रामायण जीवन का आदर्श और संस्कृति का दर्शन: स्वामी कमलेशानंद सरस्वती

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हरिद्वार, 25 सितंबर (हि.स.)। श्री गंगा भक्ति आश्रम के परमाध्यक्ष, श्रीमहंत स्वामी कमलेशानंद सरस्वती महाराज ने कहा कि रामायण मानव जीवन का आदर्श और सनातन संस्कृति का सच्चा प्रतिबिंब है। इसके पठन-पाठन और श्रवण मात्र से ही व्यक्ति का जीवन सुधर जाता है। वे आज उत्तरी हरिद्वार में गंगा भक्ति आश्रम के संस्थापक, अपने गुरुदेव साकेतवासी स्वामी राघवानंद सरस्वती महाराज की तृतीय पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में आयोजित श्रीरामायण के अखंड पाठ की पूर्णाहुति के अवसर पर श्रद्धालुओं को संबोधित कर रहे थे।

उन्होंने रामायण के महत्वपूर्ण प्रसंगों का वर्णन करते हुए, भगवान राम द्वारा स्थापित आदर्शों और मर्यादाओं को जीवन में उतारने का आह्वान किया। स्वामी कमलेशानंद ने माता-पिता और गुरु की आज्ञा का पालन करने पर बल देते हुए कहा कि ये तीन व्यक्ति दिल से आशीर्वाद देते हैं, जिससे व्यक्ति महानता प्राप्त करता है।

उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि माता-पिता की आज्ञा पाकर ही राजकुमार राम वनवास गए और 14 वर्षों के बाद मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम बनकर अयोध्या लौटे। यदि वे माता-पिता की आज्ञा का पालन नहीं करते, तो अयोध्या के राजा तो बन सकते थे, परंतु भगवान राम बनने का सौभाग्य उन्हें नहीं मिलता।

स्वामी कमलेशानंद सरस्वती ने परिवार में संपत्ति के बंटवारे को लेकर आपसी संघर्ष से बचने और संयम बनाए रखने का संदेश भी दिया। अंत में उन्होंने रामायण को जीवन जीने की कला सिखाने वाला ग्रंथ बताया और सभी भक्तों को रामायण के भोग का प्रसाद प्रदान करते हुए उनके सुखमय जीवन और उज्ज्वल भविष्य की कामना की।

हिन्दुस्थान समाचार / डॉ.रजनीकांत शुक्ला

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