दून पुस्तकालय में सजा रंग-मंच, भूली-बिसरी यादें ताजा कर गईं 'वो भी क्या दिन थे'
- 1970 की लोकप्रिय फिल्म बॉबी के नाम रहा ग्रीष्म कला उत्सव का पहला दिन
- सिंगल स्क्रीन भारतीय सिनेमा उद्योग के सुनहरे युग को किया याद, दिलचस्प प्रसंग हुए उजागर
देहरादून, 08 मई (हि.स.)। दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र सभागार में बुधवार को ग्रीष्म कला उत्सव-1 का रंग-मंच सजा। इस मंच पर लेखक, साहित्यकार, सामाजिक कार्यकर्ता, बुद्विजीवी का समागम दिखा। ‘वो भी क्या दिन थे’ कार्यक्रम देहरादून शहर के बंद पड़े सिनेमाघरों की भूली-बिसरी यादें ताजा कर गईं।
दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र की ओर से आयोजित पांच दिवसीय ग्रीष्म कला उत्सव-1 के तहत लोकप्रिय फिल्म बॉबी का प्रदर्शन किया गया। ग्रीष्म कला उत्सव का पहला दिन 1970 की लोकप्रिय फिल्म बॉबी के नाम रहा। साथ ही देहरादून के बंद पड़े सिनेमाघरों पर सार्थक विमर्श किया गया। सत्र का शुभारंभ प्रभात सिनेमा के प्रमुख रहे दीपक नागलिया ने किया।
सांध्यकालीन सत्र में प्रभात सिनेमा के दीपक नागलिया और बिजू नेगी के बीच देहरादून के बंद पड़े सिनेमाघरों की भूली-बिसरी यादों पर शानदार बात हुई। बातचीत में सिंगल स्क्रीन भारतीय सिनेमा प्रदर्शनी उद्योग के सुनहरे युग और उस दशक के दौरान हिंदी सिनेमा से जुड़ी विविध कहानियों को याद किया गया। इसे जीवंत बनाने के लिए स्लाइड शो भी किया गया।
दीपक नागलिया ने पिछले दशकों में देहरादून के सिनेमाघरों की सामाजिक पहचान, उससे जुड़ी हर वर्ग की अर्थव्यवस्था़, फिल्म प्रर्दशन के तकनीकी पक्ष, व्यवस्था, प्रचार-प्रसार, वितरण और आम लोगों की फिल्म देखने की दीवानगी से जुड़े अनेकानेक प्रसंगों को रोचक संस्मरणों के साथ प्रस्तुत किया। बातचीत से देहरादून में प्रभात सिनेमा के साथ अन्य सिनेमाघरों की तत्कालीन सामाजिक हैसियत के कई दिलचस्प प्रसंग उजागर हुए। बातचीत के बाद लोगों ने सवाल-जबाब भी किए।
इस दौरान निकोलस हॉफलैंड, बिजू नेगी, चंद्रशेखर तिवारी, हिमांशु आहूजा, कवि अतुल शर्मा, विभापुरी दास, विजय भट्ट, भूमेश भारती, गोपाल थापा, वेदिका वेद, मनमोहन चड्ढा, सुंदर सिंह बिष्ट समेत फिल्म प्रेमी व पुस्तकालय के सदस्य आदि थे।
हिन्दुस्थान समाचार/कमलेश्वर शरण/रामानुज
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