संस्कृत व संस्कृति विधा के संवाहक थे पंडित रेवा प्रसाद द्विवेदी : डा नीलकंठ तिवारी
वाराणसी I महामहोपाध्याय आचार्य पंडित रेवा प्रसाद द्विवेदी को श्रद्धा सुमन अर्पित करने हेतु काशी विद्वत परिषद् द्वारा वर्चुअल श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया I उक्त सभा में देशभर के सैकड़ों प्रखाय्त विद्वतजनों ने पंडित रेवा प्रसाद द्विवेदी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनके जीवन और उनकी साहित्यिक शैली का वर्णन किया I

इसी क्रम में प्रदेश के संस्कृति व धर्मार्थ कार्य मंत्री डा नीलकंठ तिवारी ने कहा कि पंडित जी ने अपने जीवनकाल में संस्कृत व संस्कृति को समान रूप से उसकी विधा को समाज को प्रदान किया है I उनका जाना समाज व संस्कृति जगत के लिए अपूर्णीय क्षति है, जिसका कोई विकल्प ना है और भविष्य में शायद ना होगा I डा तिवारी ने बताया कि पंडित रेवा प्रसाद द्विवेदी जी अपने आप में एक ग्रन्थ थे, जिनका मार्गदर्शन प्राप्त कई विभूतियों ने अनेकों मुकाम हासिल किए I मंत्री डॉक्टर नीलकंठ तिवारीने कहा कि आचार्य रेवा प्रसाद द्विवेदी संस्कृत के भीष्म पितामह थे संस्कृत शास्त्रों के संरक्षण में अद्भुत योगदान आचार्य द्विवेदी का रहा है इस तरह के विद्वानों ने ही काशीकी पांडित्य परंपरा को संरक्षित किया संस्कृत जगत के हस्ताक्षर थे।

उक्त सभा से जुडी उनकी पुत्री शोभा मिश्रा ने कहा कि-पिताजी काफी दृढ इच्छाशक्ति के व्यक्ति थे, जो कम शब्दों में कई सारे बातों का व्याख्यान करते थे I परिवार का हर एक व्यक्ति उनके कार्यों के प्रति सदैव समर्पित रहा I विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रोफेसर रमेश कुमार पांडेय कुलपति श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय नई दिल्ली ने कहा कि प्रोफेसर द्विवेदी की ज्ञान परंपरा भारत में ही नहीं अपितु विश्व में छाई हुई है। आपके पढ़ाये छात्र पूरे विश्व में संस्कृत का डंका बजा रहे हैं। आपके द्वारा लिखित ग्रंथों का अध्ययन अध्यापन और शोध छात्रों के लिए अत्यंत उपयोगी है।

सारस्वत अतिथि के रूप में प्रोफेसर गोपवन्धू मिश्र कुलपति सोमनाथ संस्कृत विश्वविद्यालय गुजरात ने कहा कि आचार्य देवा प्रसाद द्विवेदी सार्वभौमिक विद्वान थे आपके द्वारा लिखित ग्रंथ कालिदास ग्रंथावली का संपादन देखने से मालूम चलता है कि प्रोफेसर द्विवेदी का पाडित्य क्या था। विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रोफेसर युगल किशोर मिश्र पूर्व कुलपति राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय राजस्थान ने कहा कि आचार्य रेवा प्रसाद द्विवेदी जी का जो जीवन साधना थी, उसको देख कर के प्रतीत होता है कि ऋषियोंका जीवन जीते थे।

कार्यक्रम की अध्यक्षता काशी विद्वत परिषद के अध्यक्ष महोदय आचार्य राम यत्नशुक्ल ने कहा कि आचार्य द्विवेदी साहित्य साधना के आचार्य थे साथ-साथ आधुनिक भाषाविद्या के ज्ञाता थे। उनके न रहने से अपूर्णीय क्षति हुई है। इसी क्रम में तमाम संतो ने अपने विचार व्यक्त किए जिसमें गंगा महासभा के राष्ट्रीय महासचिव अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी जितेंद्र आनंद सरस्वती ने कहा की काशी केपरंपरा के देदीप्यमान भास्कर के रूप में रेवा प्रसाद द्विवेदी जी का उल्लेख किया।
सभा में जुड़े विद्वतजनों में से प्रो विजयशंकर शुक्ल, महंत शंकरपुरी, महंत बालकदास महाराज, महंत संतोष दास, प्रो रमेश कुमार पाण्डेय, प्रो वशिष्ट त्रिपाठी, प्रो विन्देश्वरी प्रसाद मिश्र, पंडित प्रमोद मिश्रा, प्रो अमलेश झा, प्रो विनय पाण्डेय, उत्तराखंड से प्रो शैलेश तिवारी, डा दामोदर, राजस्थान से प्रो रमाकांत पाण्डेय, प्रो युगल किशोर आदि ने प्रमुख रूप से श्रद्धा सुमन अर्पित किया I
सभा का प्रारंभ आचार्य श्रीकांत व प्रो पतंजलि मिश्र द्वारा वैदिक मंगलाचरण करके किया गया I कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो वागीश शास्त्री व सञ्चालन प्रो रामनारायण द्विवेदी ने किया I

