विकसित भारत बनाने के लिए दर्शन, दृष्टि पर केन्द्रित होना होगा : प्रो जीसी त्रिपाठी

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विकसित भारत बनाने के लिए दर्शन, दृष्टि पर केन्द्रित होना होगा : प्रो जीसी त्रिपाठी


विकसित भारत बनाने के लिए दर्शन, दृष्टि पर केन्द्रित होना होगा : प्रो जीसी त्रिपाठी


--गरीबी, महिलाओं, किसानों की समस्याओं पर काम करने की जरुरत : डॉ एके वर्मा--परम्परा, परिवर्तन व बुद्धिमत्ता का संतुलन, लक्ष्य समन्वय हो : प्रो अमित भारद्वाज --‘विकसित भारत 2047 : परम्परा, परिवर्तन एवं कृत्रिम बुद्धिमता के समाहार“ पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठीप्रयागराज, 13 दिसम्बर (हि.स.)। उच्च शिक्षा निदेशालय उप्र प्रयागराज में राजकीय महाविद्यालय एकेडमिक सोसाइटी, उप्र की ओर से ‘विकसित भारत 2047 : परम्परा, परिवर्तन एवं कृत्रिम बुद्धिमता के समाहार“ विषय पर दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन शनिवार काे उप्र शिक्षा निदेशालय में शुरू हुआ। मुख्य अतिथि बीएचयू के पूर्व कुलपति प्रो जीसी त्रिपाठी ने हजारों साल पुरानी भारतीय ज्ञान परम्परा व संस्कृति को विकसित भारत से जोड़ते हुए बताया कि विकास तभी प्राप्त हो सकता है कि जब हम वसुधैव कुटुम्बकम की पद्धति को अपनाएंगे।

उन्होंने बताया कि सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक सभी के केन्द्र में परिवार हैं। उन्होंने दर्शन, दृष्टि, विचार को केन्द्र में रखते हुए सर्वे भवन्तु सुखिनः के सिद्धान्त पर चर्चा की। कहा कि हमारा समाज कर्तव्य बोध पर आधारित रहा है न कि अधिकार बोध पर। उन्होंने विज्ञान व तकनीक के दौर में कृत्रिम बुद्धिमत्ता के प्रयोग के साथ दर्शन, दृष्टि व विचार को विकसित भारत का मुख्य साधन माना। उन्होंने महिला सशक्तिकरण के लिए महिला सम्मान पर बल देते हुए भारतीय ज्ञान परम्परा के कई उदाहरण देते हुए कहा कि विकसित भारत 2047 तक प्राप्त करने के दर्शन, दृष्टि विचार पर हमें केन्द्रित रहना होगा।

विशिष्ट अतिथि लोक सेवा आयोग के सदस्य डॉ एके वर्मा ने कहा कि हमें गरीबी, महिलाओं, किसानों की समस्याओं पर काम करने की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि नीति बनाते हुए हमें वैश्विक स्तर पर सोचने, राष्ट्रीय स्तर पर समझने और स्थानीय स्तर पर काम करने की आवश्यकता है। देश विकास के लिए वर्तमान में कृत्रिम बुद्धिमत्ता व समावेशी विकास पर बल दिया। उन्होंने बताया कि विकसित भारत के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता से ज्यादा भावनात्मक बुद्धिमत्ता की आवश्यकता है। उन्होंने भारतीय ज्ञान परम्परा से अनेकोंनेक उदाहरण देते हुए नैतिक मूल्यों व भारतीय दर्शन पर विस्तृत प्रकाश डालते हुए, शुभकामनायें दी।

कार्यकम की अध्यक्षता कर रहे शिक्षा निदेशक उच्च शिक्षा प्रो अमित भारद्वाज ने शिक्षकों का आवाहन करते हुए कि अगर शिक्षक अपनी क्षमता का शत-प्रतिशत योगदान देगें तो हमारा देश पुनः सोने की चिड़िया बन जायेगा और हम विश्वगुरू बन जायेंगे। उन्होंने कहा कि जीवन ठहराव का नहीं बल्कि परिवर्तन का नाम है। जीवन नए युग में कृत्रिम बुद्धिमत्ता के युग में प्रवेश कर चुका है। इसलिए आज आवश्यकता है परम्परा व परिवर्तन की। उन्होंने कहा कि परम्परा, परिवर्तन व बुद्धिमत्ता का संतुलन एवं समन्वय हमारा ही लक्ष्य होना चाहिये। उद्घाटन सत्र के अन्त में संयुक्त निदेशक प्रो शशि कपूर ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

इसके पूर्व कार्यक्रम संयोजक प्रो बीएल शर्मा ने अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के बारे में जानकारी दी। उद्घाटन सत्र में मुख्य वक्ता प्रो सुनीता द्विवेदी ने विकसित भारत की परिकल्पना व स्वरूप पर विस्तृत चर्चा की। उन्होंने वास्तुशास्त्र, जल संरक्षण, प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, सत्तीय विकास के इतिहास से लेकर वर्तमान में इसके प्रभाव पर विस्तृत चर्चा की।

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हिन्दुस्थान समाचार / विद्याकांत मिश्र

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