रंगभरी एकादशी : चांदी की पालकी पर गौरा का गौना कराके निकले बाबा विश्वनाथ, जमकर उड़े अबीर गुलाल
संवाददाता : राजेश अग्रहरि
वाराणसी। धर्म और आध्यात्म की नगरी काशी में रंगभरी एकादशी का पर्व पूरे उत्साह और उमंग के साथ मनाया गया। इसी के साथ काशी में होली महापर्व का शुभारंभ भी हो गया है। बुधवार शाम जैसे ही काशीपुराधिपति बाबा श्रीकाशी विश्वनाथ अपनी अर्धांगिनी मां गौरा का गौना कराके ससुराल से निकले काशी की गलियां रंगों से सराबोर गयीं। रजत पालकी पर सवार देवाधिदेव महादेव और मां पार्वती ने काशीवासियों संग जमकर होली खेली।
बनारस में रंगभरी एकादशी के 357 वर्ष के इतिहास में इस साल यह पहला संयोग था जब महंत के आवास से निकली माता गौरा की पालकी विश्वनाथ धाम के मंदिर चौक पहुंची और वहां से महादेव ने गौरा संग माता गंगा के दर्शन किये। सम्पूर्ण विश्व के नाथ बाबा विश्वनाथ की नगरी में रंगभरी एकदशी के बाद रंग और गुलाल से पूरा महौल होलियाना हो चुका है।
वैसे तो काशी में रंगों की छठा शिवरात्रि के दिन से ही शुरू हो जाती है, लेकिन शिव की नगरी में एक दिन ऐसा भी रहता है, जब बाबा विश्वनाथ खुद अपने भक्तों के साथ होली खेलते हैं। रंगभरी एकादशी के दिन बाबा विश्वनाथ की मां गौरी के साथ चल प्रतिमा निकलती है। वैसे तो हमारे देश में मथुरा और ब्रज की होली मशहूर है लेकिन रंगभरी एकादशी के दिन साल में एक बार बाबा अपने परिवार के साथ निकलते हैं तो सिर्फ काशी ही नहीं मानों धरती पर भगवान उतर आते हैं और बाबा विश्वनाथ संग होली खेलते हैं।
बुधवार को तय समय पर महंत डॉ कुलपति तिवारी ने अपने टेढ़ी नीम स्थित आवास पर बाबा विश्वनाथ की पंचबदन और माता गौरा की प्रतिमा की आरती उतारी। इसके बाद एक पालकी पर सवार बाबा विश्वनाथ, माता गौरा के साथ शहर भ्रमण पर निकले तो पूरा इलाका डमरुओं की नाद से गूँज उठा। इस वर्ष मथुरा से स्पेशल गुलाब की पंखुड़ियों से तैयार 151 किलो गुलाल से बाबा विश्वनाथ ने काशीवासियों संग होली खेली।
काशी विश्वनाथ मंदिर के प्रमुख अर्चक पंडित श्रीकांत महराज ने बताया कि फाल्गुन शुक्ल-एकादशी को रंगभरी एकादशी कहा जाता है। इस दिन बाबा विश्वनाथ का विशेष श्रृंगार होता है और काशी में होली का पर्वकाल प्रारंभ हो जाता है। पौराणिक परम्पराओं और मान्यताओं के अनुसार रंगभरी एकादशी के दिन ही भगवान शिव माता पार्वती से विवाह के उपरान्त पहली बार अपनी प्रिय काशी नगरी आये थे। इस पुनीत अवसर पर शिव परिवार की चल प्रतिमायें काशी विश्वनाथ मंदिर में लायी जाती हैं और बाबा श्री काशी विश्वनाथ मंगल वाद्ययंत्रो की ध्वनि के साथ अपने काशी क्षेत्र के भ्रमण पर अपनी जनता, भक्त, श्रद्धालूओं का हाल चाल लेने व आशीर्वाद देने सपरिवार निकलते है। यह पर्व काशी में माँ पार्वती के प्रथम स्वागत का भी सूचक है, जिसमे उनके गण उन पर व समस्त जनता पर रंग अबीर गुलाल उड़ाते, खुशियाँ मानते चलते है।
बाबा विश्वनाथ की इस अद्भुत छटा देखने के लिए विश्वनाथ मंदिर स्थित रेड ज़ोन में लोगों का सैलाब उमड़ पड़ा। भक्तों ने बाबा संग जमकर अबीर गुलाल खेला। इस मौके पर तिलभांडेश्वर मंदिर संघ ने डमरू बजाकर समां बाँध दिया था। ऐसा लग रहा था मानो देवता स्वर्ग से भगवान शंकर का श्रृंगार करने के लिए आतुर है। पूरा मंदिर परिसर हर हर महादेव के नारे से गुंजायमान था।
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