बहुगुणा ने कभी सिद्धांतों से समझौता नहीं किया : सूर्यकांत धस्माना
देहरादून, 25 अप्रैल (हि.स.)। देश के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, पूर्व केंद्रीय मंत्री और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्य मंत्री मंत्री स्वर्गीय हेमवती नंदन बहुगुणा की 105वीं जयंती गुरुवार को राजधानी देहरादून में धूमधाम से मनाई गई।
घंटाघर स्थित बहुगुणा शॉपिंग कांप्लेक्स में स्वर्गीय बहुगुणा के अनुयायी रहे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य व उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने साथियों के साथ पहुंच कर बहुगुणा की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उनको श्रद्धा सुमन अर्पित किया। उन्होंने लोगों से कहा कि स्वर्गीय बहुगुणा का व्यक्तित्व महात्मा गांधी और नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के व्यक्तित्वों का मिश्रण था। गांधी की तरह जहां सर्व धर्म समभाव, अनेकता में एकता के सिद्धांत के बहुगुणा जी प्रबल समर्थक थे तो वहीं नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की तरह दृढ़ निश्चय व हमेशा नई चुनौतियों को स्वीकार करने की क्षमता बहुगुणा में थीं।
धस्माना ने कहा कि इस देश की आज़ादी के बाद संसदीय इतिहास में अनेक नेताओं ने समय समय पर दल बदल किया। कोई सिद्धांतों के आधार पर एक पार्टी छोड़ कर दूसरी पार्टी में शामिल हुआ तो कोई व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए और आजकल तो नेता कपड़ों की तरह दल बदल लेते हैं। 1980 से पहले किसी भी सांसद ने दल बदलने के साथ सांसदी से इस्तीफा नहीं दिया। ऐसा करने वाले देश के पहले नेता थे हेमवती नंदन बहुगुणा जो 1980 में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के कार्यकारी अध्यक्ष थे और कांग्रेस के टिकट पर गढ़वाल संसदीय सीट से सांसद चुने गए थे।
धस्माना ने कहा कि चुनाव के तुरंत बाद मंत्रिमंडल गठन को लेकर बहुगुणा के इंदिरा गांधी के साथ मतभेद हुए और कुछ महीनों के बाद ही उन्होंने यह कहते हुए कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया कि जिस पार्टी के चुनाव चिन्ह पर वे चुनाव जीते हैं, वे नैतिकता के आधार पर सांसदी से भी त्यापत्र दे रहे हैं। उन्होंने सांसदी से त्यागपत्र दे दिया। उस समय देश में दल बदल कानून नही था और बहुगुणा के सामने ऐसी कोई मजबूरी नहीं थी कि उनको दल बदल के कारण सांसदी खोनी पड़ेगी, लेकिन उन्होंने नैतिकता के आधार पर त्यागपत्र दिया।
उन्होंने कहा कि बहुगुणा बहुत जीवट वाले नेता थे, जिन्होंने कभी सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। चाहे उनको उसके लिए कितनी भी कीमत चुकानी पड़ी हो, लेकिन वे कभी झुके नहीं और अपने सिद्धांतों पर हमेशा अडिग रहे। विगत 17 मार्च 1989 को जब उनका निधन हुआ तो देश के प्रख्यात स्तंभकार खुशवंत सिंह ने उनको श्रद्धांजलि देते हुए लिखा था कि भारतीय राजनीति में गांधी व नेहरू के बाद भारत ने एक सच्चा धर्मनिरपेक्ष नेता खो दिया है।
कार्यक्रम में ललित भद्री, एसपी बहुगुणा, परणिता बडूनी,संगीता गुप्ता, अनुराग गुप्ता, शुभम सैनी, देवेंद्र सिंह,प्रमोद गुप्ता, ब्रह्मदत्त शर्मा, आनंद सिंह पुंडीर, मेहताब, प्रवीण कश्यप, पप्पू कोहली, अवधेश कथिरिया, अर्जुन सोनकर, राम कुमार थपलियाल, राजेश उनियाल समेत बड़ी संख्या में लोग उपस्थित थे।
हिन्दुस्थान समाचार/ साकेती/रामानुज
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