बारिश और बर्फबारी के बगैर सेब के बगीचे सूखे, फ्लावरिंग पर संकट

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बारिश और बर्फबारी के बगैर सेब के बगीचे सूखे, फ्लावरिंग पर संकट


उत्तरकाशी, 17 दिसंबर (हि.स.)। उत्तराखंड में लंबे समय से बर्फबारी और बारिश न होने से सूखे जैसी स्थिति से सेब के बगीचों में कैंकर का रोग का खतरा मंडराता नजर आ रहा है।

यह रोग सेब के पौधों को काफी नुकसान पहुंचा सकता है। इसके चलते बागवान काश्तकार खासे चिंतित नजर आ रहे हैं। आमतौर पर सेब के पौधों में फ्लावरिंग फरवरी माह में शुरू होती है लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण इस बार दिसम्बर माह में शुरू हो गई है अब यदि जनवरी माह में बर्फबारी होती है तो सेब की फसल खराब होने का खतरा होता है।

हालांकि जिला उद्यान अधिकारी डॉ रजनीश सिंह ने बताया कि मौसम की बेरुखी से बागवानी के सेहत के लिए ठीक नहीं है , लेकिन 15 जनवरी तक भी यदि बर्फबारी और बारिश होती है तो बागवानी अच्छी हो सकती है।

गौरतलब है कि सेब की अच्छी फसल के लिए दिसंबर में तापमान 15 डिग्री से कम होना चाहिए, जबकि इन दिनों तापमान 20 डिग्री के करीब चल रहा है।

दिसंबर में बगीचों में फास्फोरस और पोटाश खाद डाली जाती है, लेकिन इसके लिए जमीन में नमी होना जरूरी है। इन खादों से पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है ‌। सर्दी के मौसम में पेड़ों से पत्ते झड़ना जरूरी है, तापमान अधिक होने से पत्ते नहीं झड़ पा रहे।

इधर बागवानी काश्तकार जय भगवान सिंह पंवार कहना है कि बारिश-बर्फबारी न होने से सूखे के कारण खाद डालने का काम रुक गया है। अगले एक हफ्ते भी बारिश बर्फबारी नहीं हुई तो सेब की फसल प्रभावित होने का डर है। कृषि विज्ञान केंद्र चिन्यालीसौड़ के वैज्ञानिक डॉ कमल पांडेय ने बताया कि जलवायु परिवर्तन के कारण समय से बारिश और बर्फबारी न हो रही उन्होंने कहा कि अभी आगे बारिश और बर्फबारी के आसार हैं । यदि जनवरी माह में भी बर्फबारी होती है तो बागवानी की अच्छी पैदावार हो सकती है।

सूखे की मार से कैंकर की चपेट में आ सकते सेब के बागवान

उत्तरकाशी में लंबे समय से बारिश और बर्फबारी न होने से सूखे की स्थिति बन गई है जिससे सेब के पौधों कैंकर की चपेट में आ सकते हैं।

बागवानी विशेषज्ञों का कहना है कि कैंकर रोग के लक्षण पौधे के तने, शाखाओं और टहनियों पर उभरे या धंसे हुए कई रंगों के धब्बों के रूप में नजर आते हैं। रोगी पौधों की छाल कई बार पपड़ी बनकर उखड़ जाती है। ऐसे में पौधे भी सूख जाते हैं। इससे बागवानों को वर्षों की मेहनत पर पानी फिर जाता है।

वहीं रवांई घाटी फल एवं सब्जी उत्पादक संगठन नौगांव के अध्यक्ष जगमोहन सिंह चन्द ने बताया कि

समय पर बारिश और बर्फबारी न होने से चिंता जताई उन्होंने कहा कि बागवानी काश्तकारों के उत्पादन पर इसका प्रभाव पड़ेगा।

चिन्यालीसौड़ कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिक डॉ कमल पांडेय का कहना है कि सेब के पौधों के लिए 7 डिग्री से कम तापमान में 1000 से 1500 घंटे चिलिंग ऑवर्स की जरूरत रहती है। चिलिंग ऑवर्स पूरे न होने का असर फ्लावरिंग पर पड़ता है, पौधों में एक समान फ्लावरिंग नहीं होती। कमजोर फ्लावरिंग से फूल झड़ जाते हैं। इससे सेब उत्पादन प्रभावित हो सकता है।

हिन्दुस्थान समाचार / चिरंजीव सेमवाल

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