कभी भगवा खेमे का गढ़ रही राजा जौनपुर की हवेली
राजा यादवेंद्र दत्त चुने गए थे लोकसभा सदस्य
जौनपुर, 14 मई (हि.स.)। सिरजे ए हिंद के नाम से प्रतिष्ठित शहर जौनपुर न केवल शिक्षा का अहम केंद्र रहा बल्कि यहां बुना जाने वाला सियासी ताना बाना भी देश के राजनीति की दशा व दिशा तय करता रहा।
शहर में स्थित राजा जौनपुर की हवेली स्वतंत्र भारत की राजनीति में भगवा खेमे का लंबे अर्से तक गढ़ रही। देश की आजादी के बाद शुरुआती दौर में जब कांग्रेस लगातार क्लीन स्वीप करते हुए विपक्ष को हाशिये पर सीमित रखती थी तो 1962 के लोकसभा चुनाव में यहां से चुनाव जीतकर जनसंघ के ब्रम्हजीत सिंह ने कांग्रेस के विजय रथ पर लगाम लगाई थी। ब्रह्मजीत सिंह के असामयिक निधन के बाद जब उपचुनाव की नौबत आई तो जनसंघ के पुरोधा पंडित दीनदयाल उपाध्याय यहां से मैदान में उतरे। उनके चुनाव प्रचार अभियान में अटल बिहारी वाजपेयी ने इसी राजा साहब की हवेली में कई दिनों तक डेरा जमाकर प्रचार को धार दिया था। हालांकि पंडित जी को कांग्रेस के जमीनी कद्दावर नेता राजदेव सिंह से शिकस्त खानी पड़ी थी। लेकिन इसी समय से यह हवेली एक बार जब भगवा खेमे का सियासी गढ़ बनी तो लंबे अर्से तक बनी रही।
जनसंघ से लगायत भाजपा तक यहां सियासी ताना बाना बुना जाता रहा। राजा जौनपुर यादवेंद्र दत्त दूबे न केवल भगवा खेमे से विधानसभा व लोकसभा में जौनपुर का प्रतिनिधित्व किया बल्कि संसद में उनके ओजपूर्ण भाषणों व विचारों का भी अलग रुतबा रहा। समय बदला परिस्थितियां बदंली और इसी के साथ राज हवेली का सियासी रुतबा भी अतीत के पन्नों में सिमट गया।
राजा जौनपुर के महल में बड़े नेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय व अटल बिहारी बाजपेयी एक एक महीने तक उसी महल में रुक कर पार्टी के रणनीति बनाते थे।
इस बारे में हिन्दुस्थान समाचार प्रतिनिधि से मंगलवार को बात करते हुए महल के प्रतिनिधि डॉ कैप्टन अखिलेश्वर शुक्ला ने बताया कि जनसंघ के बाद आरएसएस की स्थापना 1925 में हुई थी,आरएसएस से वे जुड़े,1951 में जनसंघ की स्थापना में राजा साहब की अहम भूमिका रही। जनसंघ की स्थापना के समय पूरी बागडोर राजा जौनपुर के हाथ में दी गयी थी। अंग्रेजो के संघर्ष के बाद जब भारत आजाद हुआ था। रात के 12 बजे के बाद दिग्गजों इसी हवेली में नेताओ की बैठक होती थीं । विचार किया जाता था कि भारत की आत्मीयता की रक्षा कैसे किया जाये । राजा जौनपुर को आरएसएस के लोग केंद्र बनाए थे। लोगों का मानना था कि पूरे देश की राजनीति उत्तर प्रदेश से हो सकता है। जो भी बड़े नेता होते थे वे अपना अधिकांश समय राजा जौनपुर के महल में ही देते थे। राजा जौनपुर को उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी दी गयी थी।
