अल्मोड़ा के पाटिया में गोवर्धन पूजा की शाम खेली गई ऐतिहासिक बग्वाल
-40 मिनट तक चली बग्वाल
अल्मोड़ा, 14 नवंबर (हि.स.)। अल्मोड़ा ऐतिहासिक गांव पाटिया में इस बार भी गोवर्धन पूजा की शाम को बग्वाल खेली गई।
ताकुला विकासखण्ड के पाटिया गांव में सैकड़ों वर्षों से बग्वाल खेलने की पंरपरा चली आ रही है। इस बार भी बग्वाल खेलने की प्रथा इस बार भी पूरे रस्मों रिवाज के साथ मनायी गयी। आज बग्वाल में चार गांव के योद्धाओं ने हिस्सा लिया और सदियों पुरानी परम्परा को कायम रखते हुए पत्थर युद्ध खेला।
बग्वाल 40 मिनट तक चली उसके बाद परंपरा अनुसार यह युद्ध किसी एक ग्राामीण द्वारा नदी में पानी तक पहुंचने के बाद शांत हो गया। पत्थर युद्ध के दौरान कोट्यूड़ा गांव की ओर से विकी बिष्ट के पचघटिया में पानी पीने के साथ ही बग्वाल का समापन हो गया। इसके बाद पाटिया के राजा पिलखवाल ने पचघटिया में पानी पिया। और दोनों पक्षों द्वारा एक दूसरे पर पानी छिड़कने के साथ ही बग्वाल का समापन हो गया।
पाटिया क्षेत्र के पचघटिया में खेले गये इस बग्वाल में पाटिया, भटगांव, जाखसौड़ा कोटयूड़ा और कसून के ग्रामवासियों ने भाग लिया जबकि क्षेत्र के दर्जनो गांवो से आये सैकड़ों लोग इस पत्थर युद्ध के गवाह बने।
पाटिया और कोट्यूड़ा के बीच मूलतः खेले जाने वाले इस पत्थर युद्ध में कोटयूड़ा के साथ कसून जबकि पाटिया के साथ जाखसौड़ा और भटगांव के योद्धाओं ने शिरकत की। पत्थर युद्ध का आगाज पाटिया गांव के अगेरा मैदान के गाय खेत में गाय की पूजा के साथ शुरू हुआ।
मान्यता के अनुसार पिलख्वाल खाम के लोगों ने चीड़ की टहनी खेत में गाड़कर बग्वाल की अनुमति मांगी। इसके बाद मैदान को पार करके पचघटिया (नदी का नाम) तक पहुंच कर पाटिया खाम के महेन्द्र पिलख्वाल के पानी पीने की रस्म के बाद यह युद्ध समाप्त हो गया। इसके बाद लोगों ने एक दूसरे को बधाई दी और अगली बार मिलने का वादा कर विदा ली।
यह पत्थर युद्ध कब से और क्यों खेला जा रहा है। इस बारे में नयी और कुछ पुरानी पीढ़ी को भी बहुत अधिक पता नहीं है, लेकिन पुरखों की इस परम्परा को निभाने के लिए आज भी लोग पूरा समय देते हैं। सम्बन्धित क्षेत्र के युवाओं में पिछले कई दिन से इस युद्ध के आयोजन के लिए तैयारी शुरू हो जाती है। मान्यता है कि वर्षों पूर्व किसी आततायी को भगाने के लिए दोनों गावों के लोगों ने एकजुट होकर उसे पत्थरों से भगाया था। इसके बाद उसके भाग जाने और पानी पीने की मोहलत देने के अनुरोध पर ही गांव वासियों ने उसे छोड़ा था।
हालांकि नई पीढ़ी इस कहानी के बारे में भी ज्यादा नहीं जानती है। पत्थर युद्ध नदी के दोनों छोरों से खेला जाता है और जिस टीम का व्यक्ति सबसे पहली पानी पीने पहुंच जाता है वही टीम विजयी घोषित हो जाती है। युद्ध की सबसे बढ़ी खासियत यह है कि युद्ध के दौरान पत्थरों से चोटिल हो जाने वाला योद्धा किसी दवा का इस्तेमाल नहीं करता बल्कि बिच्छू घास के उबटन को घाव पर लगाया जाता है।
पूर्वजों के दौर से चली आ रही यह परिपाटी जारी है, लेकिन युद्ध का आगाज कब से और किस कारण हुआ इस बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है। यहां पर यह भी बताना जरूरी है कि सदियों से आपसी आयोजन से चल रही इस परम्परा को उभारने और चम्पावत के देवीधूरा की तर्ज पर इसका प्रचार प्रसार करने के लिये प्रशासन की ओर से कोई ठोस पहल नहीं की जा सकी है, इसीलिए यह आयोजन प्रसिद्धि नहीं पा सकी है। इस अनूठे पत्थर युद्ध में कई योद्धा चोटिल हुए।कोट्यूडा की ओर से विकी बिष्ट,पाटिया खाम की ओर से राजा पिलख्वाल ने अगुवाई की।
इस मौके पर पाटिया के ग्राम प्रधान हेमंत कुमार,कोट्यदा के ग्राम प्रधान भुवन चंद्र आर्य, कसून के ग्राम प्रधान सुंदर मटियानी,भट्टगांव के ग्राम प्रधान सुनीता भट्ट,बंशीलाल,सरपंच देवेंद्र सिंह बिष्ट,सामाजिक कार्यकर्ता हेम चन्द्र पांडे, पूरन चंद्र पांडे, पनी राम,दयाल राम आदि मौजूद रहे।
हिन्दुस्थान समाचार/प्रमोद जोशी/रामानुज
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