अरावली पर्वतमाला के संरक्षण को लेकर ‘नेशन फर्स्ट’ का राष्ट्रव्यापी आग्रह

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अरावली पर्वतमाला के संरक्षण को लेकर ‘नेशन फर्स्ट’ का राष्ट्रव्यापी आग्रह


उदयपुर, 21 दिसंबर (हि.स.)। अरावली पर्वतमाला के निरंतर हो रहे क्षरण और इसकी परिभाषा को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रहे विवाद पर ठोस एवं दीर्घकालिक निर्णय की मांग को लेकर ‘नेशन फर्स्ट’ के सदस्यों ने राष्ट्रपति, प्रधान न्यायाधीश, प्रधानमंत्री, केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री तथा राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली और गुजरात के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखा है।

नेशन फर्स्ट के संयोजक एडवोकेट अशोक सिंघवी, वरिष्ठ अधिवक्ता विजय ओस्तवाल, एडवोकेट मनोज अग्रवाल, एडवोकेट राजेन्द्र धाकड़, एडवोकेट निमेश भट्ट, समाजसेवी हरीश नरसावत, एडवोकेट अमर सिंह सिसोदिया आदि द्वारा भेजे गए इस पत्र में अरावली पर्वतमाला को भारत की प्राचीनतम पर्वत श्रृंखला बताते हुए कहा गया है कि यह उत्तर-पश्चिम भारत के पर्यावरणीय संतुलन, भूजल संरक्षण, जैव विविधता और मरुस्थलीकरण रोकने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसके बावजूद अवैध खनन, अतिक्रमण, अनियंत्रित शहरीकरण और नियमों की कमजोर अनुपालना के कारण यह पर्वतमाला गंभीर संकट में है।

पत्र में विशेष रूप से सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन उस व्याख्या पर चिंता व्यक्त की गई है, जिसमें केवल 100 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों को ही अरावली मानने की बात कही जा रही है। नेशन फर्स्ट का कहना है कि अरावली को केवल ऊंचाई के आधार पर परिभाषित करना वैज्ञानिक और पर्यावरणीय दृष्टि से अनुचित है, क्योंकि अरावली एक संपूर्ण पारिस्थितिक तंत्र है, न कि मात्र ऊंची पहाड़ियों का समूह।

पत्र में यह भी चेतावनी दी गई है कि यदि 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों को नष्ट किया गया, तो उससे सटी ऊंची पहाड़ियों का भी अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा, जिससे पूरी पर्वत श्रृंखला के क्षरण की स्थिति बन जाएगी। नेशन फर्स्ट ने रियासतकालीन उदाहरणों का उल्लेख करते हुए कहा कि चित्तौड़गढ़, कुंभलगढ़, आवरगढ़ और उदयपुर के सज्जनगढ़ जैसे दुर्ग पहाड़ियों पर बने होने के बावजूद आज भी पहाड़ सुरक्षित हैं, क्योंकि उस समय निर्माण प्रकृति के अनुरूप किया गया था, न कि प्रकृति को तोड़कर।

पत्र में उदयपुर सहित अरावली क्षेत्र के कई शहरों में अधिकारियों की मिलीभगत से पहाड़ियों को काटकर कॉलोनियां, होटल, रिसॉर्ट और सड़कें बनाने के आरोप भी लगाए गए हैं। नेशन फर्स्ट ने आशंका जताई है कि नियमों में ढील का लाभ कुछ रसूखदार लोग उठाएंगे, जिसका दुष्परिणाम आने वाली पीढ़ियों को भुगतना पड़ेगा।

नेशन फर्स्ट ने सरकारों से मांग की है कि अरावली पर्वतमाला की प्राचीन बसावट को छोड़कर को नो-कंस्ट्रक्शन जोन घोषित किया जाए। अरावली की वैज्ञानिक और पर्यावरणीय आधार पर स्पष्ट परिभाषा तय की जाए। अरावली पर्वतमाला में अवैध खनन पर तत्काल और कठोर कार्रवाई हो। अरावली क्षेत्र में खनन क्षेत्र स्पष्ट रूप से सीमांकित किए जाएं। अरावली पर्वतमाला में होटल, रिसॉर्ट, कॉलोनियों और सड़कों के निर्माण पर तत्काल रोक लगे। अरावली पर्वतमाला में जिन अधिकारियों ने अवैध अनुमतियां दी हैं, उनके विरुद्ध सख्त कार्रवाई की जाए। नेशन फर्स्ट ने विश्वास व्यक्त किया है कि सरकारें मिलकर सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक ठोस पर्यावरणीय दृष्टिकोण रखेंगी और अरावली जैसी अमूल्य प्राकृतिक धरोहर को बचाने के लिए दूरदर्शी निर्णय लेंगी।

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हिन्दुस्थान समाचार / सुनीता

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