फसल अवशेष प्रबंधन पर वैज्ञानिकों ने ग्रामीणों को दी तकनीकी जानकारी
कानपुर, 14 अक्टूबर (हि.स.)। रवी की फसल लगभग पक कर तैयार हो चुकी है और खासकर धान की फसल पर सबसे अधिक पराली निकलती है। ऐसे में किसान भाई पराली को खेतों में मिलाएं तथा खेत की उर्वरा शक्ति बढ़ाएं एवं अपनी पराली में बिल्कुल भी आग न लगाएं। इससे पर्यावरण प्रदूषित होता है एवं आवश्यक पोषक तत्वों का नुकसान होता है। यह बातें शुक्रवार को सीएसए के मृदा वैज्ञानिक डॉ. खलील खान ने किसानों से कही।
चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (सीएसए) के अधीन संचालित कृषि विज्ञान केंद्र दलीप नगर द्वारा ग्राम पिटूरा समायूं में फसल अवशेष प्रबंधन पर ग्राम स्तरीय जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया। डॉ. ए के सिंह ने बताया कि फसल अवशेष हमारे खेतों के लिए भोजन का काम करते हैं जो खेत की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के साथ-साथ उस में उत्पादित उपज की गुणवत्ता को भी बढ़ाते हैं।
इसी क्रम में पशु पालन वैज्ञानिक डॉक्टर शशीकांत द्वारा बताया गया कि फसल अवशेष प्रबंधन की कई मशीनें हैं। जो पराली को आसानी से खेत में मिला सकते हैं तथा वेस्ट डी कंपोजर द्वारा फसल कम समय में पराली को सड़ा कर आगामी फसल बोई जा सकती है। यह मशीनें हैप्पी सीडर,सुपर सीडर एवं मल्चर आदि है।
उन्होंने कहा कि फसल अवशेष को भूसे के रूप में भी बनाकर पशुओं के चारे के लिए प्रयोग करें। कार्यक्रम में गांव के किसानों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया एवं खेती किसानी, पशुपालन तथा बागवानी से संबंधित अपनी शंकाओं का समाधान भी किया गया।
कार्यक्रम के अंत में गांव में एक फसल अवशेष प्रबंधन जागरूकता रैली भी निकाली गई। किसानों ने शपथ ली कि फसल अवशेषों को आग नहीं लगाएंगे। कार्यक्रम की अध्यक्षता ग्राम प्रधान राजेश सिंह ने की। इस अवसर पर पूर्व प्रधान जगदीश सिंह राजपूत, प्रगतिशील किसान उदय सिंह राजपूत, सीताराम, भगवान सिंह, जयराम एवं उदय प्रताप सहित एक सैकड़ा किसान उपस्थित रहे।
हिन्दुस्थान समाचार/महमूद

