मंदिर निर्माण पूर्ण हुए बिना मूर्ति स्थापित करना शास्त्र संवत नहींः अविमुक्तेश्वरानंद
गोपेश्वर, 17 नवम्बर (हि.स.)। ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने शुक्रवार को कहा कि मंदिर निर्माण को पूर्ण हुए बिना मंदिर में मूर्ति स्थापित करना शास्त्र संवत नहीं है। मंदिर मूर्ति का शरीर होता है और मूर्ति प्राण है। यदि शरीर पूरा नहीं है तो उसमें प्राण प्रतिष्ठा करने का कोई औचित्य नहीं है और यह शास्त्र संवत भी नहीं है।
ज्योतिषपीठ जोशीमठ में पत्रकारों से बातचीत में शंकराचार्य ने कहा कि देश में सरकारें किसी की भी हों, वह धर्म निरपेक्ष होती हैं और संविधान के तहत संचालित होती हैं। उन्होंने कहा कि धर्माचार्यों के कार्यों को धर्माचार्यों को करना चाहिए और सरकार के कार्य को सरकार को करना चाहिए। जिस प्रकार से सरकारी विभागों अथवा संसद का कार्य संचालित करने के लिए यदि साधु-संतों को लगा दिया जाए तो यह कितना गलत लगेगा, उसी तरह से धर्म के कार्यों में भी होता है। इसलिए धर्म के कार्यों को धर्माचार्यों को करने दिया जाए। उन्होंने कहा कि जिस भी धर्माचार्य का राजनीति की तरफ झुकाव हो वह धर्माचार्य नहीं हो सकता है। राजनीतिक पार्टियां धर्मनिरपेक्ष होती हैं और धर्माचार्य धर्म को आगे बढ़ाने का कार्य करते हैं। इसलिए यदि कोई अपने को किसी भी राजनीतिक दल से जोड़ने का प्रयास करता है तो वह धर्माचार्य नहीं हो सकता है।
हिन्दुस्थान समाचार/जगदीश/पवन
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