रंग राजस्थानी कार्यक्रम में छाया राजस्थानी भाषा की मान्यता का मुद्दा
बीकानेर, 18 दिसंबर (हि.स.)। महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय के स्ववित्तपोषित राजस्थानी विभाग एवं अधिष्ठाता, छात्र कल्याण के संयुक्त तत्वावधान में रंग राजस्थानी कार्यक्रम का आयोजन संत मीराबाई सभागार में किया गया।
मुख्य अतिथि चलकोई फाउंडेशन के राजवीर सिंह चलकोई ने राजस्थानी साहित्य : इतिहास, कला, संस्कृति का संरक्षण और संवर्धन विषय पर बोलते हुए कहा कि जनगणना में जब भाषा पूछी जाए तो राजस्थानी लिखो। जब इटली से एल पी टेस्सिटोरी बीकानेर आकर राजस्थानी व्याकरण पर किताब लिख गए तो ये सवाल कैसे उठता है कि राजस्थानी कौनसी भाषा है? क्यों नहीं आज तक इसे मान्यता दी गई? जब भाषा नहीं होती तो व्याकरण कैसे होता? राजस्थानी की जीभ काटकर कैसे राजस्थान को आगे बढ़ाया जा सकता है? डोंगरी, मणिपुरी जैसा भाषाओं को सरकार की मान्यता है लेकिन फिर राजस्थानी के साथ ये विभेद क्यों?
राजस्थानी विभाग की सह प्रभारी डॉ. लीला कौर ने स्वागत भाषण पढ़ा तो डीन स्टूडेंट्स वेलफेयर डॉ मेघना शर्मा ने अपने उद्बोधन में राजस्थानी साहित्य को इतिहास की धरोहर बताया और कहा कि वंशावलियों के अध्ययन के साथ साथ वीर गाथाओं को आमजन तक पहुंचाने का कार्य राजस्थानी साहित्य करता है।
इससे पूर्व राजस्थानी स्वागत नृत्य में विभाग की विद्यार्थियों ने राजस्थानी छटा बिखेरी। समारोह की अतिथि मरु कोकिला सीमा मिश्रा ने अपने मीठे कंठ से राजस्थानी गीतों का गायन मंच से कर समस्त सभागार में उपस्थित अतिथियों व विद्यार्थियों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
जाने-माने समाजसेवी-उद्योगपति प्रहलाद राय गोयनका ने कहा कि राजस्थान में कई तरह की बोलियां बोली जाती हैं लेकिन भाषा एक ही है, वो है राजस्थानी। राजस्थानी के चार स्तंभ हैं मीरा, अमृतादेवी बिश्नोई, पन्नाधाय और महाराणा प्रताप जिनके इतिहास से युवा बहुत कुछ सीख सकते हैं।
अध्यक्षीय उद्बोधन में कुलपति आचार्य मनोज दीक्षित ने कहा कि आज के दौर में अपनी दृष्टि से, स्वदेशी लेखकों की दृष्टि से लिखे इतिहास को जानना सर्वथा आवश्यक है तभी हम इतिहास के मूल तक पहुंच पाएंगे। समारोह में राजस्थानी विभाग के विद्यार्थियों को मंच से छात्रवृति वितरण किया गया।
हिन्दुस्थान समाचार / राजीव

