'ढाई कमरे' जितना लघु उतना बड़ा, वक्ता बोले- लघु कथा में है जीवन के यथार्थ की सशक्त कहानियां

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'ढाई कमरे' जितना लघु उतना बड़ा, वक्ता बोले- लघु कथा में है जीवन के यथार्थ की सशक्त कहानियां


- दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र में लघु कथा संग्रह 'ढाई कमरे' का लोकार्पण

देहरादून, 08 अगस्त (हि.स.)। दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र की ओर से सभागार में गुरुवार को साहित्यकार और शिक्षाविद डॉ. विद्या सिंह के सद्य प्रकाशित लघु कथा संग्रह 'ढाई कमरे' का लोकार्पण किया गया। साथ ही वक्ताओं ने लघु कथा संग्रह 'ढाई कमरे' पर सार्थक विमर्श किया।

उल्लेखनीय है कि 'ढाई कमरे' कथा संग्रह में डॉ. विद्या सिंह के 100 से अधिक छोटी-छोटी लघु कथाओं का उम्दा संकलन किया गया है। मूल रूप से यह लघु कहानियां समाज में विद्यमान अंधविश्वास, कुरीतियों, कुप्रथाओं के साथ विषमता, शोषण, क्रूरता, अमानवीयता पर कड़ा प्रहार करती हुई दिखाई देती हैं। यह सभी लघु कथाएं एक तरह से समकालीन समाज के विविध परिवेश और पारिवारिक स्थितियों को साफ तौर पर रेखांकित करती हैं।

कार्यक्रम की कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए संस्कृत विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति डॉ. सुधारानी पांडेय ने कहा कि डॉ. विद्या सिंह के लघु कथा संग्रह 'ढाई कमरे' की कहानियां लघु कथा विधा की श्रेष्ठतम रचनाएं हैं। आकार में लघु होने के बाद भी ये कथाएं अपने समकालीन पाठकों के बहुत नजदीक हैं। डॉ. विद्या सिंह की सभी कथाएं समकालीन समाज के विभिन्न चित्रों विशेष रूप से नारी जगत की वर्तमान स्थिति को रेखांकित करती सशक्त कहानियां हैं। सरल व सहज भाषा और प्रवाह के साथ जीवन के भोगे हुए यथार्थ की सशक्त कहानियां हैं।

वरिष्ठ साहित्यकार असीम शुक्ल ने कहा कि मूल्यों के समकक्ष मनःचेतना को रखते हैं तो बरबस ही अभिव्यक्ति की आवश्यकता अनुभव होने लगती है और लघुता पूर्वक विराट मूल्य की प्रतिष्ठा की स्थिति का परिवेश बन जाता है। ऐसा ही डॉ. विद्या की अनेक लघुकथाओं से परिलक्षित हो रहा है। उन्होंने कहा कि लघुकथा के माध्यम से मूल्य की प्रतिष्ठा और विस्तार का दायित्व लेखक से अधिक पाठक का हो जाता है।

पूर्व उच्च शिक्षा निदेशक डॉ. सविता मोहन ने कहा कि लेखिका की कथात्मक निष्ठा प्रशंसनीय है। दरअसल, लघुकथाएं जीवन के समय, मन की व्यथा व प्रसन्नता के प्रभाव को सूक्ष्म रूप में व्यक्त करती हैं। सशक्त कथातत्व के साथ कम शब्दों में मन पर पड़े प्रभाव को कह देना सशक्त कथाकार ही कर सकता है। 'ढाई कमरे' पुस्तक को पढ़कर यह स्पष्ट है कि डॉ. विद्या सिंह एक श्रेष्ठ शब्द शिल्पी हैं। उनके 'ढाई कमरे' की सभी कथाएं स्त्री मन की अलग-अलग तस्वीरें प्रदर्शित करती हैं। राजकीय महाविद्यालय सुद्धोवाला के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. धीरेंद्र नाथ तिवारी ने 'ढाई कमरे' लघुकथा संग्रह को मध्यवर्गीय जीवन के नाना प्रसंगों को एक आधुनिक नजरिए से देखने की कोशिश बताया और कहा कि यह कथाएं पढ़े—लिखे समाज में स्त्रियों व दलितों के प्रति संकीर्ण दृष्टिकोण कोे भी सामने लाती हैं।

कवि चंद्रनाथ मिश्रा ने इन लघु कथाओं को मानव जीवन की उष्मा से ओत—प्रोत बताया। उन्होंने कहा कि विभिन्न पात्रों के माध्यम से मानव जीवन की विभिन्न समस्याओं और संवेदनाओं को व्यक्त करती यह लघु कथाएं दिलचस्प और पठनीय हैं। डीएवी कालेज के प्रोफेसर राजेश पाल ने कहा कि 'ढाई कमरे' की लघु कथाएं संस्मरणात्मक शैली में लिखी गई हैं, जो पाठकों में संवेदनाएं एवं जिज्ञासाएं जगाती हैं। इनमें तार्किकता पर भावनात्मक आदर्शवाद ज्यादा प्रबल दिखाई देता है। ये लघु कथाएं रोजमर्रा के जीवन से अनचिन्हें विषय और संदर्भ उठाती हैं। ऐसे में अपनी पठनीयता एवं रोचकता बनाए रखने में सफल है। कुल मिलाकर ये लघु कथाएं सामाजिक विसंगतियों और मानवीय संबंधों के अंतर्द्वंद की परतें खोलती हैं।

कथा संग्रह की लेखिका विद्या सिंह ने कहा कि स्वतंत्रता के कई दशक बीत जाने पर भी समाज अंधविश्वास, कुरीतियों और कुप्रथाओं से ग्रस्त है। साहित्य सदैव इन समस्याओं को अपने लेखन में उजागर करता रहा है। लघु कलेवर और प्रभावात्मकता की वजह से लघुकथाएं मुझे सदैव आकृष्ट करती रहीं। ऐसे में सामाजिक विसंगतियों के प्रति अपना प्रतिरोध दर्ज करने के लिए मैंने इस विधा का चयन किया। कार्यक्रम में डॉ. मनोज पंजानी सहित कुछ अन्य लोगों ने भी अपने विचार रखे। कार्यक्रम के आरम्भ में दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के प्रोग्राम एसोसिएट चंद्रशेखर तिवारी ने सभी का स्वागत किया। कार्यक्रम का संचालन साहित्यकार शिव मोहन सिंह ने किया। इस दौरान डॉली डबराल, सुरेंद्र सिंह सजवाण, कृष्णा खुराना, डॉ. सत्यानंद बडोनी, मनमोहन चड्ढा, कुसुम भट्ट, गुरुदीप खुर्राना, डीएन भटकोटी, प्रवीन भट्ट, भारती पांडेय, कल्पना बहुगुणा आदि उपस्थित थे।

हिन्दुस्थान समाचार / कमलेश्वर शरण / प्रभात मिश्रा

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