वनाग्नि रोकने के लिए 'पिरूल लाओ-पैसे पाओ' मिशन पर काम करेगी धामी सरकार
- पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड करेगा मिशन का संचालन, 50 रुपये प्रतिकिग्रा खरीदेगा पिरूल
- 'पिरूल लाओ-पैसे पाओ' मिशन के लिए रखा जाएगा 50 करोड़ का कार्पस फंड
देहरादून, 08 मई (हि.स.)। उत्तराखंड में जंगल आग से धधक रहे हैं। अनियंत्रित वनाग्नि से वन संपदा को बहुत नुकसान पहुंच रहा है और जंगली जानवर आबादी तक पहुंच रहे हैं। वनों की आग में पिरूल बारूद का काम कर रहा है। इस कारण वनाग्नि विकराल होती जा रही है। ऐसे में अब धामी सरकार वनाग्नि को रोकने के लिए 'पिरूल लाओ-पैसे पाओ' मिशन पर भी कार्य करेगी। यह मिशन आपदा में अवसर का काम करेगा।
धरती पर मानव जीवन को सींचने वाले जंगल और वन्यजीव इन दिनों आग की भेंट चढ़ रहे हैं। इस आग के लिए कई चीजें जिम्मेदार हैं। शुष्क मौसम के साथ बढ़ता तापमान तो वजह है ही, इन दिनों पिरूल की पत्तियां भी जंगलों की आग को फैला रही हैं। उत्तराखंड में जंगलों की आग पर काबू पाने के लिए सरकार तमाम प्रयास कर रही है। इसी कड़ी में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पिरूल को वनाग्नि का मुख्य कारण मानते हुए युवक मंगल दल, महिला मंगल दल और स्वयं सहायता समूहों के साथ मिलकर बड़े स्तर पर 'पिरूल लाओ-पैसे पाओ' मिशन पर काम करने को कहा है। उन्हें पिरूल की पत्तियों के एकत्रीकरण का अभियान चलाने की जिम्मेदारी दी है। पिरूल कलेक्शन सेंटर पर 50 रुपये प्रतिकिलो की दर से पिरूल खरीदे जाएंगे। इस मिशन का संचालन पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड करेगा। इसके लिए 50 करोड़ का कार्पस फंड पृथक रूप से रखा जाएगा।
मुख्यमंत्री बोले- सहकारिता विभाग का भी लें सहयोग, बनाएं प्रभावी योजना
मुख्यमंत्री ने कहा है कि वनों से पिरूल एकत्रीकरण के लिए प्रभावी योजना बनाई जाए। पिरूल संग्रहण केंद्र बनाए जाएं। इसमें सहकारिता विभाग का भी सहयोग लिया जाए। पिरूल एकत्रीकरण के लिए दी जाने वाली धनराशि को बढ़ाई जाए।
'पिरूल लाओ-पैसे पाओ' मिशन से जंगल की आग को कम करने में मदद मिलेगी। यह उपाय न केवल वनाग्नि को नियंत्रित करेगा, बल्कि स्थानीय लोगों को एक अवसर प्रदान करेगा, ताकि वे पैसे कमा सकें और वनस्पति विविधता की रक्षा में सहायता कर सकें।
चीड़ वृक्ष की पत्तियों को कहा जाता है ‘पिरूल’, जंगल के लिए है अभिशाप-
प्रदेश के पहाड़ी इलाकों में पाए जाने वाले वृक्ष चीड़ की पत्तियों को ही पिरूल कहा जाता है, जो 20 से 25 सेमी लंबी और नुकीली होती हैं। यह वनाग्नि में घी तरह काम करती है, इसलिए लोग इसे जंगलों के लिए अभिशाप कहते हैं। माना जाता है कि यह पेट्रोल से भी ज्यादा ज्वलनशील होती है।
देखा गया है कि पहाड़ों में कई जगहों पर पिरूल को जान-बूझकर जलाया जाता है। पशुपालक ये मानते हैं कि पिरूल की पत्तियों के जमीन पर होने से पशुओं के चरने के लिए घास नहीं हो पाती। इसके बाद वे इन पत्तियों को इकठ्ठा करके उनमें आग लगा देते हैं। ऐसे में सरकार का प्रयास लोगों के इस मिथक को तोड़ेगा। इसके लिए लोगों को जागरूक करने की भी जरूरत है।
वनाग्नि को रोकने में सरकारी तंत्र के साथ सेना भी जुटी-
दरअसल, उत्तराखंड में वनाग्नि के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। जंगल की आग के कारण प्रदेश में अब तक लाखों की वन संपदा जलकर खाक हो गई है। वनाग्नि रोकने के लिए वायु सेना का अभियान जारी है। वायु सेना ने पौड़ी में वनाग्नि की घटनाएं सामने आने के बाद अपना ऑपरेशन जारी रखा है। सरकार समेत वन विभाग और प्रशासन आग पर काबू पाने की कोशिश में जुटा है।
हिन्दुस्थान समाचार/कमलेश्वर शरण/रामानुज
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