352 साल बाद काशी विश्वनाथ धाम में शामि‍ल हुआ ज्ञानवापी कूप, नंदी बाबा के कान में श्रद्धालु बता रहे अपनी मनोकामनाएं 

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वाराणसी। 1669 में औरंगजेब के फरमान के बाद मुगल सेना ने हमला कर आदि विशेश्वर का मंदिर ध्वस्त किया था। स्वयंभू ज्योतिर्लिंग को कोई क्षति न हो इसके लिए मंदिर के महंत शिवलिंग को लेकर ज्ञानवापी कुंड में कूद गए थे। हमले के दौरान मुगल सेना मंदिर के बाहर स्थपित विशाल नंदी की प्रतिमा को तोड़ने का प्रयास किया था लेकिन सेना के तमाम प्रयासों के बाद भी वे नंदी की प्रतिमा को नहीं तोड़ सके। तब से आज तक विश्वनाथ मंदिर परिसर से दूर रहे ज्ञानवापी कूप और विशाल नंदी को एक बार फिर विश्वनाथ मंदिर परिसर में शामि‍ल कर लिया गया है। यह संभव हुआ है विश्वनाथ धाम के निर्माण के बाद। 

352 साल पहले अलग हुआ यह ज्ञानवापी कूप एक बार फिर विश्वनाथ धाम परिसर में आ गया है और श्रद्धालु काशी विश्वनाथ मंदिर के साथ ही साथ इस कूप और विशाल नंदी का भी दर्शन कर अपनी मनोकामना मांग रहे हैं। 

इस कूप की मान्यता को लेकर काशी विश्वनाथ मंदिर के प्रधान अर्चक आचार्य श्रीकांत मिश्रा ने बताया कि ज्ञानवापी कूप वह कूप है जहां जल इतना पवित्र है की उसके पान करने से जन्म-जन्मांतर, कल्प-कल्पांतर और युग युगांतर के पापों का क्षय होता है। वहीं इसी ज्ञानवापी के कूप के पास स्थित विशाल नंदी भी अब मंदिर परिसर में आ गयी है। 

इस सम्बन्ध में अर्चक श्रीकांत आचार्य ने बताया कि नंदी धर्म के प्रतीक हैं और भगवान की सवारी हैं इसीलिए नंदी भी उसी रूप में पूज्य हैं। उन्होंने बताया की जो ज्ञानवापी का मंडप है उसे इस परिसर में समाहित कर लिया गया है,  क्योंकि अब जो भी भक्त आएंगे उनको कठिनाइयों का सामना नहीं करना पडेगा। 

बता दें कि मुगल हमले के बाद पुजारियों ने ज्ञानवापी परिसर के बगल में दोबारा शिवलिंग की स्थापना कर पूजा पाठ शुरू की। तब से ज्ञानवापी कूप और नंदी काशी विश्वनाथ मंदिर से बाहर हो गए थे। 352 साल बाद दोबारा इतिहास दोहराया है और पौराणिक ज्ञानवापी कूप और विशाल नंदी मंदिर का हिस्सा बन गया है। बताते चलें कि वर्तमान काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण महारानी अहिल्याबाई ने 1780 में कराया था।

देखें तस्वीरें 

GYANWAPI KOOP

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