पिरोते भाई दूज पर्व को लेकर जितना उत्साह बहनों में दिखा, उतने ही भाई भी उत्साहित दिखे।

मान्यता, भैया दूज के बिना अधूरी है दीपावली

ऐसा माना जाता है कि सूर्य देव और उनकी पत्नी छाया की दो संतान थीं। यमराज और यमुना दोनों में बहुत प्रेम था। बहन यमुना चाहती थी कि यमराज उसके घर भोजन करने आएं, लेकिन, भाई यमराज अक्सर उनकी बात को टाल देते थे। एक बार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष द्वितीया तिथि को यमराज यमुना के घर पहुंचे। यमुना घर के दरवाजे पर भाई को देख बहुत खुश हुईं। इसके बाद यमुना ने भाई यमराज को प्रेम पूर्वक भोजन करवाया। बहन के आतिथ्य को देख यमदेव ने उसे वरदान मांगने को कहा, जिस पर यमुना ने भाई यमराज से बहन ने वचन मांगा कि वह हर वर्ष कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष तिथि पर भोजन करने आएं। उस दिन यमराज ने अपनी बहन यमुना को वरदान दिया और कहा कि अब से यही होगा। तब से भैया दूज की परंपरा चली आ रही है। ऐसा माना जाता है कि दीपावली पर्व इस त्योहार के बिना अधूरा है।

हिन्दुस्थान समाचार/कमलेश्वर शरण/पदुम नारायण

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