जीईपी को जीडीपी के साथ जोड़ने की तैयारी में धामी सरकार, उत्तराखंड में खुलेंगे निवेश के द्वार

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जीईपी को जीडीपी के साथ जोड़ने की तैयारी में धामी सरकार, उत्तराखंड में खुलेंगे निवेश के द्वार


- जैव विविधता के माध्यम से देश को प्रतिवर्ष 95,112 करोड़ रुपये की सेवाएं देता है उत्तराखंड

देहरादून, 20 जुलाई (हि.स.)। अब उत्तराखंड सरकार सकल पर्यावरण उत्पाद (जीईपी) को अपनी जीडीपी के साथ जोड़ने की तैयारी में है। जीडीपी में जीईपी का समावेश कर इसको अपनी मुख्यधारा में सम्मिलित करेगी, जो उत्तराखंड के लिए और बड़ा निवेश का मार्ग प्रशस्त करेगा। साथ ही पर्यावरण संरक्षण के प्रति लोगों को और अधिक जागरूक व जिम्मेदार करेगी।

उत्तराखंड अपनी जैव विविधता के माध्यम से देश को प्रतिवर्ष 95,112 करोड़ रुपये की सेवाएं देता है। उत्तराखंड जंगल, ताजे पानी, ग्लेशियरों से समृद्ध है जो राज्य को पारिस्थितिकी तंत्र सेवा का एक समृद्ध बैंक बनाता है। उत्तराखंड की जीडीपी वर्ष 2023-24 के लिए 3.33 लाख करोड़ है।

विकल्प रहित संकल्प के साथ मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी उत्तराखंड को देश का अग्रणी राज्य बनाने को प्रतिबद्ध हैं। ‘विकसित भारत’ के लक्ष्य के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में उत्तराखंड तेजी से विकास पथ पर अग्रसर है, तभी तो नीति आयोग की ओर से जारी सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) 2023-24 की रिपोर्ट में उत्तराखंड ने सर्वाधिक अंक लाकर पहला स्थान हासिल किया है जो प्रत्यक्ष प्रमाण है। मुख्यमंत्री धामी का कहना है कि सरकार इकोलॉजी और इकोनॉमी के समन्वय के साथ ‘विकसित उत्तराखंड’ की दिशा में निरंतर आगे बढ़ रही है। राज्य में पारदर्शी व्यवस्था स्थापित कर सर्वस्पर्शी एवं सर्वांगीण विकास करना हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखंड राज्य पर्यावरण एवं जैव विविधता की दृष्टि से संपन्न राज्य है। राज्य के पास सभी तरह का पारिस्थितिकी तंत्र उपलब्ध है। हिमनदों से लेकर मैदानी क्षेत्रों में बहती नदियां हैं। घने जंगल से लेकर तराई का क्षेत्र है, घाटी हैं, पहाड़ है, हरेक तरह की भौगोलिक परिस्थितियां उत्तराखंड में मौजूद हैं। उत्तराखंड राज्य पारिस्थितिकी तंत्र के महत्व के प्रति सामाजिक जागरूकता में ऐतिहासिक रूप से एक विशिष्ट स्थान रखता है। गौरा देवी, सीपी भट्ट और सुंदरलाल बहुगुणा जैसे प्रसिद्ध कार्यकर्ताओं के विश्व प्रसिद्ध चिपको आंदोलन के मुख्य सूत्रधार के रूप में स्थानीय समुदायों के वन अधिकारों की रक्षा के उद्‌देश्य से शुरू की गई थी। इसके उपरांत प्रसिद्ध पर्यावरण कार्यकर्ता जगत सिंह जंगली के नेतृत्व में सामाजिक कार्यकताओं ने राज्य की लगभग 65 प्रतिशत भूमि पर फैले उत्तराखंड के जंगलों से उत्पादित पानी और ऑक्सीजन के ऐवज में भुगतान की मांग को लेकर दिल्ली तक मार्च किया।

वर्ष 2010-11 में राज्य सरकार ने राज्य के लिए ग्रीन बोनस की परिकल्पना की। इसके उपरांत उत्तराखंड सरकार ने 21 दिसंबर 2021 को जीडीपी में पर्यावरण सेवाओं के मूल्य और पर्यावरण को हुए नुकसान की लागत के अंतर को जोड़कर सकल पर्यावरण उत्पाद की परिभाषा को अधिसूचित किया है। इसके अलावा उक्त अधिसूचना में राज्य सरकार जीईपी के लिए मूल्यांकन तंत्र के व्यापक विकास के साथ सकल पर्यावरण उत्पाद को राज्य की जीडीपी के साथ कैसे जोड़ा जाए, इसके लिए भी प्रतिबद्ध है।

आइए विस्तार से जानते हैं जीईपी के बारे में-

प्रश्न : जीईपी को किस तरह से समझा जा सकता है?

