'बत्तीस राग गाओ मोला' सामाजिक, धार्मिक और बदहाल आर्थिक स्थिति की झलक

'बत्तीस राग गाओ मोला' सामाजिक, धार्मिक और बदहाल आर्थिक स्थिति की झलक
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'बत्तीस राग गाओ मोला' सामाजिक, धार्मिक और बदहाल आर्थिक स्थिति की झलक


- पांच दिवसीय ग्रीष्म कला उत्सव-1 का चैथा दिन साहित्य के नाम

- सत्ता संघर्ष के इतिहास को बखूबी बयां करता है हरिसुमन बिष्ट का उपन्यास

देहरादून, 11 मई (हि.स.)। दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र की ओर से आयोजित पांच दिवसीय ‘ग्रीष्म कला उत्सव’ का चौथा दिन साहित्यिक विमर्श के नाम रहा। साथ ही प्रतिष्ठित उपन्यासकार हरिसुमन बिष्ट के उपन्यास ‘बत्तीस राग गाओ मोला’ पर सुप्रसिद्ध साहित्यकार पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी की अध्यक्षता में शानदार बातचीत हुई। बीज वक्तव्य कवि प्रो. शैलेय ने दिया।

बातचीत में मुख्य वक्ता के तौर पर आलोचक एवं शिक्षाविद प्रो. धीरेन्द्र नाथ तिवारी, वरिष्ठ कथाकार एवं शिक्षाविद प्रो. नवीन कुमार नैथानी, शिक्षाविद डा. सविता मोहन और वरिष्ठ रंगकर्मी डा. सुवर्ण रावत थे। मंच का संचालन भारती आनंद ने सफलतापूर्वक किया।

‘बत्तीस राग गाओ मोला’ लेखक हरिसुमन बिष्ट का हिंदी साहित्य में लीक से हटकर लिखा गया एक बेहतरीन उपन्यास है। यह उपन्यास अठारहवीं सदी के महान चित्रकार, गढ़वाल चित्र शैली के जनक कवि और गढ़ राज्य के मुद्राधिपति मोला राम तोमर के जीवन के एक विशेष कालखंड की एक ऐसी अवधि पर प्रकाश डालता है, जब दो भाई महराज प्रद्युम्न्न शाह और कुंवर पराक्रम शाह के बीच खूनी संघर्ष चल रहा था और इसका फायदा गोरखा सैनिक ले रहे थे। कुमाऊं के बाद गढ़ राज्य भी गोरखाओं के अधीन हो जाता है।

उपन्यास इतिहास को बयां करने के साथ उस समय के सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक और दोनों राज्यों की बदहाल आर्थिक स्थिति का भयावह चित्र खींचता है। बावजूद इसके लेखक ने इस उपन्यास को ‘मोला राम का अधूरा किस्सा’ कहा है। उपन्यास ‘बत्तीस राग गाओ मोला’ के संदर्भ में हरिसुमन बिष्ट ने अपने वक्तव्य में दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि यह एक इतिहास नहीं अपितु पूर्ण रूप से उपन्यास है। यह उपन्यास सत्ता के संघर्षों और उन संघर्षों के बीच उपजे पारिवारिक कलह, गोरखा सैनिकों के आतंक व लूट के सामानांतर शौकीन मिजाज के मोला राम के कवि और चित्रकार रूप को खूबसूरती के साथ सामने रखता है।

उल्लेखनीय है कि हरिसुमन बिष्ट हिंदी साहित्य में एक प्रतिष्ठित उपन्यासकार, कथाकार के रूप में जाने जाते हैं. उनके अब तक आठ उपन्यास, आठ कहानी संग्रह,तीन यात्रावृतांत और कई नाटक प्रकाशित हुए हैं।वे कई फिल्मों की पटकथा, संवाद लिख चुके हैं। उनके उपन्यासों और कहानियों का अंग्रेजी सहित अन्य भारतीय भाषाओं में अनुवाद हो चुका है. डाॅ. बिष्ट हिंदी पाठकों में जितने चर्चित हैं उतने ही दूसरी भाषाओं में भी पढ़े जाते हैं। उनकी रचनाओं का देश भर में मंचन हुआ है। पहाड़ के जीवन को उन्होंने अपने उपन्यासों और कहानियों की पृष्ठभूमि में प्रमाणिकता के साथ रखा है। ‘आसमान झुक रहा है’, ‘आछरी-माछरी’, ‘होना पहाड़’ और ‘अपने अरण्य की ओर’ उपन्यास उत्तराखंड के जन जीवन को लेकर है।

दूसरी ओर ‘बसेरा’ भारतीय जीवन में भू-मंडलीकरण के बाद आए सामाजिक बदलाव का जीता जागता उदाहरण है, जिसे निठारी कांड का वीभत्स रूप में देख सकते हैं। ‘भीतर कई एकांत’ भी इसी भू-मंडलीकरण से उपजी विकट परिस्थियों में एक वृद्ध की मनोदशा का चित्र खींचता है, जो देश की आजादी के लिए संघर्ष का गवाह भी है। हरिसुमन बिष्ट को कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हैं। अपनी घुमक्कड़ वृति के लिए लेखक खूब जाने जाते हैं। साहित्य के क्षेत्र में कई प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं।

इस दौरान कार्यक्रम समन्वय निकोलस हॉफलैंड व बिजू नेगी, साहित्यकार जितेंद्र शर्मा, दिनेश जोशी, मुकेश नौटियाल, डाॅ. नंद किशोर हटवाल, समदर्शी बड़थ्वाल, अरुण कुमार असफल, सुंदर सिंह बिष्ट आदि थे।

हिन्दुस्थान समाचार/कमलेश्वर शरण/रामानुज

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