संस्कृत की दुर्दशा पर संस्कृत महाविद्यालयों के शिक्षक भड़के, ज्ञापन भेजा
देहरादून, 25 नवंबर (हि.स.)। संस्कृत को द्वितीय राजभाषा बनाने के बाद भी संस्कृत महाविद्यालयों की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। इस बारे में संस्कृत महाविद्यालय प्रांतीय संघ के अध्यक्ष डा. रामभूषण बिजल्वाण, प्रांतीय संयोजक डॉ. संतोष मुनि और महासचिव डॉ. नवीन पंत के नेतृत्व में पदाधिकारियों ने प्रधानमंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, संस्कृत शिक्षा मंत्री, मुख्य सचिव, सचिव, कुलपति उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय और निदेशक संस्कृत शिक्षा को ज्ञापन भेजा।
इस संबंध में महाविद्यालय के पदाधिकारियों ने शनिवार को प्रेस क्लब में पत्रकार वार्ता कर मीडिया के सामने अपनी समस्याएं रखीं। उन्होंने प्रेषित अपने तीन पृष्ठीय ज्ञापन में कहा है कि स्वतंत्रता के 75 वर्षों बाद भी देवभूमि उत्तराखंड में ब्रिटिश काल से पोषित संस्कृत विद्यालय, महाविद्यालय अन्य विद्यालयों के समकक्ष मुख्य धारा में आने की लड़ाई लड़ रहे हैं। सनातन संस्कृति को बचाने वाली भाजपा के कार्यकाल में ही इन संस्थानों का स्तर घटा दिया गया है। पांच दशकों से कोई नया पद सृजित नहीं हुआ है। कक्षा 6 से स्नातकोत्तर तक महज दो से तीन पद सृजित है जबकि सैकड़ों छात्र इन महाविद्यालयों में अध्ययनरत है।
ज्ञापन में कहा गया है कि उत्तराखंड संस्कृत शिक्षा विभाग की लापरवाही के कारण समस्याएं और जटिल होती जा रही है, जो शिक्षक जिस पद में सेवा पर आया हुआ है, उसी पद से सेवानिवृत्त हो जाता है और तमाम शिक्षक निम्न मानदेय पर काम कर रहे हैं। सैकड़ों शिक्षकों के भविष्य के लिए कोई ढांचागत सुविधा नहीं है। इससे ज्यादा दुर्भाग्य राजभाषा संस्कृत का क्या हो सकता है। एसोसिएशन द्वारा छह मांगे मांगी गई है, जिनमें 16 एवं 23 अक्टूबर के आदेश को स्थगित करते हुए 17 फरवरी 2021 और 31 वर्गीकृत महाविद्यालयों के इतर सभी शेष सभी संस्कृत विद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों को मान्यता पूर्व की भांति रखी गई।
31 संस्कृत महाविद्यालयों में से 18 महाविद्यालयों में परिनियमावली के तहत शासनादेश निर्गत करने के स्थान पर पृथक नियमावली बनाई जाए। 155 शिक्षकों को योग्यतानुरूप समायोजित किया जाए एवं 126 प्रबंधकीय शिक्षकों को तत्काल मानदेय दिया जाए। प्रत्येक शासकीय, अशासकीय विभाग संस्कृत अनुवादक के पद बनाए तथा पदों के अनुरूप पद सृजित किए जाएं।
उत्तराखंड संस्कृत अकादमी द्वारा 2008 से मिलने वाले शिक्षक अनुदान को पुन: शुरू किया जाए। इस ज्ञापन पर राजेंद्र प्रसाद गैरोला, रामप्रसाद थपलियाल, चंद्रकांत मैठाणी, डॉ. मनीषा बिष्ट, डॉ. जनार्दन केरवान, डा. दीपशिक्षा, कु. श्रद्धांजलि, ऋतु कौशिक, शेष नारायण भट्ट, मीरा राजपूत, हंसराज, डॉ. प्रकाशचंद, मनोज शर्मा समेत दर्जनों शिक्षकों के हस्ताक्षर हैं।
हिन्दुस्थान समाचार/ साकेती/रामानुज
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