राज्यसभा सांसद महेंद्र भट्ट ने सदन में उठाया आपदा मुआवजा राशि बढ़ाने का मुद्दा

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राज्यसभा सांसद महेंद्र भट्ट ने सदन में उठाया आपदा मुआवजा राशि बढ़ाने का मुद्दा


-बोले, राज्यों को भी मिले आपदा मुआवजा राशि के मानकों में संशोधन का अधिकार

-उत्तराखंड राज्य के दूरस्त क्षेत्रों में इंटरनेट कनेक्टिविटी में सुधार की मांग

देहरादून, 31 जुलाई (हि.स.)। उत्तराखंड भाजपा प्रदेश अध्यक्ष व राज्यसभा सांसद महेंद्र भट्ट ने सदन से उत्तराखंड एवं पर्वतीय के लिए आपदा मुआवजा राशि में वृद्धि करने की मांग की है। उन्होंने विषम भौगोलिक परिस्थितियों के दृष्टिगत मानकों में संशोधन का अधिकार राज्यों को भी सौंपने का आग्रह किया। साथ ही राज्य के दूरस्त क्षेत्रों में इंटरनेट कनेक्टिविटी समस्या का मुद्दा उठाया।

राज्यसभा में बुधवार को महेंद्र भट्ट ने पर्वतीय क्षेत्रों की विषम भौगोलिक एवं आपदा परिस्थितियों की ओर सदन के माध्यम से सरकार का ध्यान आकृष्ट कराया। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के तहत आपदा प्रवाहित क्षेत्र के लिए मुआवजे की धनराशि में वृद्धि की जाए। वहीं मानकों में भी भौगोलिक परिस्थितियों के दृष्टिगत संशोधन करने का अधिकार राज्य सरकारों को प्रदान करने का अनुरोध किया। उन्होंने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के तहत बाढ़ भूस्खलन और भूकंप में हुई हानि पर आवश्यक प्रतिपूर्ति तथा भवन क्षति एवं कृषि भूमि के भूस्खलन व बाढ़ में क्षति होने पर मिलने वाले मुआवजे में वृद्धि आवश्यक बताया। साथ ही कहा कि आपदा प्रबंधन प्राधिकरण राज्य एवं जनपदों में गठित है परंतु केंद्रीय राष्ट्रीय प्रबंधन प्राधिकरण के मानकों के दिशा-निर्देश में ही मुआवजा राशि देने का राज्यों को अधिकार है।

महेन्द्र भट्ट ने उत्तराखंड का जिक्र करते हुए कहा कि मैं जिस राज्य का प्रतिनिधित्व करता हूं वहां पर दैवीय आपदा के बार-बार आने से लोगों को विस्थापित करना बड़ी चुनौती होता है। वहीं आपदा में क्षतिपूर्ति दर इतनी कम होती है कि प्रभावितों को न्यायोचित आर्थिक राशि नहीं मिल पाती है। वहीं पहाड़ों में मिट्टी और पत्थर से बने पहाड़ी शैली के मकान होते हैं। इन्हें पक्के मकान की श्रेणी में नहीं माना जाता है और ये परिवार मुआवजे से वंचित रह जाते हैं। वहीं कुछ मकान भूस्खलन क्षेत्र में पूरी तरह धराशाई नहीं होते परंतु उन मकानों पर रहना खतरे के दायरे में रहता है। आपदा का मानक है कि जब तक मकान पूर्णतया धराशाई ना हो जाए उन्हें मुआवजा श्रेणी में नहीं लिया जाता है। इससे इन परिवारों को मिलने वाले मुआवजे से वंचित रहना पड़ता है। पहाड़ों में छोटे जोत के खेत होते हैं तथा बाढ़ एवं भूस्खलन से यह खेत पूर्णतया क्षतिग्रस्त हो जाते हैं परंतु आपदा मानक के अनुसार इन खेतों को मिलने वाला मुआवजा इतना कम होता है कि खेतों को फिर से खेती योग्य करना संभव ही नहीं है। इससे अच्छे खासे खेत भी बंजर हो जाते हैं। इसे लोक महत्व का विषय बताते हुए उन्होंने सरकार का ध्यान आकर्षित किया और कहा कि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के तहत आपदा प्रवाहित क्षेत्र के लिए मुआवजा राशि में वृद्धि की जाए तथा मानकों में भौगोलिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए संशोधन करने का अधिकार राज्य सरकारों को प्रदान किया जाए।

भट्ट ने उत्तराखंड से संबंधित मोबाइल और इंटरनेट कनेक्टिविटी समस्या को भी सदन में उठाया। उन्होंने राज्य में भारतीय संचार निगम की ओर से दी जाने वाली मोबाइल एवं इंटरनेट सुविधाओं में अधिक सुधार करने की जरूरत बताया। पहाड़ी राज्य होने के कारण दूर-दराज के गांव को आज के समाचार क्रांति से जोड़ने के उद्देश्य से राज्य के 6000 अतिरिक्त गांव को संचार सुविधा से जोड़ने का निश्चय किया गया था परंतु अब तक 2000 के आसपास गांव को ही इस सुविधा से जोड़ा जा सका है। बीएसएनएल ने 1206 नए टावर लगाने के लक्ष्य को भी अब तक पूर्ण नहीं किया है। दूर-दराज के क्षेत्रों में जो टावर लगे भी हैं उनसे मोबाइल कनेक्टिविटी सुचारू रूप से नहीं चल पा रही है। आज जहां मोबाइल कंपनियां 5जी नेटवर्किंग की सुविधा दे रही है, वहीं उत्तराखंड में भारतीय संचार निगम 4जी की भी सुविधा नहीं दे पा रही है। उन्होंने सरकार का ध्यान आकर्षित करते हुए राज्य के दूर-दराज गांव में बीएसएनएल मोबाइल सुविधा को दुरुस्त करने एवं उपभोक्ताओं को 4जी कनेक्टिविटी का लाभ प्रदान करने की मांग की।

हिन्दुस्थान समाचार / कमलेश्वर शरण / आकाश कुमार राय

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