थियेटर जीवन्त संवाद एवं आत्म विस्तार का माध्यम : प्रवीण शेखर

थियेटर जीवन्त संवाद एवं आत्म विस्तार का माध्यम : प्रवीण शेखर


प्रयागराज, 21 सितम्बर (हि.स.)। आर्य कन्या डिग्री कॉलेज में लोक नाटक एवं शिष्ट नाटक विषय पर व्याख्यान तथा परिचर्चा का आयोजन किया गया। मुख्य वक्ता रंगमंच विशेषज्ञ प्रवीण शेखर ने अभिनय तथा रंगमंच की बारीकियां समझाते हुए बताया कि रंगमंच लोक से जुड़ा होता है। रंगमंच, लोक और शिष्टता तीनों आपस में गुथे हुए हैं। थियेटर जीवन्त संवाद और आत्म विस्तार का माध्यम है।

आर्य कन्या महाद्यिलय में 14 सितम्बर से चल रहे हिन्दी पखवाड़े के अन्तर्गत बुधवार को व्याख्यान में हिन्दी विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय डॉ सुनील कुमार सुधांशु ने छात्राओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि साहित्य का जीवन में इसलिए महत्व है कि इसके शिष्ट होने का भाव आता है। नाटक दृश्य विधा है, इसमें संवाद होता है। जो दृश्य -श्रव्य दोनों माध्यमों से कायम होता है।

अध्यक्षता करते हुए अध्यक्ष, शासी निकाय पंकज जायसवाल ने कहा कि नाटक विधा लोक विधा है, जन प्रचलित है। लोक में प्रचलित धरोहर गीतों, आदि को सहेजने की आवश्यकता है। समय के साथ यदि लोक संस्कृति लुप्त हो जाएगी तो यह एक बड़ी क्षति होगी। आर्य कन्या महाविद्यालय की प्राचार्या प्रो. अर्चना पाठक ने कहा कि कोई कृति नाटक रूप में सामने आती है तो उसकी कथा को समझना सरल हो जाता है। जनसमूह सीधे साहित्य से जुड़ जाता है। यह नाटक विधा की विशेषता है।

आर्य कन्या समूह की निदेशिका डॉ. रमा सिंह ने छात्राओं को प्रोत्साहित करते हुए कहा कि अपनी बात को प्रेषित करने का सबसे सशक्त माध्यम नाटक है। अपना किरदार निभाते हुए हम बड़ी से बड़ी बात आसानी से कह जाते हैं। लोक नाटक सीधे हृदय से जोड़ते हैं।

कार्यक्रम का संचालन डॉ शशि कुमारी, संयोजन डॉ. मुदिता तिवारी ने तथा आभार ज्ञापन विभागाध्यक्ष डॉ.कल्पना वर्मा ने किया। इस अवसर पर डॉ. ममता गुप्ता, डॉ. अन्जू, डॉ. नीलांजना, डॉ. रंजना त्रिपाठी, डॉ. दीपशिखा, डॉ. ज्योति, डॉ. सव्यसांची, डॉ. श्याम कान्त, डॉ. अमित, डॉ. स्मिता, डॉ. निशा व शिखा सहित बड़ी संख्या में छात्राएं उपस्थित रहीं।

हिन्दुस्थान समाचार/विद्या कान्त

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