साधना से कमण्डल रूपी शरीर को धोना चाहिए: डॉ. प्रणव पण्ड्या

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हरिद्वार, 6 अक्टूबर (हि.स.)। अखिल विश्व गायत्री परिवार प्रमुख डॉ. प्रणव पण्ड्या ने कहा कि साधना से कमण्डल रूपी शरीर को धोना चाहिए। जब तक मन में मैल रहेगा, तब तक साधना सफल नहीं होगी। गहन तपश्चर्या से ही साधक को शक्ति प्राप्ति होती है। साधक की साधना जैसी होगी, सद्गुरु उसी अनुरूप शक्ति प्रदान करता है। स्वामी विवेकानंद, अर्जुन, मीरा, भक्त प्रह्लाद आदि ने अपनी साधना से भगवान, सद्गुरु से बहुत कुछ पाया है।

देवसंस्कृति विवि के कुलाधिपति डॉ पण्ड्या शांतिकुंज में गीता का उपदेश-सार और गीता की महिमा विषय पर स्वाध्याय शृंखला के अंतर्गत गायत्री साधकों को संबोधित कर रहे थे। डॉ. पण्ड्या ने कहा कि अहंकार का उच्छेदन साधना से ही संभव है। अहंकारी व्यक्ति का अंत काफी कष्टकारी होता है। रावण, मेघनाथ आदि इसके उदाहरण हैं।

डॉ. पण्ड्या ने कहा कि योगेश्वर श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि आपकी और हमारी जो वार्तालाप होती है, इसे अंत:करण में धारण करो और तद्नुरूप आचरण करो, साधना करो। उन्होंने कहा कि भगवान के अनुसार कार्य करने, साधना करने से ही अर्जुन भगवान के प्रिय बन पाये।

इस दौरान अखिल विश्व गायत्री परिवार प्रमुख डॉ. पण्ड्या ने रामायण, गीता, उपनिषद आदि ग्रंथों में उल्लेखित विविध उदाहरणों को रेखांकित करते हुए साधकों के मनोभूमि को पोषित किया।

इससे पूर्व संगीत विभाग के भाइयों ने बासुंरी, सितार आदि भारतीय वाद्ययंत्रों के साथ ‘अपनी राह चला लो गुरुवर...’ भावगीत प्रस्तुत कर साधकों को उल्लसित किया। समापन से पूर्व देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों ने श्रीमद्भगवद्गीता की आरती की।

इस अवसर पर शांतिकुंज व्यवस्थापक योगेन्द्र गिरी सहित देवसंस्कृति विश्वविद्यालय-शांतिकुंज परिवार तथा देश-विदेश से आये सैकड़ों साधक उपस्थित रहे।

हिन्दुस्थान समाचार / डॉ.रजनीकांत शुक्ला

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