वाराणसी में खेली गयी समरसता की होली, मुस्लिम महिलाओं ने लगाया एक दूसरे को गुलाल 

वाराणसी में खेली गयी समरसता की होली, मुस्लिम महिलाओं ने लगाया एक दूसरे को गुलाल
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वाराणसी। पूरी दुनिया में रंगों की होली होती है लेकिन काशी में दिल मिलाने की होली खेली जाती है और नफरत की होलिका जलायी जाती है। तभी तो भूत भावन महादेव श्मशान में चिता की भस्म से होली खेलते हैं। बंगाल के चुनावों में उठती नफरत की लपटों को काशी की मुस्लिम महिलाओं ने मोहब्बत के गुलाल से ठंडा कर दिया और एक दूसरे को सांस्कृतिक रूप से जोड़ने का संदेश भी दे दिया।

लमही के इंद्रेश नगर के सुभाष भवन में विशाल भारत संस्थान एवं मुस्लिम महिला फाउंडेशन के संयुक्त तत्वाधान में “गुलाबों और गुलालों वाली होली” कार्यक्रम का आयोजन किया गया। भारत की संस्कृति की ध्वजा वाहक महिलाओं ने नफरत की आग लगाने वालों को गुलाब की पंखुड़ियों, ढोल की थाप और रंग-बिरंगे गुलालों से चुनौती दी। 

चेहरे पर गुलाल लगाया, हंसी ठिठोली की, फिजाओं में गुलाब की पंखुड़ियों ने मोहब्बत की महक बिखेरी और दुनियां को यकजहती का संदेश भेजा। ढोल की थाप पर जब होली गीत शुरू हुआ तब गीत में काशी विश्वनाथ के साथ भगवान श्री राम, भगवान श्री कृष्ण को भी मुस्लिम महिलाओं ने शामिल किया। लगे हाथ गीतों में मोदी जी और इंद्रेश जी की भी शामिल हो गए। मुस्लिम महिलाओं ने स्वरचित गीत गाया। मुस्लिम महिलाओं ने प्रधानमंत्री की तस्वीर की आरती उतारी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शीर्ष नेता इंद्रेश कुमार की तस्वीर पर गुलाल लगाकर होली खेली। मुस्लिम महिलाओं ने भगवान श्रीराम की तस्वीर पर गुलाल लगाकर होली कार्यक्रम की शुरुआत की और सुभाष मंदिर में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति पर गुलाल लगाया।

गुलाबो और गुलालों वाली होली कार्यक्रम के मुख्य अतिथि विशाल भारत संस्थान के संस्थापक अध्यक्ष डा राजीव श्रीवास्तव ने कहा कि मुस्लिम महिलाओं ने दुनिया के देशों को यही संदेश दिया कि धर्म बदलने से संस्कृति नहीं बदलती संस्कृति से ही देश और व्यक्ति की पहचान होती है। होली के रंग नफरत की आग को बुझाने वाले होते हैं। काशी ने देश भर के कट्टरपंथियों को धर्म के नाम पर हिंसा न फैलाने और राष्ट्रभक्ति का संदेश दिया है। रंगों से सराबोर होकर सामाजिक समरसता, एकता, भाईचारा का संदेश होली देती है।

मुस्लिम महिला फाउंडेशन की नेशनल सदर नाजनीन अंसारी ने कहा कि त्यौहार किसी धर्म के नहीं देशों की संस्कृति के संदेशवाहक होते हैं। धर्म बदलने से संस्कृति कभी नहीं बदलती। हमारे पूर्वजों के खून में होली के रंगों की लालिमा है। राम और कृष्ण से ही डीएनए हमारा मिलता है। जब हमारे पूर्वजों ने होली के रंगों के साथ पीढ़ी दर पीढ़ी गुजारी तो कट्टरपंथियों के बहकावे में आकर जो लोग अपनी संस्कृति से दूर हो जाते हैं उन्हें वतन के लोगों की मोहब्बत कभी नहीं मिलती। हम तो भारतीय संस्कृति के अंग हैं। होली तो खूब मनाएंगे और नफरत फैलाने वालों की छाती पर होलीका जलाएंगे।

कार्यक्रम में नजमा परवीन, खुशी रमन भारतवंशी, उजाला भारतवंशी, इली भारतवंशी, अर्चना भारतवंशी, नगीना, शबीना, शबनम, हाजरा, तबस्सुम, नाजिया, साइना, नाजमा, शमशुननिशा, हदीसुन, नसीबुन, सोना, रानी, पुनम, सरोज आदि महिलाओं ने भाग लिया।

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