लोक आस्था के महापर्व छठ के रंग में रंगी द्रोणनगरी, व्रतियों ने डूबते सूर्य को दिया अर्घ्य
-बिहारी महासभा ने टनल में फंसे श्रमिकों के लिए की विशेष पूजा
देहरादून, 19 नवम्बर (हि.स.)। द्रोणनगरी लोक आस्था के छठ महापर्व के रंग में रंगी दिखी। छठ व्रतियों ने तीसरे दिन रविवार को डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर परिवार की सुख और समृद्धि के लिए भगवान सूर्यदेव और छठी मैया से प्रार्थना की। इस दौरान बिहारी महासभा की ओर से उत्तरकाशी सिलक्यारा टनल में फंसे श्रमिकों के लिए विशेष पूजा की गई। सोमवार को उगते सूरज को अर्घ्य देकर व्रत का पारण किया जाएगा।
इस अवसर पर चारों ओर कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकति...सुनि लेहु अरज हमार हे छठी मइया..जैसे पारंपरिक गीत गूंजते रहे। हर घाट पर उत्सव और आस्था का माहौल दिखाई दिया।
द्रोणनगरी के साथ ही प्रदेश के मैदानी जनपदों उधमसिंह नगर, हरिद्वार के हरकी पैड़ी और ऋषिकेश के गंगा घाट छठ पर्व के रंग में रंगे हुए दिखे। देहरादून में जगह-जगह छठ पूजा का आयोजन किया गया। शहर का मुख्य आयोजन बिहारी महासभा की ओर से टपकेश्वर मंदिर परिसर में किया गया।
बिहारी महासभा ने उत्तरकाशी के सिलक्यारा टनल में फंसे मजदूरों के लिए ने छठ माता से जान माल के सुरक्षा की अपील करते हुए सलामती की दुआ मांगी है। सभा की ओर से आज छठ व्रत के संध्या अर्घ्य के समय सभा की ओर से जोखिम और जीवन की जंग के बीच सुरंग में फसे जिंदगियों को बचाने के लिए छठ माता से विशेष अनुरोध पूजा अर्चना की जा रही है।
हजारों की संख्या में छठ पूजन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी। पूजा स्थल को आकर्षक ढंग से सजाया गया था। सुबह से ही घरों और घाट स्थलों पर अर्घ्य की तैयारियां चल रही थीं। मौसमी फल और सब्जियों की खरीददारी को बाजार में बड़ी संख्या में लोगों की भीड़ उमड़ी। सूर्य भगवान को अर्घ्य देने के लिए बांस के सूप में व्रतियों ने फल व सब्जियों को सजाया और पूरी-प्रसाद को टोकरी में रख छठ पूजा के लिए घाटों पर पहुंचे। छठ व्रती महिलाओं ने घाटों पर मिट्टी से बेदी बनाकर दीप जलाए। फिर सभी व्रती पानी में जाकर खड़े होकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर मन्नत मांगी। श्रद्धालुओं ने छठ पूजा के पारंपरिक गीतों को गाती दिखी। सूर्यदेव अस्तागत होने के बाद वे घरों को लौट गई।
देहरादून केटपकेश्वर मंदिर, मालेदवता, रायपुर, प्रेमनगर, चंद्रबनी, रिस्पना, बलबीर रोड, नंदा की चौकी, ब्रह्मपुरी, दीपनगर, रायपुर आदि जगहों पर सूर्यदेव को अर्घ्य दिया गया। काशीपुर में महादेव नहर पर आस्था एवं सूर्योपासना के महापर्व “छठ पूजा” का आयोजन किया। घर के आंगन से लेकर घाट तक आस्था जीवंत हो रही थी।
पर्व की शुरुआत नहाय खाय के साथ होती है। इसके बाद खरना, अर्घ्य और पारण किया जाता है। इसमें विशेष तौर पर सूर्य देवता और छठ माता की पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि इनकी पूजा से संतान प्राप्ति, संतान की रक्षा और सुख समृद्धि का वरदान मिलता है। चार दिनों तक चलने वाला यह महापर्व मुख्य तौर पर बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश, दिल्ली ,महाराष्ट्र में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। आज छठ पूजा का तीसरी संध्या का अर्घ्य दिया।
पूजा के लिए लोग प्रसाद जैसे ठेकुआ, चावल के लड्डू बनाते हैं। छठ पूजा के लिए बांस की बनी एक टोकरी ली जाती है, जिसमें पूजा के प्रसाद, फल, फूल, आदि अच्छे से सजाए जाते हैं। एक सूप में नारियल, पांच प्रकार के फल रखे जाते हैं।
बिहारी महासभा के अध्यक्ष ललन सिंह ने कहा कि छठ व्रतियों को सुविधा के लिए टपकेश्वर, प्रेमनगर सहित अन्य घाटों पर अर्घ्य के लिए दूध,कपड़ा चेंजिंग रूम के अलावा अन्य व्यवस्था की गई है।
छठ पूजा के तीसरे दिन का महत्व-
छठ महापर्व का तीसरा दिन कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर मनाया जाता है। यह छठ पूजा का सबसे प्रमुख दिन होता है। इस दिन शाम के समय लोग नए वस्त्र पहन कर परिवार के साथ घाट पर आते हैं और डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं। महिलाएं दूध और पानी से सूर्य भगवान को अर्घ्य देती हैं और संतान की लंबी उम्र की कामना करती हैं।
हिन्दुस्थान समाचार/राजेश/रामानुज
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