आनन्द की साधना को समझना है तो पहले भारत को समझना होगा : दिव्यांशु भाई दवे

आनन्द की साधना को समझना है तो पहले भारत को समझना होगा : दिव्यांशु भाई दवे
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आनन्द की साधना को समझना है तो पहले भारत को समझना होगा : दिव्यांशु भाई दवे




हरिद्वार, 18 फरवरी (हि.स.)। बीएचईएल स्थित सरस्वती विद्या मंदिर में विद्याभारती से संबद्ध अखिल भारतीय शिशु वाटिका परिषद की बैठक एवं प्रशिक्षण शिविर के दूसरे दिन गांधी ग्राम गुजरात से आये शिशुवाटिका मार्गदर्शक दिव्यांशु भाई दवे ने पीपीटी के माध्यम से भारतीय जीवन दर्शन पर व्याख्यान दिया।

उन्होंने बताया कि गंगा के किनारे ज्ञान की गंगा भी बहती है। जीवन दर्शन जीने की एक कला है। भारत में जन्मा प्रत्येक व्यक्ति जीवन दर्शन में ही जीता है। आनंद की साधना को समझना है तो इसके पहले भारत को समझना होगा। हम भारत मां की संतान हैं। भारतवर्ष में दर्शन कल्पना की कोई उड़ान नहीं है, बल्कि इससे साधना के परिणाम स्वरुप अनुभूति और निष्कर्ष प्राप्त होते हैं। जो जीवन दर्शन को गति और दिशा प्रदान करते हैं। उन्होंने कहा कि भारत का स्वभाव आध्यात्मिक है। इसलिए हमें अपने अंदर देखने की आवश्यकता है।

कार्यक्रम में विद्या भारती के अखिल भारतीय संगठन मंत्री गोविंद चंद महंत, शिशु वाटिका की भारतीय संयोजिका पश्चिम क्षेत्र सुश्री आशा थानकी, अखिल भारतीय सह संयोजिका शिशु वाटिका उत्तर प्रदेश नम्रता दत्त, अखिल भारतीय सहसंयोजक शिशु वाटिका मध्य क्षेत्र हुकमचंद भुवन्ता, प्रांत संगठन मंत्री उत्तराखंड भुवन चंद्र, प्रदेश निरीक्षक डा.विजयपाल सिंह, सह प्रदेश निरीक्षक विनोद रावत, विद्या मंदिर इंटर कालेज के प्रधानाचार्य लोकेंद्र दत्त अंथवाल, सरस्वती शिशु मंदिर के प्रधानाचार्य कमल सिंह रावत, विद्यालय समिति के सदस्य एवं देहरादून संभाग के समस्त प्रधानाचार्य उपस्थित रहे। पांच दिवसीय इस कार्यक्रम में शिशु वाटिका के विभिन्न प्रदेशों के प्रभारी भाग ले रहे हैं।

हिन्दुस्थानसमाचार/रजनीकांत/रामानुज

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