ख्वाजा साहब के सालाना उर्स में मजार शरीफ पर गुस्ल का मसला हुआ हल

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ख्वाजा साहब के सालाना उर्स में मजार शरीफ पर गुस्ल का मसला हुआ हल


दरगाह दीवान के पुत्र ही निभाएंगे मजार शरीफ पर गुस्ल की पारंपरिक रस्म

जिला प्रशासन के साथ बैठक में सभी पक्षों ने सशर्त जताई सहमति

अजमेर, 17 दिसम्बर(हि.स.)। ख्वाजा साहब का छह दिवसीय सालाना उर्स चांद दिखने पर 21 दिसंबर (रजब माह की पहली तारीख) से शुरू हो जाएगा, उर्स में आस्ताना स्थित ख्वाजा साहब की मजार शरीफ पर गुस्ल की रस्म दरगाह दीवान के पुत्र नसीरुद्दीन द्वारा निभाई जाएगी। बुधवार को जिला प्रशासन के साथ हुई बैठक में धार्मिक रस्म से जुड़े सभी पक्षों ने इस मामले में सहमति जाहिर करते हुए कहा कि यह सहमति स्थाई नहीं होगी, इस बाबत एक मेमोरेडम आफ अंडर स्टेंडिंग एमओयू हस्ताक्षर कराया जाएगा। बैठक में जिला कलक्टर लोक बंधु के अलावा अतिरिक्त जिला कलक्टर, पुलिस अधिकारी, सीआईडी, आईबी विभाग के लोग, दरगाह नाजिम बिलाल खान, अतिरिक्त नाजिम मोहम्मद आदिल, अंजुमन सैयद जादगान के सचिव सरवर चिश्ती, शेख जादगान के पदाधिकारी व सभी हफ्ताबारीदान, चाबीदार, दरगाह दीवान के उत्तराधिकारी नसीरुद्दीन आदि उपस्थित थे।

अतिरिक्त नाजिम मोहम्मद आदिल ने बताया कि मोटे तौर पर सहमति बन गई है। एक एमओयू बनाया जाएगा। दरगाह दीवान के उत्तराधिकारी उनके पुत्र ही ख्वाजा साहब की मजार शरीफ पर गुस्ल की रस्म निभाएंगे।

गौरतलब है कि उर्स में दरगाह दीवान द्वारा निभाई जाने वाली गुस्ल की रस्म का धार्मिक दृष्टि से बड़ा महत्व है। चूंकि इस बार दरगाह दीवान जैनुअल आबेदीन बीमार है, इसलिए वे चाहते हैं कि उनके बड़े पुत्र सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती उर्स में गुस्ल की रस्म करवाए। लेकिन इसके लिए दरगाह के खादिम नहीं थे। खादिमों का कहना है कि जब दरगाह दीवान के द्वारा ही गुस्ल की रस्म करवाई जाती है तो फिर दीवान को ही आना चाहिए। दरगाह में खादिमों की संख्या करीब पांच हजार है। दरगाह की धार्मिक रस्मों पर खादिमों का ही एकाधिकार है। उर्स के दौरान जब मध्यरात्रि को दीवान गुस्ल की रस्म के लिए आते हैं, तब भी मजार शरीफ पर खादिमों का ही एकाधिकार होता है। खादिमों की सहमति के बगैर दरगाह में कोई धार्मिक रस्म नहीं हो सकती। दीवान आबेदीन की जगह उनके पुत्र नसीरुद्दीन चिश्ती गुस्ल की रस्म करवाए इसके लिए भी खादिमों की सहमति जरूरी थी।

गुस्ल की रस्म: चूंकि ख्वाजा साहब का सालाना उर्स छह दिनों तक मनाया जाता है, इसलिए उर्स के दौरान प्रत्येक रात को ख्वाजा साहब की मजार पर साफ-सफाई और इबादत होती है। इसे ही गुस्ल की रस्म कहा जाता है। इस रस्म के साथ ही एक दिन पूरा होता है। दरगाह की परंपरा के अनुसार रजब माह की एक से पांच तारीख तक मध्य रात्रि को गुस्ल की रस्म होती है। जबकि छठे दिन दोपहर को करीब दो बजे गुस्ल की रस्म होती है। गुस्ल की रस्म के समय दरगाह परिसर खचाखच भरा रहता है। कई बार गुस्ल की रस्म के समय दरगाह दीवान और खादिमों के बीच खूनी संघर्ष भी हुआ है। झगड़े की आशंका को देखते हुए ही गुस्ल की रस्म के समय दरगाह दीवान को कड़ी सुरक्षा में लाया जाता है। दीवान की ओर से खादिमों पर कई गंभीर आरोप लगाए गए हैं।

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हिन्दुस्थान समाचार / संतोष

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