उत्तराखंड के स्थानीय आन्दोलन राष्ट्रीय संग्राम से जुड़ने के आधार बने थे: प्रो. शेखर पाठक

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उत्तराखंड के स्थानीय आन्दोलन राष्ट्रीय संग्राम से जुड़ने के आधार बने थे: प्रो. शेखर पाठक


देहरादून, 03 नवंबर (हि.स.)। सामाजिक इतिहासकार व लेखक प्रोफेसर शेखर पाठक ने उत्तराखण्ड में औपनिवेशिक शासन और सामाजिक संघर्ष को ऐतिहासिक परिपेक्ष्य में प्रस्तुत करते हुए कहा कि उत्तराखंड के स्थानीय आन्दोलन राष्ट्रीय संग्राम से जुड़ने के आधार बने थे।

शुक्रवार शाम दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र में सामाजिक इतिहासकार व लेखक प्रोफेसर शेखर पाठक की ओर से ‘उत्तराखण्ड में राष्ट्रीय संग्राम की झलक‘ विषय पर उत्तराखण्ड के राष्ट्रीय संग्राम से जुड़े कई महत्वपूर्ण पक्षों पर विश्लेषणात्मक प्रकाश डाला गया। प्रो पाठक ने राष्ट्रीय संग्राम की विभिन्न अभिव्यक्तियों में प्रमुख तौर पर 1857 की क्रांति, पेशावरकांड और आजाद हिन्द फौज और कार्यकर्ताओं व नेताओं के योगदान की भूमिका पर प्रकाश डाला। इस व्याख्यान में उत्तराखंड के अनेक संग्राम नायकों व स्वाधीनता संग्राम में तत्कालीन अनेक समाचार पत्रों के योगदान का भी जिक्र किया गया। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड जैसे इस छोटे से इलाके ने कैसे अपनी बड़ी हिस्सेदारी राष्ट्रीय संग्राम में दी। इसकी विकास यात्रा का मिजाज कैसा रहा, इस पक्ष को भी प्रो. शेखर पाठक ने उजागर करने का प्रयास किया।

शेखर पाठक ने अपने व्याख्यान में उत्तराखण्ड के राष्ट्रीय संग्राम में अनेक नायकों यथा बद्री दत्त पाण्डे, मोहन सिंह मेहता, अनुसूइया प्रसाद बहुगुणा, जयानंद भारती, हरगोविन्द पंत, मुकुन्दी लाल, नरदेव शास्त्री, मोहन जोशी, गोविन्द बल्लभ पंत, पीसी जोशी, देव सुमन ,शर्मदा त्यागी व नागेन्द्र सकलानी समेत अनेक संग्रामियों के योगदान को उल्लेखनीय बताया। तत्कालीन समाचार पत्रों अल्मोड़ा अखबार, गढ़वाली, शक्ति, स्वाधीन प्रजा, कर्मभूमि व युगवाणी सहित अन्य पत्रों की भूमिका व उनके योगदान को भी रेखांकित किया।

कार्यक्रम से पहले दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के सलाहकार प्रो. बी के जोशी ने सभागार में उपस्थित लोगों का आभार व्यक्त किया।

उल्लेखनीय है कि प्रो. पाठक ने 3 दशकों से अधिक समय तक कुमाऊं विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य किया है। वे भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान शिमला और नेहरू मेमोरियल संग्रहालय एवं पुस्तकालय नई दिल्ली के फेलो रह चुके हैं। उन्होंने हिमालय के इतिहास, संस्कृति, लोक कथा और हिमालयी अन्वेषण के विभिन्न पहलुओं पर काम किया है। कुली बेगार प्रणाली, वन आंदोलन, उत्तराखंड की भाषाएं, हिमालयी इतिहास और खोजकर्ता नैन सिंह रावत की निश्चित जीवनी पर उनके काम प्रसिद्ध हैं। वह अस्कोट आराकोट अभियान, अन्य हिमालयी अध्ययन यात्राओं से जुड़े हुए हैं। प्रो. शेखर पाठक 2006 में पद्मश्री और 2007 में राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार से सम्मानित हो चुके हैं। उन्हें वर्ष 2022 में चिपको मूवमेंटः ए पीपल्स हिस्ट्री, पुस्तक के लिए कमला देवी चट्टोपाध्याय पुरस्कार मिल चुका है।

व्याख्यान के बाद इस विषय पर उपस्थित लोगों ने अनेक सवाल-जबाब भी किये।

हिन्दुस्थान समाचार/राजेश/वीरेन्द्र

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