संस्कृत भाषा ही सम्पूर्ण भारत की संस्कृति को एकीकृत करने में समर्थ : प्रो. प्रयाग नारायण मिश्र

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संस्कृत भाषा ही सम्पूर्ण भारत की संस्कृति को एकीकृत करने में समर्थ : प्रो. प्रयाग नारायण मिश्र


प्रयागराज, 14 अगस्त (हि.स.)। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के संस्कृत, पालि, प्राकृत एवं प्राच्य भाषा विभाग द्वारा आज से संस्कृत सप्ताह महोत्सव का शुभारम्भ हुआ। एक सप्ताह तक मनाए जाने वाले इस समारोह में संस्कृत भाषा में लेखन, सम्भाषण, निबन्ध, आशुभाषण एवं विविध कार्यक्रमों का आयोजन किया जायेगा।

इविवि की मुख्य जनसम्पर्क अधिकारी प्रो. जया कपूर ने बताया कि इस समारोह का उद्देश्य विभाग में संस्कृतमय वातावरण का निर्माण करना है। जिससे छात्र संस्कृत भाषा को अपनें व्यावहारिक जीवन में उपयोग करने में समर्थ हो सकें। संस्कृत भाषा के अपने जीवन में उपयोग करने से छात्र अपने सर्वांगीण व्यक्तित्व का विकास भी कर सकेंगे। उन्होंने बताया कि मुख्य अतिथि जगद्गुरु रामानन्दाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर के दर्शन शास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ.महेश शर्मा शास्त्री कोसलेन्द्र दास स्वतन्त्रता संग्राम में संस्कृत भाषा पर अपना उद्बोधन दिया।

संस्कृत विभाग के समन्वयक प्रो. प्रयाग नारायण मिश्र ने कहा कि संस्कृत भाषा एक वैज्ञानिक भाषा है जिसमें भाषागत भेद-प्रभेदों का नितान्त अभाव है। यही एक ऐसी भाषा है जिसके बोलने एवं लिखने में भेद नहीं होता है। यह भाषा जैसी बोली बोली जाती है वैसे ही लिखी बोली जाती है। संस्कृत भाषा ही सम्पूर्ण भारत की संस्कृति को एकीकृत करने में समर्थ है। संस्कृत भाषा के शब्द भारत के प्रायः सभी प्रांतीय भाषाओं में दृष्टिगत होते हैं जो यह बताता है कि भारत की संस्कृति को यदि जानना है तो वह संस्कृत भाषा के सम्यक् ज्ञान से ही जाना जा सकता है। संस्कृत भाषा का व्याकरण इतना सशक्त है जिसके ज्ञान से मनुष्य सम्पूर्ण विश्व की भाषाओं के मर्म को जानने में समर्थ हो जाता है।

डॉ.महेश शर्मा शास्त्री कोसलेन्द्र दास का कहना है कि संस्कृत की कवयित्री पंडिता क्षमाराव ने 1932 में प्रकाशित ’सत्याग्रहगीता’, ’उत्तर सत्याग्रहगीता’ एवं ’स्वराज्यविजयः’ नाम के तीन काव्य साहित्य जगत में सुविदित हैं। जब स्वतंत्रता आंदोलन चल रहा था तब क्षमाराव का ’सत्याग्रहगीता’ काव्य पेरिस से 1932 में इसलिए छपा था, क्योंकि उस समय भारत में उस कृति का प्रकाशन करवाना सरल नहीं था।

उन्होंने कहा कि संस्कृत विषयक चिन्तन परम्परा में रवींद्रनाथ ठाकुर, सुब्रह्मण्यम् भारती, वल्लतौल, सरोजिनी नायडू, मैथिलीशरण गुप्त, सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा जैसी कवि विभूतियों ने अपने-अपने लेखन में संस्कृत शास्त्रीय चिन्तन को आविर्भूत किया। विधुशेखर भट्टाचार्य, महादेव शास्त्री, गोपाल शास्त्री, दर्शनकेसरी नारायण शास्त्री खिस्ते, राव भट्टाचार्य और स्वामी भगवदाचार्य जैसे संस्कृत के महान कवि लेखकों ने स्वतन्त्रता आन्दोलन में संस्कृत चिन्तन को विशेष रूप से उद्भावित किया। इसी क्रम में मथुरा प्रसाद दीक्षित का ’भारतविजयम्’ नाटक प्रसिद्ध श्रीधर भास्कर वर्णेकर ने डॉ. राजेन्द्र प्रसाद पर ’राजेन्द्रतरंगिणी’ और जवाहर लाल नेहरू पर ’जवाहरतरंगिणी’ संस्कृत काव्य लिखे गए।

स्वागत अभिभाषण में प्रो.अनिल प्रताप गिरि ने संस्कृत भाषा में पढने-पढ़ाने पर बल दिया तथा संस्कृतमय वातावरण के निर्माण की प्रासंगिकता पर विशेष प्रकाश डाला। धन्यवाद ज्ञापन संस्कृत विभाग की सह-आचार्या डॉ.निरुपमा त्रिपाठी ने तथा संचालन संस्कृत विभाग के सहायक आचार्य डॉ लेखराम दन्नाना ने किया। कार्यक्रम में डॉ.रेणु कोछर शर्मा, डॉ.कल्पना, डॉ.विकास शर्मा, डॉ.संत प्रकाश तिवारी, डॉ.नंदिनी रघुवंशी, डॉ.तेज प्रकाश, डॉ.वालखड़े भूपेंद्र अरुण, डॉ.रजनी गोस्वामी, डॉ.प्रचेतस शास्त्री और डॉ.संदीप कुमार यादव, मीनाक्षी जोशी सहित 150 से अधिक विद्वान, छात्र-छात्राएं और शोधार्थी शामिल हुए।

हिन्दुस्थान समाचार / विद्याकांत मिश्र / मोहित वर्मा

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