नोटबंदी से शुरु हुई चर्चाओं को सात साल बाद भाजपा में शामिल होकर अजय कपूर ने दिया विराम
- बीच-बीच में जब भी चुनाव आते थे तो भाजपा में आने की शुरु हो जाती थी चर्चा
- राजनीतिक गलियारों में ऐसी ही चर्चाओं का मिला फायदा, मिला राष्ट्रीय सचिव का पद
कानपुर, 13 मार्च (हि.स.)। शहर के बड़े कारोबारी व लगातार तीन बार विधायक रहे अजय कपूर कानपुर में कांग्रेस पार्टी का अहम चेहरा माने जाते थे। तीसरी बार विधायक रहते हुए उस दौरान देश में नोटबंदी हो गई, जिसके बाद से राजनीतिक गलियारों में चर्चाएं शुरु हो गईं कि अजय कपूर भाजपा में शामिल हो सकते हैं, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
यही नहीं उसके बाद जितने भी अब तक अहम चुनाव हुए उस दौरान भी चर्चाओं का दौर शुरु हो जाता था। इसको लेकर कांग्रेस पार्टी ने उनका कद राष्ट्रीय फलक पर लाकर राष्ट्रीय सचिव बना दिया, लेकिन सवा सात साल बाद बुधवार को चर्चाओं को विराम लगाते हुए उन्होंने दिल्ली में भाजपा का दामन थाम लिया।
कानपुर की राजनीति में वर्तमान में विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना और अजय कपूर ऐसे दो राजनेता हैं, जिनका जातीय समीकरण न होते हुए भी कद्दावर हैं। यही नहीं दोनों सिंधी समाज से आने वाले आपस में रिश्तेदार हैं। सतीश महाना जहां भाजपा से राजनीति कर लगातार आठ बार विधायक बनें तो वहीं अजय कपूर करीब 35 वर्षों से कांग्रेस में रहकर लगातार तीन बार विधायक बने और लगातार दो बार से भाजपा की लहर के बावजूद मुकाबले का चुनाव लड़ा। लेकिन अजय कपूर की भाजपा में आने की चर्चाओं का दौर सबसे पहले वर्ष 2016 में उस समय शुरु हुआ जब देश में नोटबंदी लागू की गई। इसके पीछे का सच पूरा शहर जानता था क्योंकि यह शहर के बड़े कारोबारी भी हैं। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और 2017 का विधानसभा चुनाव लड़ा और भाजपा के महेश त्रिवेदी से हार का सामना करना पड़ा। 2019 का जब लोकसभा चुनाव आया तो फिर वहीं चर्चाएं राजनीतिक गलियारों में होने लगी, जिसका नुकसान पूर्व केन्द्रीय मंत्री व कानपुर नगर लोकसभा सीट से उम्मीदवार श्रीप्रकाश जायसवाल को उठाना पड़ा और भाजपा बड़ी जीत हासिल कर ली। इसके बाद 2022 के विधानसभा चुनाव कहा जाने लगा कि किदवई नगर सीट से अजय कपूर भाजपा के बैनर चुनाव लड़ेगें, और महेश त्रिवेदी कानपुर देहात की सिकंदरा सीट से।
इन सब कयासों के बावजूद भाजपा ने महेश त्रिवेदी पर विश्वास जताते हुए किदवई नगर से दोबारा उम्मीदवार बना दिया तो अजय कपूर कांग्रेस से चुनाव मैदान में आ गये। अजय कपूर ने चुनाव अच्छा लड़ा लेकिन जीत नहीं सके। एक साल बाद जब महापौर का चुनाव आया तो फिर चर्चाओं का दौर शुरु हुआ कि किसी भी समय अजय कपूर भाजपा में शामिल होकर महापौर का चुनाव लड़ेगें, लेकिन महापौर की सीट महिला हो गई, जिससे बात नहीं बन सकी। राजनीतिक गलियारों में ऐसी चर्चाएं कांग्रेस पार्टी की हाईकमान तक भी बराबर पहुंच रही थी, तो पार्टी ने अजय कपूर को राष्ट्रीय सचिव पद की जिम्मेदारी देते हुए बिहार का सह प्रभारी बना दिया।
लोकसभा टिकट के लिए पार्टी से नहीं मिल रही थी हरी झण्डी
अजय कपूर को लेकर करीब सवा सात साल तक भाजपा में शामिल होने की चर्चाएं चलती रहीं, लेकिन वह बार-बार अपने को कांग्रेस का सिपाही बताते रहें। लेकिन जब लोकसभा चुनाव नजदीक आ गया और उन्होंने कानपुर नगर सीट से उम्मीदवारी कर दी तो सूत्र बताते हैं कि पार्टी ने मना कर दिया। इस पर एक बार फिर उनके भाजपा में शामिल होने की चर्चाएं होने लगी और अन्तत: बिहार बीजेपी के प्रभारी विनोद तावड़े के सामने बुधवार को दिल्ली में भगवा बिग्रेड में शामिल हो गये। बताया जा रहा है कि बिहार से ही विनोद तावड़े और अजय कपूर के बीच राजनीतिक खिचड़ी पकी और सवा सात साल की चर्चाओं का विराम लग गया।
हिन्दुस्थान समाचार/अजय सिंह/दीपक/बृजनंदन
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