अटल बिहारी वाजपेयी के बारे में बताते हुए डॉ शुक्ल ने बताया कि बाजपेयी जी को नागपुर से राजा जौनपुर को एक संदेश देने के लिए जौनपुर भेजा गया था,लेकिन एक संदेश कहने में अटल जी को एक महीना लगा था। जब एक महीना बीत गया तो राजा जौनपुर ने अटल जी से कहा कि आपको एक महीने आये हो गए हैं। कुछ बात हो तो बताएं। अटल जी ने बड़े सम्मान के साथ कहा कि महाराज कहना तो है लेकिन हम कह नहीं पा रहे थे। आप पूछ रहे हैं तो मैं कहे देता हूँ पार्टी के लोगों ने कहा कि आप चुनाव को सम्पन्न कराएं। राजा ने मुस्कुराते हुए कहा कि इस बात को आप नहीं बोल पा रहे थे , जो महीने लग गए बोलने में। इसके बाद पूरे चुनाव का संचालन राजा जौनपुर ने अपने हाथ में ले लिया और चुनाव को सम्पन्न कराया।
चुनाव को सम्पन्न कराने की जिम्मेदारी मिलते ही राजा जौनपुर ने राज बहादुर यादव को बुलाते हुए कहा कि जो हमारी 300 एकड़ की ऊसर जमीन पड़ी है। उसको बेच कर पैसे का इंतेजाम करिये। मौजूदा वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय उसी जमीन पर बना है। राजा साहब को 1952 में स्टार प्रचारक बनाया गया।
दो बार लोकसभा व तीन बार विधानसभा सदस्य रहे राजा जौनपुर
राजा जौनपुर दो बार लोकसभा व तीन बार विधान सभा के सदस्य रहे । एक बार लोकसभा के सदन में विदेश नीति पर बोल रहे थे,उनका समय पूरा हो गया था। पूरा सदन उनके भाषण को एकाग्र होकर सुन रहा था। कांग्रेस के नेता स्टीफन ने उन्हें रोकने का प्रयास करते हुए कहा कि राजा साहब आपका समय खत्म हो गया और दूसरे को बोलने का मौका दिया जाये।इस पर अन्य दलों के नेताओं ने कहा कि आप बोलें राजा साहब । हम लोगों का भी समय आप ले लें।
हिन्दुस्थान समाचार प्रतिनिधि से जानकारी साझा करते हुए पूर्व विधायक सुरेंद्र सिंह ने बताया कि प्रदेश की व जौनपुर की राजनीति में राजा जौनपुर का अहम योगदान होता था। जब पंडित दीनदयाल उपाध्याय जौनपुर से चुनाव लड़ रहे थे,कई बड़े नेताओं का राजा जौनपुर के महल में डेरा रहता था। उनके नेतृत्व में पं. दीनदयाल उपाध्याय चुनाव लड़े लेकिन उनको हार का सामना करना पड़ा। राजा साहब दो बार लोकसभा व तीन बार विधानसभा के सदस्य रहे।
इनसेट -
जौनपुर लोकसभा चुनावों पर अबतक एक नजर.
वर्ष विजेता दल
1952- द्वि सदस्यीय (1)आचार्य बीरबल सिंह भा.रा.कांग्रेस
1952 -(2)गनपत राम
1957 - द्वि सदस्यीय (1)आचार्य बीरबल सिंह भा.रा.कांग्रेस
1957 -( 2)गनपत राम
1962- ब्रह्मजीत सिंह जनसंघ
1963 -उपचुनाव राजदेव सिंह भा0रा0 कांग्रेस
1967 -राजदेव सिंह भा.रा. कांग्रेस
1971 -राजदेव सिंह भा.रा. कांग्रेस
1977 -राजा यादवेंद्र दत्त जनता पार्टी
1980 -डॉ. यू.ए.आजमी भा.लो.द.
1984- कमला प्रसाद सिंह भा.रा. कांग्रेस
1989- राजा यादवेंद्र दत्त भाजपा
1991 -अर्जुन सिंह यादव जनता दल
1996 -राजकेशर सिंह भाजपा
1998- पारस नाथ यादव सपा
1999 -स्वामी चिन्मयानंद भाजपा
2004- पारस नाथ यादव सपा
2009 -धनंजय सिंह बसपा
2014 -डॉ. के पी सिंह भाजपा
2019- श्याम सिंह यादव बसपा- सपा
हिन्दुस्थान समाचार/विश्व प्रकाश/सियाराम
हमारे टेलीग्राम ग्रुप को ज्वाइन करने के लिये यहां क्लिक करें, साथ ही लेटेस्ट हिन्दी खबर और वाराणसी से जुड़ी जानकारी के लिये हमारा ऐप डाउनलोड करने के लिये यहां क्लिक करें।