उत्तराखंड में मजबूत भू-कानून के साथ मूल निवास की सीमा वर्ष 1950 तय करने की मांग

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उत्तराखंड में मजबूत भू-कानून के साथ मूल निवास की सीमा वर्ष 1950 तय करने की मांग


हरिद्वार, 06 अक्टूबर (हि.स.)।मूल निवास समन्वय संघर्ष समिति एवं पहाड़ी महासभा ने उत्तराखंड में मजबूत भू-कानून के साथ मूल निवास की सीमा 1950 तय करने की मांग की है।

समिति के संयोजक मोहित डिमरी ने कहा कि राज्य के निवासियों के अनेकों बलिदान एवं संघर्षों के बाद राज्य अस्तित्व में आया, लेकिन राज्य के जल, जमीन, जंगल पर बाहरी व्यक्तियों का कब्जा हो रहा है। अपने ही राज्य में मूल निवासियों के सामने पहचान का संकट खड़ा हो गया है। राज्य की सांस्कृतिक परंपराओं पर भी खतरा मंडरा रहा है। उन्होंने कहा कि सीमित संसाधन वाले प्रदेश में बाहरी लोगों का आगमन होने के कारण भूमिधर अब भूमिहीन हो रहे हैं। कल-कारखानों में मूल निवासियों को रोजगार नहीं मिल रहा है। मूल निवास प्रमाण पत्र फर्जी तरीके से प्राप्त किए जा रहे हैं। इसकी भी जांच होनी चाहिए।

सरकार को जल्द से जल्द राज्य में 1950 मूल निवास एवं सशक्त भू-कानून राज्यहित में लागू करना होगा। सशक्त भू-कानून एवं मूल निवासी की सीमा 1950 लागू करने की मांग को लेकर आगामी 10 नवम्बर को हरिद्वार में स्वाभिमान महारैली आयोजित की जाएगी। पहाड़ी महासभा के अध्यक्ष तरुण व्यास ने कहा कि पलायन की समस्या से निजात पानी है तो मूल निवास एवं मजबूत भू-कानून राज्य में लागू हो। त्रिलोकचंद भट्ट ने कहा कि मूल निवासी एवं मजबूत भू-कानून को लेकर समन्वय संघर्ष समिति द्वारा लोगों को जागरूक किया जा रहा है। अपनी परंपरांओं और संस्कृति को बचाने के लिए सभी को मिलकर प्रयास करने होंगे। वार्ता में हिमांशु रावत, संजय सिलसवाल, अजय नेगी, अतुल गोंसाई, दुर्गेश उनियाल, विनोद चौहान, दीपक पांडेय, रवि बाबू शर्मा, बीएन जुयाल आदि मौजूद थे।

हिन्दुस्थान समाचार / डॉ.रजनीकांत शुक्ला

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