पंडि‍त कमलापति‍ त्रि‍पाठी के पुत्र मंगलापति‍ त्रि‍पाठी का नि‍धन, रेनूकूट में ली अंति‍म सांस 

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वाराणसी/सोनभद्र। यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री, पूर्व केन्द्रीय मंत्री और कांग्रेस के पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष स्व.पं.कमलापति त्रिपाठी के 88 वर्षीय कनिष्ठ पुत्र पं. मंगलापति त्रिपाठी का शनि‍वार शाम चार बजे रेनूकूट स्थित हिंडालको के चिकित्सालय में देहान्त हो गया। स्व.कमलापति त्रिपाठी के तीन पुत्रों में वह अकेले जीवित थे। 

अतीत में लंबे समय तक उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सदस्य, अविभाजित वाराणसी जिला कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष एवं महामंत्री तथा उ.प्र युवक कांग्रेस के भी पदाधिकारी रह चुके मंगलापति त्रिपाठी सन् 1952 के प्रथम आम चुनाव से ही अपने पिता के चन्दौली में राजनीतिक सहयोग के साथ सक्रिय राजनीतिक भूमिका में रहे।

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स्व.पं.कमलापति त्रिपाठी के निधन के बाद विगत तीन दशकों से मंगलापति त्रिपाठी चन्दौली के शहाबगंज स्थित अपने परिवार की पुरानी छावनी पर रह कर खेती के कार्य से जुड़े हुये थे। सन् 1933 में 02 जून को पं.कमलापति त्रिपाठी की सबसे छोटी सन्तान के रूप में जन्मे मंगलापति त्रिपाठी के जन्म के एक वर्ष बाद ही उनकी मां का निधन हो गया था और उनका पालन मुख्य रूप से अपने पिता की ही संरक्षक छत्रछाया में हुआ। 

दिवंगत मंगलापति त्रिपाठी के पीछे उनके परिजन में संयुक्त परिवार के अन्य सदस्यों के अलावा उनकी धर्मपत्नी श्रीमती नलिनी त्रिपाठी, पुत्र सोमेशपति त्रिपाठी, पुत्रवधु और पौत्र हैं।

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दिवंगत श्री त्रिपाठी विगत दिनों अस्वस्थता के कारण शहाबगंज स्थित अपनी छावनी से रेनूकूट जाकर वहां स्थित हिण्डालको के चिकित्सालय में इलाज के लिये भर्ती थे, जहां उनके सम्बन्धी चिकित्साधिकारी हैं। उनके एकमात्र पुत्र सोमेशपति लखनऊ में हैं, जहां समाचार मिलने पर अपने चचेरे अग्रज अम्बरीषपति त्रिपाठी के साथ वाराणसी के लिये रवाना हुये। 

दिवंगत श्री त्रिपाठी के पार्थिव शरीर के उनके भतीजे एवं पूर्व विधायक ललितेशपति त्रिपाठी के मिर्जापुर जनपद स्थित फार्म हाउस होकर देर रात वाराणसी लाये जाने का कार्यक्रम है, जहां रविवार की सुबह मणिकर्णिका घाट पर अन्तिम संस्कार सम्पन्न होगा। उनके भतीजे पूर्व विधायक एवं उ.प्र.कांग्रेस के पूर्व उपाध्यक्ष राजेशपति त्रिपाठी दिल्ली में हैं, जहां उन्हें सूचना दी गई।

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अत्यन्त सौम्य एवं सरल व्यक्तित्व के धनी मंगलापति त्रिपाठी परिवार और त्रिपाठी परिवार के निकट राजनीतिक हलकों में भी 'शशी भैया' के नाम से सभी के प्रिय रहे। अपने सहज हंसमुख व्यवहार के नाते पिता के परम्परागत राजनीतिक क्षेत्र चन्दौली में सन् पचास के दशक से ही गांव गांव उनकी स्थापित लोकप्रिय पहचान थी। उन्होंने कभी चुनाव नहीं लड़ा, लेकिन हर चुनाव में बेहद सक्रिय भूमिका निभाया करते थे।

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