काशी और तमिलनाडु में कोई सांस्कृतिक दूरी नहीं : शिवश्री स्कन्द प्रसाद

WhatsApp Channel Join Now
काशी और तमिलनाडु में कोई सांस्कृतिक दूरी नहीं : शिवश्री स्कन्द प्रसाद


—काशी तमिल संगमम—4 में समृद्ध नारी–समृद्ध भारत के दृष्टिकोण विषयक शैक्षणिक सत्र

वाराणसी, 13 दिसंबर (हि.स.)। उत्तर प्रदेश के वाराणसी में चल रहे काशी तमिल संगमम 4.0 में शनिवार को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के पंडित ओंकारनाथ ठाकुर सभागार में “समृद्ध नारी–समृद्ध भारत” विषयक शैक्षणिक सत्र का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू), आईआईटी (बीएचयू) तथा काशी तमिल संगमम की यात्रा पर आधारित एक संक्षिप्त वृत्तचित्र का प्रदर्शन किया गया, जिसने प्रतिभागियों को इस पहल की शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से परिचित कराया।

इस अवसर पर तमिल संगीतज्ञ शिवश्री स्कन्द प्रसाद ने कहा कि उन्हें काशी और तमिलनाडु में कोई सांस्कृतिक दूरी महसूस नहीं होती, क्योंकि दोनों ही आध्यात्मिक परंपराओं में गहराई से रचे-बसे हैं। उन्होंने महिलाओं की ऐतिहासिक यात्रा का उल्लेख करते हुए कहा कि वैदिक काल में वे ज्ञान और विवेक की संवाहक थीं, जबकि मध्यकाल में उन्हें अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ा। उन्होंने कहा कि समृद्धि स्वयं स्त्री तत्व श्री में निहित है और “भक्ति” वह साझा भाषा है, जो भारत को क्षेत्रीय और भाषाई भिन्नताओं से परे एक सूत्र में बांधती है।

उन्होंने कहा कि महिलाएं ऐतिहासिक रूप से परिवार की वित्त प्रबंधक और भावनात्मक आधार रही हैं। स्वामी विवेकानंद के विचारों का स्मरण करते हुए उन्होंने कहा कि महिलाओं को शिक्षित करने से राष्ट्र को दिशा मिलती है और धर्म सदैव अर्थ से पहले आता है। उन्होंने 300 छात्रों की काशी यात्रा का भी उल्लेख किया, जो तमिल भाषा सीखने के उद्देश्य से काशी आएंगे।

सत्र में बीएचयू की मीनाक्षी झा (सीडब्ल्यूएससी, एफएसएस ) ने महिलाओं के आंदोलनों की जड़ों को औपनिवेशिक काल से जोड़ते हुए बताया कि मद्रास प्रेसीडेंसी महिलाओं के संगठनों का प्रमुख केंद्र रही। उन्होंने महात्मा गांधी से प्रेरित सत्याग्रह आंदोलनों में तमिल महिलाओं की सक्रिय भागीदारी का उल्लेख किया, जिसमें दक्षिण अफ्रीका के अनुभवों का भी प्रभाव था। उन्होंने कहा कि आर्थिक रूप से स्वतंत्र और सशक्त महिलाएं भारत को एक सशक्त राष्ट्र बनाती हैं।

शैक्षणिक सत्र में ही पद्मश्री रजनीकांत (जीआई मैन) ने इस अवसर को गर्व और पुण्य का विषय बताया। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के “वोकल फॉर लोकल” दृष्टिकोण को महिला सशक्तिकरण, हथकरघा और पारंपरिक शिल्प से जोड़ते हुए प्रस्तुत किया। उन्होंने काशी की ओर सहस्राब्दियों से चले आ रहे सभ्यतागत प्रवाह की चर्चा की और बताया कि काशी विश्वनाथ धाम के पुनर्विकास के कारण पिछले चार वर्षों में लगभग 26 करोड़ से अधिक श्रद्धालु एवं पर्यटक काशी आए हैं।

प्रो. मनीषा मेहरोत्रा (बीएचयू अर्थशास्त्र विभाग) ने भौगोलिक संकेतक (जीआई ) टैग के महत्व को बताया। उन्होंने कहा कि स्वदेशी उत्पादों की पहचान, संरक्षण और वैश्विक प्रचार में सहायक है। उत्तर प्रदेश के 70 जीआई टैग वाले उत्पादों में से 33 वाराणसी से संबंधित हैं। बीएचयू हिन्दी विभाग के प्रो. आशीष त्रिपाठी ने अतिथियों और मेहमान तमिल महिलाओं का स्वागत किया। उन्होंने तमिल को भारत की सबसे प्राचीन जीवंत भाषाओं में से एक बताते हुए कहा कि वैज्ञानिक साक्ष्य इसे संस्कृत से भी अधिक प्राचीन मानते हैं। उन्होंने इस सत्र को तमिल और प्राकृत भाषिक परंपराओं के प्रतीकात्मक संगम के रूप में रेखांकित किया। उन्होंने रानी वेलु नचियार, डॉ. मुथुलक्ष्मी रेड्डी, मुवालूर राममिर्थम, एम. एस. सुब्बुलक्ष्मी तथा डॉ. इंदिरा नुई जैसी प्रेरणादायी तमिल महिला विभूतियों का स्मरण भी किया। इसके पहले कार्यक्रम का शुभारंभ बीएचयू के कुलगीत से हुआ। सत्र में जगन मोहन राधा रमण ने भक्ति गीतों की प्रस्तुति की। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. आलोक पांडेय (आईआरडीपी, बीएचयू) ने किया।

---------------

हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी

Share this story