उत्तर : जीईपी को मापने का अर्थ है पारिस्थितिकी तंत्र की वस्तुओं और सेवाओं की विविधता के मूल्य को मौद्रिक या रूपये के संदर्भ में अनुवाद करना। उदाहरण के रूप में लकड़ी जैसी विपणन योग्य संपत्तियों के लिए जीडीपी एक सीधी प्रक्रिया है, लेकिन जब लकड़ी के विपणन-इसकी प्रोसेसिंग के संदर्भ में आपनाई जाने वाली प्रक्रिया क्या होगी जिससे हवा-पानी दूषित न हो और इसके लिए किए गए प्रयास में आई लागत के कारण जीडीपी पर कितना असर होगा। साफ हवा और पानी किस प्रकार स्थानीय लोगों को लाभांवित करेगा। इन सबका मौद्रिक संदर्भ में आंकलन सकल पर्यावरण उत्पाद (जीईपी) है।

प्रश्न : जीईपी के आंकलन के मुख्य आधार क्या है ?

उत्तर : जीईपी सूचकांक का आंकलन मुख्य रूप से पर्यावरण के चार घटक जल गुणवत्ता, वायु गुणवत्ता, वर्ष में रोपित पेड़-पौधों की संख्या, जैविक मिट्टी के क्षेत्रफल की नाम के आधार पर किया गया है, क्योंकि विकासपरक योजनाओं का सीधा असर इन्हीं चार घटकों पर मुख्य रूप से पड़ता है।

प्रश्न : जीईपी सूचकांक के बढ़ने या घटने का क्या अर्थ है?

उत्तर : जीईपी सूचकांक एक इंडिकेटर की तरह कार्य करेगा जिससे विकासपरक योजनाओं से पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव का आंकलन किया जा सकेगा। यह प्रभाव स्थानीय पर्यावरण गुणवत्ता जिसमें हवा, पानी, मिट्टी, जंगल इत्यादि है। अगर वह सुधार हो रही है तो जीईपी सूचकांक में वृद्धि देखने को मिलती है और हम कह सकते हैं कि हमारा सिस्टम पर्यावरण के अनुकूल है और विकास गतिविधियों के बावजूद स्थिर है और सुधार कर रहा है। यदि पर्यावरण की गुणवत्ता में सुधार नहीं हो रही और उसमें कोई गिरावट दिखाई दे रही है या उसमें कोई नकारात्मकता दिख रही है तो जीईपी सूचकांक में गिरावट देखने को मिलती है।

प्रश्न : जीईपी सूचकांक की आवश्यकता क्यों है?

उत्तर : पर्यावरण के परिपेक्ष्य में उत्तराखंड राज्य के कार्यों को राष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया है। नीति आयोग की ओर से विकसित सतत विकास लक्ष्य सूचकांक में उत्तराखंड राज्य वर्ष 2023-24 में प्रथम स्थान प्राप्त किया है। इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि राज्य में विकासपरक योजनाएं व औद्योगिक गतिविधियों के प्रसार के बावजूद हम अपने पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित किए हुए हैं, जिससे इस अवधारणा को बल मिलता है कि राज्य सरकार परिस्थितिकी और अर्थव्यवस्था में सामंजस्य रखे हुए है। इसी कड़ी में जीईपी सूचकांक अगला कदम है। इसके आगे जीईपी को किस प्रकार जीडीपी के साथ जोड़ा जाएगा, इस पर काम किया जाएगा।

प्रश्न : क्या उत्तराखंड की पर्यावरणीय सेवाओं का मौद्रिक आंकलन उपस्थित है व उत्तराखंड की जीडीपी क्या है?

