दून पुस्तकालय : जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के विरुद्ध संवैधानिक अधिकार पर चर्चा
देहरादून, 14 सितंबर (हि.स.)। दून लाइब्रेरी और रिसर्च सेंटर में शनिवार को जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के विरुद्ध संवैधानिक अधिकार पर पैनल चर्चा हुई। यह चर्चा उत्तराखंड आइडिया एक्सचेंज ऑन क्लाइमेट एंड कॉन्स्टिट्यूशन के हिस्से के रूप में आयोजित की गई थी। कार्यक्रम का आयोजन सोशल डेवलपमेंट फॉर कम्युनिटीज (एसडीसी) फाउंडेशन के सहयोग से किया गया। इसमें विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों ने एमके रंजीत सिंह बनाम भारत संघ (2024) के सुप्रीम कोर्ट के हालिया निर्णय और जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के खिलाफ नागरिकों के मौलिक अधिकारों की मान्यता पर विचार-विमर्श किया।
कार्यक्रम की शुरुआत दून लाइब्रेरी के प्रोग्राम एसोसिएट चंद्रशेखर तिवारी के स्वागत सम्बोधन से हुई। उन्होंने उत्तराखंड आइडिया एक्सचेंज पहल का संक्षिप्त परिचय दिया और सम्मानित पैनलिस्टों का स्वागत किया। पैनल चर्चा का संचालन गौतम कुमार, सहायक प्रोफेसर, यूपीईएस स्कूल ऑफ लॉ और एसडीसी फाउंडेशन के फेलो द्वारा किया गया। गौतम ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2021 में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के संदर्भ में दी गई ट्रांसमिशन लाइनों को भूमिगत करने के आदेश से चर्चा की शुरुआत की। इसके बाद उन्होंने 2024 में दिए गए एमके रंजीत सिंह बनाम भारत संघ के निर्णय पर ध्यान केंद्रित किया और सुप्रीम कोर्ट द्वारा जलवायु परिवर्तन को एक संवैधानिक मुद्दा मानने और इसके पर्यावरणीय अधिकारों पर प्रभावों पर चर्चा की।
उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के कानूनी सलाहकार अमन रब ने निर्णय के कानूनी आयामों पर प्रकाश डाला और बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने कोई नया अधिकार नहीं बनाया बल्कि संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत पहले से मौजूद अधिकार को मान्यता दी। उन्होंने इस अधिकार को लागू करने में राज्य के सामने आने वाली चुनौतियों पर भी चर्चा की और इसे भारत में जलवायु से जुड़े मुकदमों के लिए एक सकारात्मक कदम बताया।
वरिष्ठ पत्रकार वर्षा सिंह ने जलवायु परिवर्तन के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों पर विशेष रूप से स्कूली बच्चों के संदर्भ में बात की। उन्होंने जलवायु परिवर्तन के लैंगिक प्रभावों पर भी प्रकाश डाला।
दून विश्वविद्यालय के विजिटिंग प्रोफेसर डॉ. हर्ष डोभाल ने इस मान्यता प्राप्त अधिकार के सामुदायिक प्रभावों के बारे में बात की और बताया कि जलवायु परिवर्तन विभिन्न सामाजिक समूहों को कैसे अलग-अलग तरीके से प्रभावित करता है। उन्होंने अपने फील्ड रिसर्च से उदाहरण देते हुए बताया कि उत्तराखंड में बढ़ते हीटवेव के कारण कूलिंग सिस्टम की आवश्यकता अब भोजन और पानी जैसी बुनियादी जरूरतों के समान हो गई है। साथ ही उन्होंने प्रभावी जलवायु शमन और अनुकूलन नीतियों की आवश्यकता पर जोर दिया।
यूपीईएस के सहायक प्रोफेसर आदित्य रावत ने इस निर्णय की व्याख्या की और इसके मानव केंद्रित दृष्टिकोण पर सवाल उठाया। उन्होंने न्यायालय द्वारा अपने पूर्ववर्ती इकोसेंट्रिक फैसलों से इस निर्णय के विचलन की ओर इशारा किया, खासकर तब जब यह मामला एक पक्षी प्रजाति की सुरक्षा से संबंधित था। आदित्य ने बताया कि यह निर्णय पशु अधिकारों और प्रकृति के अधिकारों पर कोई ध्यान नहीं देता और जलवायु संकट के कारण आदिवासी समुदायों की पहचान के नुकसान पर भी चर्चा की। चर्चा के दौरान पर्यटन के कारण जलवायु की असुरक्षा और सरकार की भूमिका पर सवाल उठाए गए।
अंत में एसडीसी फाउंडेशन संस्थापक अनूप नौटियाल ने चर्चा के मुख्य बिंदुओं को संक्षेप में प्रस्तुत किया और धन्यवाद ज्ञापन दिया। उन्होंने पैनलिस्टों को उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए बधाई दी और दून लाइब्रेरी को इस कार्यक्रम की मेजबानी के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने सभी प्रतिभागियों को उनकी सक्रिय भागीदारी के लिए सराहा और उत्तराखंड में जलवायु-संबंधी संवैधानिक अधिकारों पर लगातार चर्चा की आवश्यकता पर जोर दिया।
इस दौरान राज्य पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन निदेशालय उत्तराखंड सरकार के निदेशक एसपी सुबुधी, प्रोफेसर एचसी पुरोहित, डॉ. एसपी सती, डॉ. राजेंद्र कठैत, वैशाली सिंह, जया सिंह, राजेंद्र कोशियारी, अरुणिमा नैथानी, एकता सती आदि उपस्थित थे।
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हिन्दुस्थान समाचार / कमलेश्वर शरण
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