कांवड़ यात्रियों के लिये चिकित्सा व पर्यावरण जागरूकता शिविर का आयोजन

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कांवड़ यात्रियों के लिये चिकित्सा व पर्यावरण जागरूकता शिविर का आयोजन


ऋषिकेश, 27 जुलाई (हि.स.)। परमार्थ निकेतन द्वारा कांवड़ यात्रियों के लिये बाघखाला राजाजी नेशनल पार्क में चिकित्सा व पर्यावरण जागरूकता शिविर का आयोजन किया गया। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती और बागेश्वर धाम पीठाधीश्वर पं. धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री ने दीप प्रज्वलित कर शिविर का विधिवत उद्घाटन किया। इस अवसर पर परमार्थ गुरुकुल के ऋषिकुमारों ने पपेट शो (कठपुतली शाे) के माध्यम से कांवड़ियों को पर्यावरण संरक्षण, नदियों को प्रदूषण मुक्त करने तथा सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग न करने का संदेश देते हुए अद्भुत प्रदर्शन किया।

पं. धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री ने कहा कि सावन माह में प्रकृति का सौंदर्य चरम पर होता है। प्रकृति, प्रसन्नता से चहकती हैं। नदियां अपने पूरे वेग से प्रवाहित होती हैं और कलकल का नाद करती है, पौधों व पेड़ों में नवअंकुर निकलते हैं। उसी प्रकार हमारे हृदय व जीवन में आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार और आत्मिक शक्ति का विस्तार भी इसी माह में सर्वाधिक होता है। उन्होंने कहा कि श्रावण माह ही नहीं बल्कि हर घड़ी और हर क्षण भगवान शिव का ही है, परन्तु श्रावण माह की महिमा अपरम्पार है। श्रावण मास में साधक अपने अंतर्मन का नाद सुनने के लिये वनों में और शिवालयों में जाकर साधना करते हैं। कांवड़ यात्रा उसी का प्रतीक है। श्रावण माह में ध्यान, साधना, जप व ब्रह्मचर्य का पालन कर शिवत्व को प्राप्त कर सकते हैं।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि कांवड़ यात्रा भगवान शिव की आराधना का प्रतीक है। शिवलिंग पर जलाभिषेक कर प्रभु के प्रति विश्वास, भक्ति, आस्था और मजबूत होती है। श्रावण मास में भगवान शिव के भक्त कांवड़ यात्रा कर भगवान महादेव को गंगाजल अर्पित करते हैं। सुदूर स्थानों से आकर नीलकंठ महादेव का जलभिषेक कर गंगा जल से भरी कांवड़ लेकर पदयात्रा करके अपने गांव व शहरों को वापस लौटते हैं। शिवालय और शिवलिंग पर गंगा जल अर्पित करते हैं। यह कांवड़ यात्रा जल संचय और जल की अहमियत को दर्शाती है। श्रावण माह में प्रकृति के साथ सुदूर स्थानों पर विराजमान भगवान शिव के मन्दिरों, शिवालयों और शिवलिंग पर जल अर्पित कर जल के महत्व को दर्शाया गया है। जल संचय प्रकृति के संतुलन को बनाए रखने के लिए अत्यंत अवश्यक हैं। उत्तराखंड के प्राकृतिक सौंदर्य को बनाए रखने के लिए जल संचय, पौधारोपण और सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग बंद करना होगा।

हिन्दुस्थान समाचार / विक्रम सिंह / Satyawan / वीरेन्द्र सिंह

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