कानपुर में एक साल में हुई 103 पुरुष नसबंदी


- आशा कार्यकर्ता नीलम और संगिनी विजय की प्रेरणा से 10 पुरुषों ने कराई नसबंदी
कानपुर, 26 मई (हि.स.)। पुरुष नसबंदी से न ही शारीरिक कमजोरी आती है और न ही पुरुषत्व का क्षय होता है। दंपति जब भी चाहे इसे अपना सकते हैं। रोज के काम काज पर कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता है। पुरुष नसबंदी के बाद शरीर में कोई भी बदलाव नहीं होता है। कुछ ऐसा ही सन्देश देकर जिले के बिल्हौर ब्लॉक क्षेत्र की आशा कार्यकर्ता नीलम सिंह और आशा संगिनी विजय लक्ष्मी पुरुष नसबंदी के क्षेत्र में मिसाल बन चुकी हैं। वित्तीय वर्ष 2022-23 में सर्वाधिक पुरुष नसबंदी करवाकर सम्मानित हुईं हैं। इन दोनों कार्यकर्ताओं ने कुल 10 पुरुष नसबंदी करवाई हैं। वहीं जनपद की बात करें तो वित्तीय वर्ष में 103 पुरुषों ने नसबंदी कराई है।
ब्लॉक के अनई गांव की आशा कार्यकर्ता 38 वर्षीय नीलम सिंह बताती हैं कि वर्ष 2015 में उन्होंने योगदान देना शुरू किया। उनके घर में एक बेटा और बेटी है। नीलम का कहना है कि पुरुष नसबंदी के लिए योग्य दंपति की पहचान बहुत आवश्यक है। 55 वर्षीय आशा संगिनी विजय लक्ष्मी ने बताया कि वर्ष 2006 में आशा कार्यकर्ता के रूप में चयन हुआ था। उनके बेहतर कार्यों को देखते हुए 2013 में आशा संगिनी के पद पर तैनात किया गया। उनका कहना है कि लोगों ने यह मान लिया था कि परिवार नियोजन की जिम्मेदारी सिर्फ महिलाओं की है। पुरुष नसबंदी की कोई बात नहीं करना चाहता। उन्होंने इस भ्रांति को तोड़ने तथा लड़का-लड़की में भेदभाव न करते हुए सर्वप्रथम अपने पति की नसबंदी कराकर नजीर पेश की।
उन्होंने बताया कि जिस परिवार में दो बच्चे हो जाते हैं, वह उस परिवार के पुरुष से पहले बात करती हैं। सबसे पहले उन्हें बताती हैं कि पत्नी के स्वास्थ्य व सुखी जीवन के लिए परिवार नियोजन जरूरी है। महिला की अपेक्षा पुरुष नसबंदी काफी सुरक्षित व सरल है। शारीरिक रूप से इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है। उनके पति ने भी नसबंदी कराई है। उनकी इन बातों का असर ज्यादातर पुरुषों पर पड़ रहा है।
झिझक की दूर
दो बच्चों के बाद पुरुष नसबंदी करवाने वाले 32 वर्षीय विनायक साहू का कहना है कि उनके दो बच्चे हैं। छोटा बच्चा दो साल का है। वह मजदूरी करते हैं। आशा व संगिनी दीदी के समझाने के बाद उन्हें छोटे परिवार का महत्व समझ में आया। झिझक इस बात को लेकर थी कि नसबंदी के बाद शरीर कमजोर हो जाएगी। मजदूरी नहीं कर पाएंगे तो परिवार का खर्च कैसे चलेगा। आशा ने समझाया कि यह सब भ्रम है।
सरल और सुरक्षित है पुरुष नसबंदी
बिल्हौर सीएचसी के अधीक्षक डॉ दिलीप सिंह का कहना है कि पुरुष नसबंदी चंद मिनट में होने वाली आसान शल्य क्रिया है। यह 99.5 फीसदी सफल है। इससे यौन क्षमता पर कोई प्रतिकूल असर नहीं पड़ता है। उनका कहना है कि इस तरह यदि पति-पत्नी में किसी एक को नसबंदी की सेवा अपनाने के बारे में तय करना है तो उन्हें नसबंदी की सेवा अपनाने से पहले चिकित्सक की सलाह भी जरूरी होती है। अब लोगों को यह बात समझ में भी आ रही है। यही वजह है कि वित्तीय वर्ष 2022-23 में बिल्हौर ब्लॉक से कुल 10 पुरुष नसबंदी हुई है जिनमें आशा कार्यकर्ताओं की भूमिका अहम थी। आशा कार्यकर्ता नीलम सिंह और आशा संगिनी विजय लक्ष्मी ने तो जिले में फर्स्ट रैंकिंग हासिल की है। एचईओ एकता कुमारी, बीपीएम विकास सिंह और बीसीपीएम संगीता सिंह समय समय पर कार्यक्रम की समीक्षा करते रहते हैं और आवश्यकता अनुसार क्षेत्र में भी जाकर मदद करते हैं ।
लाभार्थी एवं प्रेरक दोनों को प्रोत्साहन राशि
एसीएमओ और अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी (आरसीएच) डॉ एसके सिंह का कहना है कि मुख्य चिकित्सा अधिकारी के दिशा निर्देशन में वित्तीय वर्ष 2022-23 में जिले में कुल 103 पुरुष नसबंदी हुई। ग्रामीण क्षेत्र में सहयोगी संस्था उत्तर प्रदेश टेक्निकल सपोर्ट यूनिट (यूपीटीएसयू) के जिला परिवार नियोजन विशेषज्ञ परिवार कल्याण कार्यक्रम को सफल बनाने में योगदान दे रहे हैं। लाभार्थी एवं प्रेरक दोनों को प्रोत्साहन राशि सरकार की ओर से मिलती है। पुरुष नसबंदी के लाभार्थी के खाते में तीन हजार रुपये भेजे जाते हैं। नसबंदी के लिए प्रेरित करने वाले को भी प्रोत्साहन राशि देने का प्रावधान है। गैर सरकारी व्यक्ति के अलावा अगर आशा, एएनएम और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता भी पुरुष नसबंदी के लिए प्रेरित करती हैं तो एक केस पर उन्हें 400 रुपये का भुगतान किया जाता है।
हिन्दुस्थान समाचार/महमूद/बृजनंदन
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