उत्तर : डाउन टू अर्थ पत्रिका की रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड अपनी जैव विविधता के माध्यम से देश को प्रतिवर्ष 95,112 करोड़ रुपये की सेवाएं देता है। उत्तराखंड जंगल, ताजे पानी, ग्लेशियरों से समृद्ध है जो राज्य को पारिस्थितिकी तंत्र सेवा का एक समृद्ध बैंक बनाता है। उत्तराखंड की जीडीपी वर्ष 2023-24 के लिए 3.33 लाख करोड़ है।

प्रश्न : सकल पर्यावरण उत्पाद से किस तरह के लाभ होंगे व इसका औचित्य क्या है?

उत्तर : सकल पर्यावरण उत्पाद सभी पर्यावरणीय सेवाओं के मौद्रिक स्थिति को सकल घरेलू उत्पाद से जोड़ता है। राज्य की पर्यावरणीय सेवाओं के मूल्य के सापेक्ष भारत सरकार या अन्य अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मौद्रिक आंकलन के अनुसार अनुतोष मांग की जाएगी। इससे प्राप्त होने वाली धनराशि जहां एक ओर उत्तराखंड के लिए और बड़ा निवेश का मार्ग प्रशस्त करेगी वहीं, पर्यावरण संरक्षण के प्रति लोगों को और अधिक जागरूक और जिम्मेदार करेगी।

प्रश्न : क्या सकल पर्यावरण उत्पाद के फलस्वरूप आम जनता को अतिरिक्त कर का सामना करना पड़ेगा?

उत्तर : जी नहीं, सकल पर्यावरण उत्पाद स्थानीय पर्यावरण की गुणवत्ता को बढ़ाता है। जितनी अधिक पर्यावरण संरक्षण संबंधी गतिविधियां होंगी, उतना अधिक पर्यावरण संरक्षित होगा और उतनी ही अधिक पर्यावरणीय सेवाओं की लागत होगी।

प्रश्न : जीईपी सूचकांक से क्या तात्पर्य है?

उत्तर : प्रसन्नता सूचकांक, गरीबी सूचकांक की तरह, जीईओ सूचकांक विकसित किया गया है। सब जानते हैं कि सभी विकासपरक गतिविधियां पारिस्थितिकी तंत्र और पर्यावरण पर अपना प्रभाव डालती है, जो पानी की गुणवत्ता, वायु गुणवत्ता, मि‌ट्टी की उर्वरता, वन आवरण आदि के संदर्भ में व्यापक रूप से परिलक्षित होती है। जीईपी सूचकांक आंकलन के लिए चार अलग-अलग सूचकांकों अर्थात् वायु, जल, मृदा और वन को मिलाकर जीईपी सूचकांक समीकरण विकसित की गई है। विभिन्न विकासपरक योजनाओं, औद्योगिक प्रक्रियाओं व सरकारी नियमों इत्यादि के अनुपालन का जो परिणाम है वह सकल रूप से हमारी स्थानीय पर्यावरण गुणवत्ता पर देखने को मिलता है। अगर हमारी स्थानीय पर्यावरण गुणवत्ता जिसमें हवा, पानी, मिट्टी, जंगल और भी बहुत सारे कारक मौजूद हैं। अगर वह सुधार हो रही है तो जीईपी सूचकांक में वृद्धि देखने को मिलती है और हम कह सकते हैं कि हमारा सिस्टम पर्यावरण के अनुकूल है और विकास गतिविधियों के बावजूद स्थिर है और सुधार कर रहा है। यदि हमारी पर्यावरण की गुणवत्ता में सुधार नहीं हो रही और उसमें कोई गिरावट दिखाई दे रही है या उसमें कोई नकारात्मकता दिख रही है तो जीईपी सूचकांक में गिरावट देखने को मिलती है।

प्रश्न : राज्य के लिए जीईपी सूचकांक के पश्चात अगला चरण क्या होगा?

उत्तर : इसके अगले चरण में हम किस तरह से हम किस तरह के सूचकांक को अपनी जीडीपी के साथ जोड़ेंगे और किस तरह से हम जीडीपी में जीईपी का समावेश करते हुए इसको अपनी मुख्यधारा में सम्मिलित करेंगे, यह हमारे लिए एक आगे बढ़ने का रास्ता होगा।

हिन्दुस्थान समाचार / कमलेश्वर शरण / राजेश कुमार / Kamleshwar Sharan / वीरेन्द्र सिंह

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