उत्तराखंड की पहचान है पहाड़ और नदियां, इनकी सुरक्षा के हर संभव हों प्रयास : विद्याभूषण
देहरादून, 19 अगस्त (हि.स.)। दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र सभागार में सोमवार की शाम सामाजिक चिंतक व लेखक विद्याभूषण रावत की सचित्र वार्ता हुई। यह वार्ता 'हिमालयी विकास या हिमालयी आपदा?' को लेकर उत्तराखंड के संकट को समझने पर केंद्रित थी। विद्याभूषण रावत ने हिमालय की संवेदनशीलता और अनियंत्रित विकास को रेखांकित करते हुए समाज व पर्यावरण के समक्ष आ रही गंभीर समस्याओं एवं चुनौतियों की तथ्यात्मक जानकारी दी।
वार्ता में विद्याभूषण रावत ने पिछले 10-11 वर्षों के दरमियान केदारनाथ व रैणी आपदा सहित जोशीमठ भू-धंसाव जैसे अन्य तमाम घटनाओं का उदाहरण देते हुए चिंता जताई और कहा कि उत्तराखंड न केवल अपने भूगोल अपितु अपनी पहचान से जुड़े गंभीर संकट से भी जूझ रहा है। धार्मिक पर्यटकों की आमद, अपर्याप्त बुनियादी ढांचे व बड़े विकास एजेंडे ने लोगों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या यही वास्तविक विकास की परिभाषा है।
उन्होंने कहा कि बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य, अनियंत्रित पर्यटन, स्थानीय समुदायों से वंचित वन क्षेत्रों में रिसॉर्ट और होटलों के खुलने से पर्यावरण के साथ लोगों का जीवन खतरे में पड़ गया है। उत्तराखंड के तराई और मैदानी इलाकों में बेतहाशा आबादी बढ़ने और हिमालयी क्षेत्रों में आबादी कम होने से असंतुलन पैदा होगा। नए परिसीमन में पहाड़ अल्पमत में आकर अपनी विधानसभा की सीटों को भी खो सकता है। पहले से ही पर्वतीय लोगों और उनके मैदान में बसे समकक्षों के बीच आय का अंतर बहुत बड़ा है। ऐसे में हिमालयी क्षेत्रों की विशिष्ट सांस्कृतिक भौगोलिक प्रकृति को सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है।
विद्याभूषण रावत ने यह भी कहा कि उत्तराखंड को अपनी भूमि, कानूनों और अधिवास नीतियों को बदलना होगा। पहाड़ और नदियां हमारी पहचान हैं। इनकी सुरक्षा के लिए हर संभव प्रयास करने चाहिए। उत्तराखंड के सामाजिक व सांस्कृतिक जीवन पर खतरा सीधे तौर पर इसकी प्राकृतिक विरासत के संरक्षण से जुड़ा है, इसलिए हमें लीक से हटकर भी सोचने की जरूरत है। हिमालय और इसकी समृद्ध नदी घाटी प्रणाली की रक्षा के लिए स्थानीय समुदायों और लोगों को शामिल कर इस मुद्दे पर गंभीर बहस शुरू करने की जरूरत है।
विद्याभूषण रावत एक सक्रिय लेखक हैं। इनकी प्राकृतिक विरासत और उससे जुड़े समुदायों में विशेष रुचि है। उन्होंने भूमि और खाद्य सुरक्षा के मुद्दों पर काम किया है और बड़ी संख्या में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बात की है। रावत ने लगभग 25 पुस्तकें लिखी हैं। उन्होंने उत्तराखंड के पर्यावरण संकट के साथ हिमालय में नदियों की स्थिति पर विस्तार से लिखा है। उन्होंने गंगा, यमुना और काली नदी पर कई वृत्तचित्र बनाए हैं। वर्तमान में विद्याभूषण रावत गंगा और उत्तराखंड के सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन पर इसके प्रभाव पर काम कर रहे हैं। इस दौरान दयानंद अरोड़ा, प्रवीण कुमार भट्ट, जितेंद्र भारती, बिजू नेगी, प्रो. राजेश पाल, सुरेंद्र एस सजवान, चंद्रशेखर तिवारी, निकोलस, सुंदर सिंह बिष्ट आदि उपस्थित थे।
हिन्दुस्थान समाचार / कमलेश्वर शरण / वीरेन्द्र सिंह
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