एरीज के खगोलविदों ने अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों के साथ आकाशगंगा के केंद्र में लगातार हो रही 'हिचकियों' के रहस्य को सुलझाया
नैनीताल, 29 मार्च (हि.स.)। नैनीताल स्थित एरीज यानी आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान के खगोलविदों ने अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों के साथ सुदूर आकाशगंगा के केंद्र में ब्लैक होल में लगातार हो रही ‘हिचकियों’ के रहस्य को सुलझाया है। खगोलविदों ने एक छोटे ब्लैक होल को बड़े ब्लैक होल की गैस की डिस्क में बार-बार छेद करते हुए पाया है। खगोलविदों की यह खोज ब्लैक होल में अब तक अनदेखे व्यवहार पर प्रकाश डालती है।
वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी से लगभग 80 करोड़ प्रकाश-वर्ष दूर एक आकाशगंगा के केंद्र में स्थित एक महाविशाल ब्लैक होल में एक अनोखी घटना देखी गयी, जिसने वैज्ञानिकों को भ्रमित कर दिया है। इस व्यवहार को वैज्ञानिक ‘लगातार हो रही हिचकियां’ कहते हैं। यह हिचकियां हर 8.5 दिनों में गैस उत्सर्जन के आवधिक विस्फोट के रूप में प्रकट होती है, जिसके बाद यह अपनी सामान्य, निष्क्रिय अवस्था में लौट आती है।
यह अभूतपूर्व व्यवहार ब्लैक होल अभिवृद्धि डिस्क, जिसे पहले केंद्रीय ब्लैक होल के चारों ओर घूमने वाली अपेक्षाकृत समान संरचना माना जाता था, की पारंपरिक समझ को चुनौती देता है। इस शोध टीम में मुख्य लेखक और एमआईटी के कावली इंस्टीट्यूट फॉर एस्ट्रोफिजिक्स एंड स्पेस रिसर्च के शोध वैज्ञानिक डॉ. धीरज पाशम के साथ एरीज के डॉ. सुवेंदु रक्षित भी शामिल हैं।
साइंस एडवांसेज नामक पत्रिका में प्रकाशित इस शोध के निष्कर्ष से इन आवधिक विस्फोटों के लिए एक दिलचस्प स्पष्टीकरण प्रस्तावित किया गया है। ऐसा माना गया है कि एक छोटा ब्लैक होल केंद्रीय सुपरमैसिव ब्लैक होल की परिक्रमा करते हुए समय-समय पर इसकी गैस की डिस्क को बाधित करता है और इस प्रक्रिया में गैस के गुबार छोड़ता है, जो हिचकियों जैसी लगती है। इस खोज से पता चलता है कि अभिवृद्धि डिस्क में विभिन्न पिंड हो सकते हैं, जिनमें अन्य ब्लैक होल और यहां तक कि संपूर्ण तारे भी शामिल हैं।
डॉ. रक्षित के अनुसार वह इस घटना को देखकर आश्चर्यचकित थे और इस व्यवहार का स्पष्टीकरण देने में बहुत मेहनत करनी पड़ी। यह खोज ऑटोमेटेड सर्वे फॉर सुपरनोवा (असास-एसएन), रोबोटिक दूरबीनों का एक नेटवर्क जिसने दूरस्थ आकाशगंगा में प्रकाश के विस्फोट का पता लगाया, द्वारा संभव हुई। डॉ. पाशम ने विस्फोट के दौरान आकाशगंगा के एक्स-रे उत्सर्जन की बारीकी से निगरानी करने के लिए नासा के न्यूट्रॉन स्टार इंटीरियर कंपोजिशन एक्सप्लोरर (नाइसर) दूरबीन का उपयोग किया। टीम ने पाया कि दिसंबर 2020 की खोज से पहले आकाशगंगा अपेक्षाकृत शांत थी।
डॉ. रक्षित ने पाया कि आकाशगंगा का केंद्रीय महाविशाल ब्लैक होल 5 करोड़ सूर्य जितना भीमकाय है। विस्फोट से पहले, ब्लैक होल के चारों ओर एक धुंधली, फैली हुई अभिवृद्धि डिस्क घूम रही होगी, जिसके साथ 100 से 10,000 सौर द्रव्यमान वाला एक दूसरा, छोटा ब्लैक होल, अनभिज्ञता से परिक्रमा कर रहा था।
शोधकर्ताओं को संदेह है कि दिसंबर 2020 में एक तीसरा पिंड, जो संभवतः पास का एक तारा हो, इस तंत्र के बहुत करीब आ गया और महाविशाल ब्लैक होल के प्रचंड गुरुत्वाकर्षण द्वारा टुकड़े-टुकड़े हो गया। ऐसी घटना को खगोलविद ‘ज्वारीय व्यवधान घटना’ कहते हैं। जब तारे का मलबा ब्लैक होल में समाने लगा, तब तारकीय पदार्थ के अचानक प्रवाह ने क्षणभर के लिए ब्लैक होल की अभिवृद्धि डिस्क को उज्ज्वल कर दिया। चार महीनों में महाविशाल ब्लैक होल ने तारकीय मलबे को खा लिया और दूसरा ब्लैक होल परिक्रमा करता रहा। जैसे ही यह डिस्क से गुजरा, इसने सामान्य से कहीं अधिक बड़ा गुबार उत्सर्जित किया, जो सीधे नाइसर के दृष्टिकोण की तरफ था।
आगे के विश्लेषण से हर 8.5 दिनों में होने वाले एक्स-रे उत्सर्जन में गिरावट का एक अजीब पैटर्न सामने आया, जो डिस्क के बीच से गुजरते एक दूसरे ब्लैक होल की उपस्थिति का संकेत देता है। चेक गणराज्य के सैद्धांतिक भौतिकविदों के साथ सहयोग करते हुए टीम ने ऐसे सिमुलेशन किए जो इस परिकल्पना का समर्थन करते हैं, जो हाथी और चींटी के सामान तंत्र के अस्तित्व का सुझाव देते हैं जहां एक छोटा ब्लैक होल एक बड़े ब्लैक होल की परिक्रमा करता है।
अलबत्ता यह भी है कि जैसे-जैसे खगोलशास्त्री ब्रह्मांड के रहस्यों को सुलझाते जा रहे हैं, यह खोज ब्रह्मांडीय घटनाओं की असीमित जटिलता और विविधता दर्शाती है। साथ ही हमारी समझ को चुनौती देती है और नई दिशा में अनुसंधान करने को प्रेरित करती है।
हिन्दुस्थान समाचार/डॉ. नवीन जोशी/वीरेन्द्र
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