अब कुपोषण दूर करेगा लौहयुक्त शिटाके मशरूम

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अब कुपोषण दूर करेगा लौहयुक्त शिटाके मशरूम


अब कुपोषण दूर करेगा लौहयुक्त शिटाके मशरूम


पंतनगर, 10 दिसंबर (हि.स.)। उत्तराखंड के जीबी पंत कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने आयरन नैनोकणों से शिटाके मशरूम का बायोफोर्टिफिकेशन कर 35 फीसदी अधिक लौहयुक्त शिटाके मशरूम तैयार करने में महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। इस नैनो तकनीक से मशरूम ऊतकों में आयरन का अवशोषण, संचलन और जैव उपलब्धता काफी बढ़ जाती है। वैज्ञानिकों ने इस तकनीक का पेटेंट भी फाइल कर दिया है।

सीबीएसएच कालेज के पूर्व अधिष्ठाता और वैज्ञानिक डाॅ. संदीप अरोड़ा ने एक भेंट वार्ता में बताया कि शिटाके मशरूम (लेंटिनुला इडाॅडस) विश्व का सबसे मूल्यवान खाद्य और औषधीय कवक है। पूर्वी एशिया के जंगलों, विशेषकर जापान और चीन, में उत्पन्न इस मशरूम की खेती जगभग एक हजार वर्ष पुरानी है। जब इसे पारंपरिक रूप से ओक की लकड़ियों पर उगाया और स्वास्थ्य लाभ के कारण ’जीवन अमृत’ के रूप में जाना जाता था। जबकि भारत जैसे राष्ट्र तकनीकी नवाचार और वैल्यू एडिशन रणनीतियों से इसके उत्पादन का विस्तार कर रहे हैं। आज शिटाके विश्व का दूसरा सबसे अधिक उत्पादित मशरूम है, जो न केवल अपने समृद्ध स्वाद, बल्कि अपने उच्च पोषण के लिए जाना जाता है। जैसे-जैसे वैश्विक खाद्य प्रणाली बदल रही है, नैनो-बायोफोर्टिफाइड मशरूम आयरन की कमी से निपटने में टिकाऊ, सुलभ और अधिक प्रभावी समाधान बन सकते हैं। कभी प्राचीन परंपराओं में पूजनीय शिटाके मशरूम अब छुपी भूख के विरुद्ध एक आधुनिक हथियार बनकर उभर रहा है। जहां विज्ञान, पोषण और नवाचार एक ही थाली में मिलते हैं।

हिन्दुस्थान समाचार / DEEPESH TIWARI

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