पंडित मदन मोहन मालवीय ने बचाई थी साल 1932 में गांधी जी की जान : कौशल किशोर मिश्रा
रिपोर्ट : ओमकारनाथ
वाराणसी। महात्मा गांधी का काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से गहरा रिश्ता था। इसके अलावा उनके पंडित मदन मोहन मालवीय से भी गहरे सम्बन्ध थे। साल 1932 में मुंबई जेल में आमरण अनशन पर बैठे गांधी जी की जान मालवीय जी ने बचाई थी। उस समय अंबेडकर से नाराज़ थे गांधी जी क्योंकि अंबेडकर एक दलित राष्ट्र अलग चाहते थे। मालवीय जी ने दोनों लोगों के बीच समझौता करवाया था तब जाकर गांधी जी ने अपना अनशन तोड़ा था। उक्त बातें काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के सोशल साइंस फैकल्टी के डीन प्रोफेसर कौशल किशोर मिश्रा ने गांधी जयंती पर ख़ास बातचीत में कही।
उन्होंने कहा कि यदि मालवीय जी नहीं होते तो साल 1932 में ही भारत के दो टुकड़े हो जाते जो दलित राष्ट्र के रूप में होता।

मुंबई जेल में शुरू किया गांधी जी ने आमरण अनशन
सोशल साइंस फैकल्टी के डीन प्रोफेसर कौशल किशोर मिश्रा ने पंडित मदन मोहन मालवीय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय और गांधी जी के संबंधों के सवाल पर जवाब देते हुए बताया कि पंडित मदन मोहन मालवीय न होते तो गांधी जी का जीवन 1932 में समाप्त हो जाता। मुंबई के जेल में गांधी जी अनशन पर थे अछूतों के मुद्दे पर। अंबेडकर से गांधी जी का संघर्ष चल रहा था। अंबेडकर ज़िद में अड़े हुए थे और गांधी जी ने कह दिया था कि हम अंबेडकर की बात नहीं मानेंगे। इसपर गांधी जी आमरण अनशन पर बैठ गए। पहली बार उन्होंने आमरण अनशन की घोषणा की थी।
बुलवाये गए मालवीय जी
कौशल किशोर मिश्रा ने बताया कि इसपर गांधी जी के करीबियों ने मालवीय जी को बुलवाया, क्योंकि सभी जानते थे मालवीय जी का सम्बन्ध अंबेडकर से बेटे और पिता जैसा था। अंबेडकर मालवीय जी को बहुत मानते थे और उनका बहुत सम्मान करते थे। स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में अंबेडकर यदि किसी का सम्मान करते थे तो वो सिर्फ मदन मोहन मालवीय जी थे।
ज़्यादातर जगह नहीं मिलता पूना पैक्ट का उल्लेख
कौशल किशोर शर्मा ने बताया कि 1932 में जो घटना हुई। उसका इतिहास में बहुत काम उल्लेख मिलता है। पूना पैक्ट एक ऐसा पैक्ट है, जो गांधी के जीवन से सम्बंधित है और पूना पैक्ट इसलिए हुआ क्योंकि पंडित मदन मोहन मालवीय की उसमे भूमिका थी। पंडित मदन मोहन मालवीय की भूमिका का उसमे होने का अर्थ है कि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की उसमे भूमिका है।
सर्वसमावेशी थे मालवीय जी
कौशल किशोर मिश्रा ने बड़ा खुलासा करते हुए कहा की पंडित मदन मोहन मालवीय गांधी जी की जान बचाने के लिए अपने कई जीवन मूल्यों की तलांजलि देकर अंबेडकर की ज़िद के आगे नतमस्तक हुए और उन्हें मनाया। अंबेडकर ने जब गांधी की बातें मानी तब उन्होंने मुंबई के जेल में अपना अनशन तोड़ा। यह इतिहास का ऐसा पन्ना है जिसमें पंडित मदन मोहन मालवीय का आदर्शवाद सामने आता है। वो सनातन पंडित ज़रूर थे लेकिन वो सर्वसमावेशी थे। उनका ये प्रभाव अंबेडकर पर पड़ा और वो भी सर्वसामवेशी हुए।
दशाश्वमेध घाट पर बताई अछूतोद्धार की विधि
कौशल किशोर मिश्रा ने बताया कि गाँधी जी पर इस बात का आसर हुआ कि वो हमेशा पंडित मदन मोहन मालवीय की बात मानते थे। वो कभी व्यक्तिगत नहीं सोचते थे, न कभी पारिवारिक सोचते थे। वो समाज के लिए सोचते थे और राम राज में विश्वास करते थे जैसे गांधी जी भी राम राज में विश्वास करते थे। कौशल किशोर शर्मा ने बताया कि इसीलिए मदन मोहन मालवीय ने अछूतों के लिए बहुत बड़े बड़े काम किये और दशाश्वमेध घाट पर अछूतोद्धार की विधि बताई। बहुत से लोगों को हिन्दू धर्म में लाने का प्रयास किया और उन्हें लाया भी।
पाकिस्तान से पहले बन जाता अलग दलित राष्ट्र
उन्होंने कहा कि यदि पंडित मदन मोहन मालवीय और महात्मा गांधी के अन्तर्सम्बन्धों की व्याख्याय हो जाए तो आज के समय में जो तमाम तरह के भ्रम देश में फैले हुए हैं। दलितों और अछूतों के बारे में वो सारे भ्रम टूट जाएंगे क्यों क्योंकि अंबेडकर चाहते थे की दलितों का एक अलग राष्ट्र बने देश बने। अगर मालवीय जी न होते तो 1932 में ही पाकिस्तान की तरह दलितों का एक राष्ट्र बन जाता।

